
दिवाली पर जो फिल्में थिएटर्स में धमाका करने आ रही हैं, उनमें से एक है तमिल फिल्म 'बाइसन'. ये तमिल डायरेक्टर मारी सेल्वराज की फिल्म है जिन्होंने धनुष स्टारर 'कर्णन' और 'परियेरम पेरुमल' जैसी आइकॉनिक फिल्में बनाई हैं. 'बाइसन' में उनके हीरो ध्रुव विक्रम हैं, जो पॉपुलर तमिल स्टार चियान विक्रम के बेटे हैं. ये फिल्म शुरुआत में रिलीज तो तमिल में ही हो रही है, मगर इससे निकली एक तस्वीर सोशल मीडिया पर हर भाषा और क्षेत्र के फिल्म लवर्स में चर्चा का मुद्दा बनी हुई है.
'बाइसन' में गांव के एक लड़के का किरदार निभा रहे ध्रुव ने नीले और सफेद रंग की एक प्रिंटेड लुंगी पहनी है, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. वजह ये है कि मारी सेल्वराज की ही फिल्म 'कर्णन' (2021) में धनुष ने भी ऐसी ही लुंगी पहनी थी. इतना ही नहीं, मारी की पिछले साल आई फिल्म 'वालई' में भी एक महत्वपूर्ण किरदार निभा रहे कटर कलैयरासन ऐसी ही लुंगी में थे.
बॉलीवुड से लेकर साउथ तक आजकल फिल्ममेकर्स अपनी फिल्मों को एक फ्रैंचाइजी यूनिवर्स में बदल रहे हैं. ऐसे में मारी की तीन फिल्मों में एक जैसी लुंगी देखकर कई सोशल मीडिया यूजर्स ने ये भी कहा कि ये उनका कोई अलग 'लुंगीवर्स' बन रहा है. लेकिन असल में मारी सेल्वराज कोई यूनिवर्स नहीं बना रहे. ना ही उनके तीन एक्टर्स का एक जैसी लुंगी पहनना कोई संयोग है. इसके पीछे मारी का क्रिएटिव दिमाग है. ये लुंगी असल में एक बहुत गहरा प्रतीक है.

तीन फिल्मों में एक जैसी लुंगी क्यों पहने हैं एक्टर्स?
मारी सेल्वराज को तमिल सिनेमा में पिछड़ों की कहानियां कहने के लिए जाना जाता है. उनके सिनेमा में तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों की ऐसी कहानियां होती हैं जिनमें जातिवाद, दलित शोषण और हाशिए से नीचे के लोगों का जीवन दिखता है. खुद एक दलित परिवार से आने वाले मारी ने इस जीवन को करीब से देखा है और वो फिल्मों में इसे लेक्चरबाजी के जरिए नहीं दिखाते. बल्कि इसे प्रतीकों में गढ़ते हैं. उनकी फिल्में देखने के लंबे समय बाद तक लोग फिल्म के किसी फ्रेम की तस्वीर शेयर करते हैं जिसमें कोई प्रतीक छुपा होता है. इसी तरह 'कर्णन', 'वालई' और अब 'बाइसन' में नजर आ रही ये प्रिंटेड लुंगी एक प्रतीक बन चुकी है.
तमिलनाडु की संस्कृति में लुंगी और धोती का अपना एक प्रतीक है. धोती को वहां वेट्टी भी बोला जाता है. सुंदर बॉर्डर वाली सफेद वेट्टी, जिसमें आगे प्लेट्स बनाई गई हों और एक सिरा पैरों के बीच से निकालते हुए पीछे कमर में खोंसा गया हो, ब्राह्मण और दूसरी उच्च जातियों का प्रतीक बन चुकी हैं. चूंकि सामाजिक रूप से खुद को कुलीन और जाति के आधार पर खुद को ऊंचा मानने वाले लोग शुरू से इस तरह की वेट्टी पहनते आए, इसलिए ये प्रतीक मजबूत हो गया.
इसी तरह तमिल संस्कृति में लुंगी जैसे एक कपड़े 'कैली' या 'सारम' का भी जिक्र मिलता है, जिसकी लंबाई वेट्टी से थोड़ी कम थी. पारंपरिक रूप से लुंगी मजदूरों और दलितों का प्रतीक बनती चली गई. मगर खुद तमिल फिल्म इंडस्ट्री की ही पॉपुलर फिल्मों में गुंडों को लुंगी पहने खूब दिखाया गया, जिससे इस कपड़े के साथ एक और प्रतीक जुड़ गया.
पर्दे पर अपने हक का सम्मान तलाश रही लुंगी
अब दलित कहानियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले फिल्ममेकर्स मारी सेल्वराज, पा रंजित और वेट्रीमारन लुंगी को दलित पहचान के सम्मान के प्रतीक में बदल रहे हैं. जैसे- 1993 की फिल्म 'यजमान' में जब रजनीकांत, सामंती सिस्टम पर चल रहे एक गांव के प्रधान बने थे तो उन्होंने रंगीन किनारी वाली सफेद वेट्टी पहनी थी. लेकिन वहीं जब पा रंजित की फिल्म 'काला' (2018) में जब वो स्लम में तमिल कम्युनिटी के लीडर के रोल में थे तो उनकी वेट्टी काले रंग की थी.

लेकिन जहां पा रंजित ने वेट्टी का रंग बदलकर दलित पहचान के सम्मान की बात की. वहीं मारी सेल्वराज ने वेट्टी के सामने लुंगी को प्रतीक बनाकर खड़ा किया. उनकी फिल्म 'कर्णन' में धनुष और बाकी युवा किरदार बड़े गर्व से लुंगी पहने नजर आते हैं. जबकि उनसे पिछली पीढ़ी के लोग जिन्हें सवर्णों से अपमान की आदत हो चुकी थी, वो वेट्टी पहनने लगे थे.
उनका वेट्टी पहनना इस बात का भी प्रतीक था कि उन्हें चले आ रहे सिस्टम से ही खुद को स्वीकार किए जाने की आस है. जबकि यंग किरदारों का गर्व से लुंगी पहनना अपनी पहचान को लेकर सहजता और उसमें ही गर्व महसूस करने का प्रतीक था. 'कर्णन' के अंत में जब धनुष का किरदार पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे शोषण और अपमान का बदला लेता है तो वो एक प्रिंटेड लुंगी पहने हुए था. वही लुंगी जो बाद में मारी सेल्वराज ने पहले 'वालई' और अब 'बाइसन' में इस्तेमाल की है.
इस तरह ये एक पर्टिकुलर डिजाईन मारी के सिनेमा में एक प्रतीक बन गया है. 'बाइसन' में मारी एक कबड्डी प्लेयर की कहानी लेकर आ रहे हैं. मगर ये लुंगी बता रही है कि ध्रुव विक्रम के किरदार की स्टोरी में भी दलित अस्मिता का एंगल है.