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बिग बॉस में तान्या मित्तल की अमीरी का बखान... फेक रिच सिंड्रोम है या 'चालाकी'? मनोवैज्ञान‍िक पक्ष समझ‍िए

मैं बकलावा खाने दुबई जाती हूं, दाल खाने दिल्ली और कॉफी पीने ताजमहल के पीछे का पार्क...इन दिनों सोशल मीड‍िया पर ब‍िग बॉस-19 की कंटेंस्टेंट तान्या मित्तल की अमीरी का बखान हर तरफ है. कुछ लोग इसके मजे ले रहे हैं तो कुछ लोग उनके भीतर मानस‍िक विकार खोज रहे हैं तो कई इसे सिर्फ उनकी फेम पाने की चालाकी बता रहे हैं. लेकिन इसके पीछे क्या सच्चाई हो सकती है, हमने एक्सपर्ट्स से ये जानने की कोश‍िश की. 

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Tanya Mittal
Tanya Mittal

बिग बॉस के घर में इस सीजन में आपसी झगड़े या रोमांस से ज्यादा तान्या मित्तल की हवाबाजी की चर्चा है.मेरे पास इतनी साड़‍ियां है कि दोबारा वो साड़ी नहीं पहनती. मेरे घर में किचन में भी लिफ्ट है, मेरे 150 बॉडी गार्ड हैं, बकलावा खाने दुबई जाने से लेकर उनकी हर बात उनकी लग्जरी लाइफ से जुड़ी होती है. 

मीड‍िया से लेकर उनके गृह नगर ग्वाल‍ियर के लोग भी उनकी इस लाइफस्टाइल का रिएल‍िटी चेक कर रहे हैं, जहां साफ पता चल चुका है कि उनका घर एक साधारण इमारत है. वो साड़‍ियां भी दोहराकर पहन रही हैं. कई लोग दावा कर रहे हैं कि ये ‘रिच वाइब्स’ सच में रियल नहीं हैं. लेकिन सवाल अभी भी बरकरार है कि क्या एक फेक रिच सिंड्रोम का हिस्सा है या सोशल मीड‍िया पर एक इमेज बनाने के लिए की जा रही चालाक हरकत?

दिखावा भी एक सर्वाइवल स्ट्रैटेजी है...

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आज का रियलिटी शो कल्चर ‘रियल’ से ज्यादा ‘परफेक्ट पर्सोना’ पर टिका है. मनोव‍िश्लेषक डॉ अन‍िल स‍िंह शेखावत कहते हैं कि कहने को बिगबॉस र‍िएल‍िटी शो एक घर की कहानी है लेकिन असल में वो पब्ल‍िक प्लेस है. ऐसे प्लेटफॉर्म पर लोगों पर अक्सर खुद को वैल‍िडेट करने का दबाव होता है. फिर चाहे वो अपने स्ट्रगल को हाईलाइट करके हो या अपनी लाइफस्टाइल को बढ़ा-चढ़ाकर हो, कुछ लोगों पर कॉम्पेंसटरी बिहेवियर हो जाता है. ऐसे में लोग उनके अंदर की कमियों को अपनी बाहरी लाइफ की भव्यता दिखाकर पूरा करने की कोशिश करने लगते हैं. 

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क्या होता है फेक रिच सिंड्रोम?

असल में ये शब्द आज जब सोशल मीडिया पर लोगों के व्यवहार को परखने के दौरान पैदा हुआ है. कई अध्ययनों में इस शब्द का इस्तेमाल मनोविज्ञान का नया टर्म बन गया है. फेक रिच सिंड्रोम ऐसे व्यक्त‍ियों के बिहैव‍ियर को दर्शाता है जो रियल लाइफ की फाइनेंश‍ियल या सोशल स्टेटस को बढ़ा-चढ़ाकर द‍िखाने की कोश‍िश करते हैं. ऐसा देखा गया है कि लोग सोशल मीड‍िया पर अपने रिच होने की इमेज गढ़ना चाहते हैं. लेकिन कई बार ये आदत उन पर इतना ज्यादा हावी हो जाती है कि वो अपनी र‍ियल लाइफ में भी झूठ बोलने लगते हैं.

सोशल मीड‍िया पर दिखाई गई इमेज जिसमें फॉरेन ट्रिप की फोटोज, फिल्टर लगाकर अपनी ड्रेस‍िंग को और ग्रैंड द‍िखाने की कोश‍िश, महंगे ब्रांड्स, लग्जरी डिनर, पोज्ड फोटोज आद‍ि सब इस इमेज का हिस्सा बन जाते हैं. फिर पब्ल‍िक प्लेटफार्म पर वो द‍िखावा कि 'मैं भी आपके बराबर हूं' असल में दूसरे से बराबरी पाने वाली असुरक्षा होती है.

कैलकुलेटेड गेम खेल रहीं तान्या म‍ित्तल?

वर‍िष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ विध‍ि एम प‍िलन‍िया कहती हैं कि समाज में क्लास को लेकर एक अलग धारणा है. गरीब और अमीर के दो खांचे सदियों से चले आए हैं. अमीरों को समाज में एक अलग नजर‍िये से देखा जाता है. ऐसे में कई लोग जब अपना स्टेटस अगर थोड़ा-सा भी सुधार लेते हैं तो वो इसे बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं जिससे उन्हें लगता है कि उन्हें भी अमीर या रईस जैसे टैग मिलेंगे. मुझे भी वैसे ही सम्मान से देखा जाएगा जैसे मैं किसी सेलिब्रेटी या अमीर आदमी को देखता हूं. 

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डॉ पिलन‍िया कहती हैं कि मुझे तान्या मित्तल में किसी तरह का मानस‍िक व‍िकार नहीं लगता. 45 एप‍िसोड तक वो बहुत कैलकुलेटेड ढंग से बात करती नजर आ रही हैं. उन्हें जब वाइल्ड कार्ड से अंदर आई एक दूसरी प्रतिभागी मालती बाहर उन पर हो रही र‍िसर्च या मीम्स के बारे में बताती है तब उनका रिएक्शन होता है कि उनके जो वीड‍ियोज सोशल मीड‍ि‍या पर हैं, वो सिर्फ उन्हीं के बारे में बताती हैं. इससे स्पष्ट होता है कि वो ये सब कैलकुलेटेड ढंग से बहुत चालाकी से कह रही हैं ताकि उनके फॉलोअर्स या पब्ल‍िक स्पेस पर उन्हें फॉलो करने वाले यकीन करें. 

पेशे से खुद को मोट‍िवेशनल स्पीकर बता रहीं तान्या मित्तल अपनी सक्सेस स्टोरीज कई मंचों से पहले भी बता चुकी हैं, अपने कई पॉडकॉस्ट में भी वो अपने संघर्ष पर काफी बोल चुकी हैं, जिससे उन्हें पैसा और प्रस‍िद्ध‍ि दोनों मिली हैं. वर‍िष्ठ मनोच‍िकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि जिन तरीकों से उन्हें पहले सफलता मिली है, वो अपनी इमेज को वैसा बनाए रखना चाहती हैं, इसल‍िए झूठ का सहारा लेती हैं. लेकिन कभी कभी ऐसा लगता है कि वो झूठ और सच के बीच लाइन ड्रॉ करना भूल जाती हैं. उनके भीतर छुपी असुरक्षा और हीनभावना कई बार सामने भी आती द‍िखती है. 

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रियलिटी शो में दिखावा बिकता है

डॉ सत्यकांत कहते हैं कि बिग बॉस जैसे शो की खासियत ही यही है कि यहां रियल और परफॉर्मेंस के बीच की लाइन धुंधली होती है.  तनाव, पब्लिक जजमेंट और कैमरे के बीच कंटेस्टेंट अक्सर एक हाइपर सेल्फ क्रिएट करते हैं यानी ऐसा वर्जन जो रियल से ज्यादा इंप्रेसिव लगे.

तान्या मित्तल जैसी पर्सनैलिटी वहां सिर्फ अपनी इमेज नहीं बना रहीं, वे दर्शकों की फैंटेसी को भी टच कर रही हैं. ये दर्शकों को वही दिखा रही हैं जो वे देखना चाहते हैं, वो वही हैं परफेक्ट, स्टाइलिश, सक्सेसफुल. वो इस बारे में दूसरे प्रतिभागी मृदुल को ये समझाती भी हैं कि कैसे वो साड़ी पहनने वाली और छोटे शहरों की लड़कियों को उम्मीद देना चाहती हैं. 

क्या है शोऑफ का मनोव‍िज्ञान 

बिगबॉस में हर प्रतिभागी की कोई कहानी होती है, किसी का इमोशनल बैकग्राउंड होता, कोई रॉयल इमेज से आता है तो किसी का संघर्ष काफी बड़ा होता है. यहां तान्या अपना अमीरी वाला एंगल और सादगी पसंद साड़ी वाली इमेज द‍िखाकर बाकी से अलग बनने की कोश‍ि‍श में दिखती हैं.

मनोवैज्ञानिक इसे attention-seeking और identity projection दोनों का मिक्स मानते हैं. दिल्ली व‍िश्वव‍िद्यालय में मनोव‍िज्ञान के प्रोफेसर डॉ चंद्र प्रकाश कहते हैं कि कुछ लोग खुद को साबित करने की बेचैनी में रहते हैं, ये फेक रिच टेंडेंसी उनके लो सेल्फ एस्टीम को उठाती है. सोशल मीडिया पर ये पैटर्न बहुत देखा गया है जहां कई कर्ज में डूबे लोग भी नई नई ब्रांडेड खरीदारी लोगों को द‍िखाते हैं, ये शायद उन्हें वैल‍िडेशन का भाव देता है. 

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प्रतिक्र‍िया से मिलता है बढ़ावा 

तान्या मित्तल के केस में देखें तो शो के दर्शक भी इस फेक रिच गेम का हिस्सा बन ही गए हैं. कैसे भी हो, तान्या की चर्चा सबसे ज्यादा है. यही वो सर्कस है जिसमें सामने वाले के भीतर असली और नकली का फर्क धीरे-धीरे मिट जाता है.

बिहेवियरल एक्सपर्ट शुभी राजपूत बताती हैं कि हम ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां ‘हैविंग’ को ‘बीइंग’ से ज्यादा अहमियत दी जाती है. यानी तुम क्या हो से ज्यादा मायने रखता है कि तुम्हारे पास क्या है. शो के बाहर अगर देखा जाए तो तान्या मित्तल की ‘रिच इमेज’ एक पर्सनल ब्रांडिंग एक्सरसाइज भी है.

इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स, यूट्यूब पर्सनैलिटीज और टीवी कंटेस्टेंट ज्यादातार आज अपने ‘विजुअल वैल्यू’ से कमाई कर रहे हैं. ऐसे में तान्या का ये बखान एक सोची-समझी रणनीति भी हो सकती है जो पब्लिक पर्सेप्शन को कैश करने का तरीका है.

द‍िखावे से बचना बहुत जरूरी 

डॉ सत्यकांत कहते हैं‍ कि भले ही हर दिखावा झूठ नहीं होता और हर झूठ बुरा नहीं होता. लेकिन कई बार ये एक defense mechanism यानी खुद को कमजोर न दिखाने का तरीका इंसान की आदत बन जाता है. इससे वो धीरे-धीरे रियल सेल्फ से कटने लगता है. ये मेकेन‍िज्म खुद को प्रूव करने की थकान में डाल देता है.

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यही थकान कई बार anxiety या depression का रूप ले लेती है. इसल‍िए अपने को बढ़ा-चढ़ाकर बताने से पहले ध्यान रखें कि इसकी ज्यादा प्रैक्ट‍िस मेंटल हेल्थ के लिए ठीक नहीं. खैर तान्या मित्तल के बारे में जो भी सच्चाई हो, लेकिन ये तो कहना होगा कि बिग बॉस का घर सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि मनोविज्ञान की लैब भी है.

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