महाभारत शो फेम एक्टर पुनीत इस्सर ने हाल ही में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की हालत पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि आज की बॉलीवुड फिल्में हकीकत से बहुत दूर हो चुकी हैं और अब ज्यादातर फिल्में सिर्फ एक छोटे से शहरी वर्ग, खासकर साउथ मुंबई के लोगों को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं. उन्होंने कहा कि ऐसी फिल्मों में जरूरत से ज्यादा भावुकता होती है जो आम भारतीय दर्शकों से जुड़ नहीं पातीं. यही वजह है कि ये फिल्में बॉरिवली से आगे नहीं चल पातीं और फिर ओवरसीज कमाई के नाम पर हिट घोषित कर दी जाती हैं.
पुनीत ने अपनी बात को समझाते हुए कहा कि बाहुबली, आरआरआर, बजरंगी भाईजान, गदर और छावा जैसी फिल्में असली मसाला एंटरटेनर्स हैं, जो आम भारतीय दर्शकों के लिए बनाई जाती हैं और उन्हीं के स्वाद के मुताबिक होती हैं.
'एनिमल जैसी फिल्में देखना चाहते हैं लोग'
पुनीत ने कहा कि पैरेलल सिनेमा अपनी जगह ठीक है, लेकिन उसकी पहुंच कम होती है. लोगों को अल्लू अर्जुन जैसे स्टार्स क्यों पसंद आते हैं? क्योंकि पुष्पा जैसी फिल्में सीधे आम जनता से जुड़ती हैं. आरआरआर हिट क्यों हुई? क्योंकि साउथ में कॉर्पोरेट्स का दखल नहीं है. वहां मेल-डॉमिनेटेड फिल्में बनती हैं, इसका मतलब ये नहीं कि वो मेल-शॉविनिस्ट हैं. नहीं, साउथ में 'अल्फा-मेल' फिल्में बनती हैं, यही हकीकत है, और लोग यही देखना चाहते हैं. इसीलिए सलमान और शाहरुख इतने बड़े स्टार हैं. जब रणबीर कपूर एनिमल करता है, तो वो भी सुपरहिट हो जाती है, वो फिल्म वाकई कमाल की थी.
'सिर्फ गे-लेस्बियन पर बनाएंगे फिल्में'
उन्होंने फिल्मों में हिंसा और 'अल्फा-मेल' थीम्स पर हो रही आलोचनाओं पर भी बात की. पुनीत बोले- लोग क्या कहते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता. क्या हमें वैसे ही फिल्में देखनी चाहिए जो वे बनाते हैं? एक आयुष्मान खुराना की फिल्म आई थी चंडीगढ़ करे आशिकी, जो 12 बजे रिलीज हुई और 12:30 बजे तक उतार ली गई. क्या हमें ऐसी फिल्में बनानी चाहिए? नहीं. सत्यम शिवम सुंदरम जैसी फिल्मों में भी गरिमा होती थी. क्या आप सिर्फ लेस्बियनिज्म पर या गे लोगों पर फिल्म बनाना चाहते हैं? ठीक है, वो भी समाज का एक हिस्सा हैं, मैं उनकी मौजूदगी को नकारता नहीं, मैं सबका सम्मान करता हूं.
आखिर में पुनीत ने कहा कि हर तरह की फिल्में बननी चाहिए, लेकिन जो फिल्में भावनाओं और लोगों से जुड़ती हैं, वही सच्चे मायनों में ब्लॉकबस्टर बनती हैं.