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शोले, डर, जो जीता वही सिकंदर...इन फिल्मों ने 'अंदाज अपना अपना' की कॉमेडी को यूं बनाया मजेदार

1994 में जब पहली बार 'अंदाज अपना अपना' थिएटर्स में रिलीज हुई थी, तब इसे बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया गया था. मगर वक्त के साथ ये फिल्म आइकॉनिक बन गई. इसकी वजह थी 'अंदाज अपना अपना' की राइटिंग में तीन चीजें- कॉलबैक, मेटा-रेफरेंस और ईस्टर-एग्स. आइए बताते हैं क्या हैं ये तीनों चीजें.

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कैसे ईस्टर-एग की मास्टरक्लास है 'अंदाज अपना अपना'
कैसे ईस्टर-एग की मास्टरक्लास है 'अंदाज अपना अपना'

बॉलीवुड में पुरानी फिल्मों के री-रिलीज वाले मौसम में फैन्स को वो गुड न्यूज मिली है, जिसने उनकी एक्साइटमेंट बढ़ा दी है. बॉलीवुड की सबसे आइकॉनिक कॉमेडी फिल्मों में से एक 'अंदाज अपना अपना' थिएटर्स में 25 अप्रैल को री-रिलीज होने जा रही है. बॉलीवुड सुपरस्टार्स सलमान खान और आमिर खान को पहली और आखिरी बार साथ लेकर आने वाली ये फिल्म एक कल्ट का दर्जा रखती है. अब री-रिलीज के साथ ही दर्शकों को एक बार फिर से थिएटर्स में इस फिल्म का जादू जीने का मौका मिलेगा. 

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1994 में जब पहली बार 'अंदाज अपना अपना' थिएटर्स में रिलीज हुई थी, तब इसे बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया गया था. मगर वक्त के साथ ये फिल्म आइकॉनिक बन गई. इसकी वजह थी 'अंदाज अपना अपना' की राइटिंग में तीन चीजें- कॉलबैक, मेटा-रेफरेंस और ईस्टर-एग्स. ये तीनों चीजें आज फिल्म राइटिंग में आम हैं लेकिन उस दौर में 'अंदाज अपना अपना' ये एक्स्परिमेंट करने वाली बॉलीवुड की पहली फिल्मों में से एक थी. आइए बताते हैं क्या हैं ये तीनों चीजें और कैसे 'अंदाज अपना अपना' इस राइटिंग स्टाइल की एक मास्टर क्लास थी. 

'अंदाज अपना अपना' में सलमान खान, आमिर खान (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

मेटा-रेफरेंस, ईस्टर-एग और कॉलबैक क्या होता है?
मेटा शब्द का मतलब होता है किसी चीज या व्यक्ति का अपनी स्थिति या दशा को लेकर परफेक्टली सजग होना. फिल्मों में जब किरदार लिखे जाते हैं तो उनका अपना एक अस्तित्व होता है, अपनी चेतना होती है. ये किरदार फिक्शन में गढ़े जरूर गए हैं लेकिन इन्हें देखते हुए आप इन्हें एक रियल व्यक्ति की तरह ही ट्रीट करते हैं. एक्टिंग में बेसिकली ये होता है कि एक एक्टर अपनी लाइफ किनारे रखकर, पर्दे पर एक काल्पनिक किरदार का जीवन जीता है, जिसकी अपनी चेतना है. लेकिन इस किरदार में एक्टर के असली जीवन का रेफरेंस जुड़ जाए तो दो अलग-अलग चेतनाएं मिल जाती हैं और तब इस रेफरेंस को मेटा रेफरेंस कहा जाता है. 

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इसी तरह अगर किसी किरदार में एक्टर के पिछले किरदार, सीन या डायलॉग का रेफरेंस सीधे तौर पर जुड़ जाए, तो इसे 'कॉल बैक' कहा जाता है क्योंकि पिछली बात को याद यानी रीकॉल किया जा रहा है. इसी तरह फिल्म में अगर ये रेफरेंस छुपाकर छोड़ दिया गया है, जिसे दर्शक देखने के बाद खोजते हैं तो इसे ईस्टर एग कहा जाता है. 

'ईस्टर एग' इसलिए क्योंकि ईसाई धर्म में ईस्टर का त्यौहार सेलिब्रेट करने से जुड़ी एक खेल जैसी बहुत पुरानी परंपरा है, जो यूरोप या अमेरिका में काफी पॉपुलर है. रंगे हुए अंडे गार्डन में छुपा दिए जाते हैं जिन्हें बच्चे खोजते हैं. जीसस के पुनर्जन्म को सेलिब्रेट करने वाले ईस्टर में, ये अंडे असल में जीसस की खाली कब्र का प्रतीक माने जाते हैं. जैसे खेल में बच्चे गार्डन में ईस्टर एग्स खोजते हैं, वैसे ही फिल्म देखते हुए ऑडियंस फिल्म की राइटिंग में ईस्टर एग्स खोजते हैं.

जैसे- हाल ही में रिलीज हुई सनी देओल की फिल्म 'जाट' में उनके किरदार का एक मजेदार डायलॉग है, जो फिल्म के ट्रेलर में भी था- 'इस ढाई किलो के हाथ का कमाल पूरा नॉर्थ देख चुका है, अब साउथ भी देखेगा.' ये डायलॉग कॉलबैक भी है और मेटा-रेफरेंस भी. 

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चूंकि सनी देओल ने अपने हाथ का वजन ढाई किलो बताने वाला ये डायलॉग पहली बार फिल्म 'दामिनी' (1993) में बोला था, इसलिए 'जाट' में इसका आना कॉलबैक है. जबकि पिछले 30 साल से ये डायलॉग उनकी पहचान बन चुका है. लेकिन उनकी ये पहचान रियल संसार में है, जिसमें आप और हम हैं. इसलिए 'जाट' के यूनिवर्स में इस डायलॉग का आना इसे 'मेटा रेफरेंस' भी बनाता है. 

90s में 'अंदाज अपना अपना' अपने तरह की पहली फिल्म थी जिसकी राइटिंग में ये जमकर इस्तेमाल किया गया था. इस फिल्म में एक्टर्स की लाइफ और पिछली फिल्मों के कई रेफरेंस थे. आइए बताते हैं कैसे...

शोले
'अंदाज अपना अपना' में 'शोले' फिल्म के कई कॉलबैक और ईस्टर एग्स हैं. प्रेम के पिता का नाम बांकेलाल भोपाली है. ये किरदार एक्टर जगदीप ने निभाया है, जिन्होंने 'शोले' में सूरमा भोपाली का किरदार निभाया था. ये सिनेमा फैन्स के लिए मजेदार ईस्टर एग था.

फिल्म में जब अमर और प्रेम ये नहीं तय कर पाते कि रवीना को इम्प्रेस करने के लिए पहले कौन जाएगा, तो उनका साथी आनंद अकेला (जावेद खान अमरोही) उन्हें 'शोले' के जय-वीरू की तरह सिक्का उछालकर ये फैसला करने की सलाह देता है. ये 'शोले' का कॉलबैक था. 

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सिक्का उछलने की सलाह देने से ठीक पहले आनंद उन दोनों से पूछता है- 'शोले देखी है?' इसपर प्रेम कहता है- 'हां 10 बार.' अमर का तुरंत जवाब आता है- 'हां इसके बाप ने लिखी है!' रियल लाइफ में सलमान के पिता सलीम खान ने जावेद अख्तर के साथ मिलकर 'शोले' लिखी थी. ये उस समय एक कमाल का मेटा-रेफरेंस था.
 
डर
सनी देओल, शाहरुख खान और जूही चावला स्टारर 'डर' 1993 में रिलीज हुई थी, यानी 'अंदाज अपना अपना' से एक साल पहले. 'अंदाज अपना अपना' की शुरुआत में अमर, जूही चावला के साथ रोमांटिक लाइफ के सपने में खोया मिलता है. इस सपने में अमर जूही को पहली बार देखकर सरप्राइज होते हुए हकला जाता है और कहता है, 'आईला ज-ज-ज-जूही चावला'. इस पर जूही कहती हैं 'मुझे लगा शाहरुख खान आ गया.' एक साल पहले आई 'डर' में शाहरुख का 'क-क-क-किरण' इतना पॉपुलर हुआ था कि लोगों को आज भी याद है. 

इसी सपने में अमर गुस्से में जूही को कहता है- 'तुम आजकल सनी देओल के साथ बहुत फिल्में कर रही हो.' ये 'डर' का रेफरेंस तो था ही, बल्कि सच में 1993 में जूही और सनी 3 फिल्मों में साथ नजर आए थे. जैसे- इज्जत की रोटी, लुटेरे और डर

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जो जीता वही सिकंदर
'अंदाज अपना अपना' में अमर यानी आमिर अपनी एंट्री पर टी-शर्ट और शॉर्ट्स में स्पोर्ट्स साइकिल चलाता नजर आता है. ये सीन फिल्म 'जो जीता वही सिकंदर' में आमिर के किरदार की याद दिलाता है. इसी तरह 'अंदाज अपना अपना' के सिक्का उछालने वाले सीन में आमिर का डायलॉग है- 'जो जीता वही सिकंदर, जो हारा वो बंदर.'

प्यार किए जा
'अंदाज अपना अपना' में प्रेम के किरदार की बैकस्टोरी ये है कि वो एक्टर बनना चाहता है और इसके लिए वो 'वाह वाह स्टूडियो' नाम के एक प्रोडक्शन हाउस में डायरेक्टर को मक्खन लगाता नजर आता है. इस डायरेक्टर का किरदार लेजेंड एक्टर महमूद ने निभाया. 

ये 'वाह वाह प्रोडक्शन' महमूद की ही एक फिल्म 'प्यार किए जा' (1966) का रेफरेंस था. उस फिल्म में भी महमूद का सपना अपनी खुद की फिल्म बनाने का था, उन्होंने अपने-अपने प्रोडक्शन हाउस का नाम 'वाह वाह प्रोडक्शन' था. 'प्यार किए जा' में भी हीरो शशि कपूर एक बेरोजगार लड़के के रोल में थे जो रईस लड़की से शादी करके अमीर बनने के चक्कर में थे. 'अंदाज अपना अपना' में अमर और प्रेम भी यही करना चाहते थे. ये ईस्टर एग फिल्म की रिलीज के समय बहुत कम दर्शक खोज पाए थे.

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मिस्टर इंडिया
'अंदाज अपना अपना' का कॉमिक विलेन क्राइम मास्टर गोगो (शक्ति कपूर) एक खानदानी विलेन था. फिल्म में वो खुद को 'मोगैम्बो' का भतीजा बताता है. 'मिस्टर इंडिया' (1987) में अमरीश पुरी ने आइकॉनिक विलेन मोगैम्बो का किरदार निभाया था. सिर्फ नाम से ही नहीं, हुलिए में भी गोगो ने खुद को मोगैम्बो की तरह दिखाने की पूरी कोशिश की थी.

 
एक्टर अजित
आमिर और सलमान की फिल्म में असली विलेन परेश रावल का किरदार तेजा था. उसके दो चेले थे-भल्ला और रॉबर्ट. भल्ला आपको हिंदी फिल्मों के आइकॉनिक विलेन अजित के अंदाज में नजर आता है, जिनका एक डायलॉग बहुत मशहूर था-' सारा शहर हमें लायन' के नाम से जानता है. और कई फिल्मों में उनके दो साथी होते थे- रॉबर्ट और मोना डार्लिंग. अजित और रॉबर्ट इतने आइकॉनिक थे कि इन दो किरदारों के साथ कई जोक्स लिखे गए हैं.

'अंदाज अपना अपना' में विलेन वाले इस पूरे प्लॉट में हिंदी फिल्मों के आइकॉनिक विलेन अजित का बहुत बड़ा रेफरेंस है. 1973 में अमितभ बच्चन स्टारर 'जंजीर' में डॉन तेजा के किरदार से अजित बतौर विलेन पॉपुलर हुए थे, 'अंदाज अपना अपना' में परेश रावल के किरदार का नाम यही था. भल्ला का रोल शहजाद खान ने किया था, जो अजित के असली बेटे थे. वो असल में रॉबर्ट बने वीजू खोटे के साथ मिलकर अजित-रॉबर्ट जोक्स को 'अंदाज अपना अपना' में रीक्रिएट कर रहे थे. 

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जिनकी बात हमने की उनके अलावा इस फिल्म में आधा दर्जन से ज्यादा फिल्मों के रेफरेंस हैं. 25 अप्रैल को जब आप थिएटर में फिर से 'अंदाज अपना अपना' देखने पहुंचें तो ईस्टर-एग्स, मेटा-रेफरेंस और कॉलबैक्स पर पूरा ध्यान रखिएगा. तब आपको डायरेक्टर राजकुमार संतोषी के लिखे स्क्रीनप्ले का असली मजा मिलेगा. 

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