बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों के नामांकन में सिर्फ दो दिन का वक्त बचा है, लेकिन अभी तक महागठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हो पाया है. कांग्रेस 60 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की जिद पर अड़ी है तो आरजेडी उसे 58 से ज्यादा सीटें देने के लिए रजामंद नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसके चलते सीट बंटवारे का मामला अभी तक उलझा हुआ है?
महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी के अलावा वामपंथी दल और मुकेश सहनी की वीआईपी शामिल है. ऐसे में आरजेडी और कांग्रेस के बीच सीट की संख्या से ज्यादा सियासी जमीन की लड़ाई है. इसके चलते ही कांग्रेस और आरजेडी के बीच शह-मात का खेल चल रहा है.
कांग्रेस बिहार में दलित-मुस्लिम (डीएम) समीकरण वाली सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. सीमांचल क्षेत्र की ज्यादा से ज्यादा सीटें कांग्रेस मांग रही है, लेकिन आरजेडी उस पर रजामंद नहीं है. आरजेडी इस बात को बाखूबी समझ रही है कि अगर उसने अपनी जमीन पर कांग्रेस को खड़े होने का मौका दे दिया तो फिर आगे की राह उसकी मुश्किल हो जाएगी.
कांग्रेस-आरजेडी में उलझा सीट का गेम
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लालू प्रसाद यादव की सियासी विरासत संभाल रहे तेजस्वी यादव ने बिहार की चुनावी जंग जीतने के लिए कांग्रेस, वामपंथी दल, माले और मुकेश सहनी की वीआईपी के साथ गठबंधन कर रखा है. इसके अलावा पशुपति पारस की पार्टी भी महागठबंधन के साथ है. माले ने सीट शेयरिंग से पहले 18 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है तो वामपंथी दल भी 7 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं. आरजेडी ने भी 40 सीटों पर सिंबल बांट दिया है, पर कांग्रेस के साथ सहमति नहीं बन पा रही.
कांग्रेस 60 से ज्यादा सीटें मांग रही है और मनपसंद वाली सीटें चाहती है. आरजेडी ने कांग्रेस के लिए 58 सीटों की लिमिट तय की है. कांग्रेस बिहार की 65 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है. सीटों की संख्या को लेकर कांग्रेस और आरजेडी में जबरदस्त तकरार देखने को मिल रही है. इसके अलावा मुकेश सहनी भी 20 सीटें मांग रहे हैं, लेकिन उन्हें 18 सीटें देने की बात आ रही है. इस बीच कांग्रेस कम से कम 138 सीटें अपने पास रखना चाहती है. इस तरह कांग्रेस और आरजेडी के बीच शह-मात का खेल चल रहा है.
सीट से ज्यादा सियासी जमीन की लड़ाई
कांग्रेस और आरजेडी के बीच लड़ाई सीट से ज्यादा सियासी जमीन की है. कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास साफ कह चुके हैं कि वो पिछली बार से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए राजी है, लेकिन कमजोर और मजबूत दोनों ही सीटें चाहिए. इससे एक बात साफ है कि कांग्रेस की नजर उन सीटों पर है, जहां पर जीत की संभावना ज्यादा हो.
कांग्रेस 2020 में 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस बार 70 से कम सीटों पर लड़ने के लिए राजी है, लेकिन उसके बदले मनपसंद सीट मांग रही है. 2020 में कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 19 सीटें जीतने में सफल रही. कांग्रेस अपने मौजूदा सभी विधायकों वाली 19 सीटें चाहती है. इसके अलावा कांग्रेस ने उन सीटों का चयन किया है, जिन पर वह दूसरे नंबर पर रही है. कांग्रेस ने पिछली बार वाली कई सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनके बदले दूसरी सीटों का चयन किया है.
कांग्रेस उन सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जिस पर वो आसानी से जीत सके. इस बार कांग्रेस ने प्लान बनाया है कि वह आरजेडी की मर्जी की सीटों के बजाय अपनी पसंद की सीटें लेगी. आरजेडी इस बात पर तैयार है कि कांग्रेस जिस सीट पर जीती थी और दूसरे नंबर पर थी, उस पर लड़ लेगी, लेकिन उसे पसंद की सीटें देने के मूड में नहीं है.
बिहार में कांग्रेस ने इस बार उन सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जो डी-एम (दलित-मुस्लिम) समीकरण और उसकी विरासत वाली रही हैं. 2024 के चुनाव में भी कांग्रेस को उन्हीं सीटों पर जीत मिली है, जहां दलित और मुस्लिम वोटर अहम रहे हैं. बिहार में कांग्रेस और आरजेडी का कोर वोटबैंक मुस्लिम है. कांग्रेस ने अपना पूरा फोकस दलित-मुस्लिम वोटों पर ही कर रखा है, जिसके लिए दलित, मुस्लिम और यादव बहुल वाली सीटों की तलाश की है, जिसे लेकर आरजेडी तैयार नहीं है.
कांग्रेस नहीं दोहरा रही 2020 वाली गलती
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जो 70 सीटें आरजेडी ने दी थीं, उनमें 45 सीटें एनडीए के मजबूत गढ़ की सीटें थीं, जिन्हें कांग्रेस पिछले चार चुनावों में नहीं जीत सकी थी. यहां बीजेपी जीत रही थी या फिर उसके सहयोगी दल जेडीयू. कांग्रेस की सहयोगी आरजेडी भी इन सीटों पर लंबे समय से जीत नहीं सकी थी. इसके अलावा 23 सीटें ऐसी थीं, जिस पर कांग्रेस के विधायक थे. इस तरह से कांग्रेस को काफी मुश्किल भरी सीटें मिली थीं.
वहीं, आरजेडी ने उन सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिस पर एम-वाई समीकरण मजबूत स्थिति में था. कांग्रेस इस बार 2020 के चुनाव वाली गलती नहीं दोहराना चाह रही है. कांग्रेस ने बिहार की उन सीटों का चयन किया है, जहां पर उसके जीत की संभावना ज्यादा हो. कांग्रेस 70 के बजाय 60 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है, लेकिन सीट विनिंग फॉर्मूले वाली चाहती है.
सीमांचल की सीटों को लेकर फंसा सियासी पेच
कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल सीमांचल और दलित बहुल वाले इलाके की सीटों का चयन किया है. इन सीटों पर कांग्रेस कोई समझौता करने के मूड में नहीं है. सीमांचल पर कांग्रेस का नो कंप्रोमाइज है. बिहार कांग्रेस के सभी सांसदों ने सीमांचल में ज्यादातर सीटों पर चुनाव लड़ने की डिमांड पार्टी हाईकमान के सामने रखी है. कांग्रेस के चार में से तीन सांसद सीमांचल क्षेत्र से हैं. कटिहार से तारिक अनवर, किशनगंज से डॉ. मो. जावेद और पूर्णिया से पप्पू यादव सांसद हैं. यही वजह है कि कांग्रेस खुद को सीमांचल इलाके में अपने आप को मजबूत मानकर चल रही है.
मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने से भी सीमांचल का इलाका कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए मुफीद लग रहा है. इसीलिए कांग्रेस सीमांचल में खुद को मजबूत मानकर चल रही है और ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है. कांग्रेस सीमांचल में ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़कर अपने सियासी वर्चस्व को कायम रखना चाहती है.
सीमांचल इलाके की 26 सीटों में से कांग्रेस ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है, लेकिन आरजेडी सिर्फ 8 सीटें ही दे रही है. सीमांचल क्षेत्र की 12 सीटों पर आरजेडी चुनाव लड़ना चाहती है. इसीलिए सीट शेयरिंग का फॉर्मूला अभी तक महागठबंधन में तय नहीं हो सका.