बिहार में अक्टूबर-नवंबर तक विधानसभा के चुनाव होने हैं. चुनावी साल में सियासी दल अलग-अलग इलाकों की सियासत साधने की कोशिश में जुटे हैं. विपक्षी महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सीएम फेस तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने पर सीमांचल डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाने का वादा कर दिया है. वहीं, मुस्लिम बाहुल्य इस इलाके में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को नए वक्फ एक्ट से एकमुश्त हिंदू वोट और पिछड़े मुस्लिमों के समर्थन की उम्मीद है. सवाल है कि वक्फ बिल से इस बार सीमांचल की पॉलिटिक्स का गणित बदलेगा?
सीमांचल की पॉलिटिक्स का गणित क्या
सीमांचल की पॉलिटिक्स का गणित समझने के लिए इलाके का भूगोल समझना भी जरूरी है. यह इलाका पश्चिम बंगाल के साथ अंतरराज्यीय और नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है. ये इलाका बांगलादेश बॉर्डर से भी काफी करीब है. सीमांचल में बिहार के चार जिले आते हैं- कटिहार, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज. मुस्लिम बाहुल्य इन चार जिलों में 24 विधानसभा सीटें हैं. जाति जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक सूबे की कुल आबादी में करीब 18 फीसदी मुस्लिम हैं. सीमांचल के इन चार जिलों की आबादी की बात करें तो किशनगंज में 68, अररिया में 43, कटिहार में 45 और पूर्णिया में 39 फीसदी हिस्सेदारी मुस्लिम समाज की है.
2020 में ओवैसी ने पहुंचाया था आरजेडी को नुकसान
सीमांचल को लालू यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस का गढ़ माना जाता था लेकिन पिछले चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन चौंकाने वाला था. बीजेपी 24 में से आठ सीटें जीत सीमांचल की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. कांग्रेस को पांच, जनता दल (यूनाइटेड) को चार, सीपीआई (एमएल) और आरजेडी को एक-एक सीटें मिली थीं.
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तब असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने भी पांच सीटें जीतकर चौंकाया था. आरजेडी की अगुवाई वाला महागठबंधन इस इलाके की सात सीटें ही जीत सका तो इसके पीछे एआईएमआईएम के प्रदर्शन को भी वजह बताया जाता है. सीमांचल की पांच सीटें जीतने के साथ ही ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार तीन सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे थे.
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लोकसभा चुनाव नतीजों से महागठबंधन उत्साहित
पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों से महागठबंधन उत्साहित है. आम चुनाव में सीमांचल की चार में से दो सीटों पर महागठबंधन को जीत मिली थी. एक सीट पर कांग्रेस से बगावत कर बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव चुनाव जीतने में सफल रहे थे. एनडीए के खाते में केवल एक सीट आई थी- अररिया. अररिया सीट पर प्रदीप कुमार सिंह ने कमल खिलाया था. पप्पू यादव भी कांग्रेस के ही समर्थन में खड़े नजर आते हैं. कुल मिलाकर देखें तो लोकसभा चुनाव में महागठबंधन सीमांचल में एनडीए पर भारी पड़ा था.
वक्फ बिल से बदलेगा सीमांचल का गणित?
सीमांचल का वोट गणित देखें तो औसतन हर सीट पर 36 से 37 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. बीजेपी और एनडीए को वक्फ कानून के बाद पसमांदा और गरीब मुस्लिमों का भी समर्थन मिलने की उम्मीद है. वहीं, महागठबंधन के नेता मुस्लिम समाज के साथ ही सेक्यूलर वोटर्स के साथ का विश्वास व्यक्त कर रहे हैं. वक्फ बिल से सीमांचल का गणित कितना बदलता है और अगर बदलाव होता है तो यह किसके पक्ष में जाएगा, ये बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे.