बिहार के चुनावी बहार में एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों ही गठबंधनों में रार है. एनडीए में सीट शेयरिंग फॉर्मूला सामने आते ही सहयोगी नाराज हैं तो इंडिया ब्लॉक में भी खींचतान है. एनडीए के छोटे सहयोगी जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा सीट बंटवारे से खुश नहीं हैं. वहीं, आरजेडी के फॉर्मूले पर कांग्रेस और मुकेश सहनी रजामंद नहीं दिख रहे हैं.
बीजेपी और जेडीयू बिहार की सियासत में छोटे दलों के साथ बड़ा धमाल करने का सपना संजोए हुए थे, लेकिन एनडीए में सीट शेयरिंग होते ही छोटे दलों ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. मांझी और कुशवाहा को मन मुताबिक सीटें ना मिलने से नाराजगी है, जिसे वे सार्वजनिक रूप से भी जाहिर कर रहे हैं.
वहीं, विपक्षी इंडिया गठबंधन में अभी तक सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पा रही है, जिसके चलते सीट बंटवारे का मामला उलझता जा रहा है. लालू यादव और तेजस्वी यादव दिल्ली आकर वापस पटना लौट चुके हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ बात नहीं बन पा रही है.
एनडीए में सीट शेयरिंग पर छिड़ा रार
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पहले बात एनडीए की. नीतीश कुमार की अगुवाई वाले एनडीए में जेडीयू और बीजेपी सहित पांच घटक दल शामिल हैं. रविवार को सीट बंटवारे के तहत बीजेपी और जेडीयू बराबर-बराबर 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति बनी, जबकि बाकी 41 सीटें तीन छोटे दलों को दी गई हैं. इसमें चिराग पासवान की एलजेपी (आर) को 29 सीटें, जीतन राम मांझी की हम को 6 सीटें और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम को 6 सीटें मिली हैं.
चिराग पासवान 29 सीटें पाकर खुश हैं, लेकिन कुशवाहा और मांझी छह-छह सीटों से संतुष्ट नहीं हैं, जिसके चलते वे अपनी नाराजगी भी जाहिर कर रहे हैं. कुशवाहा और मांझी दोनों ने अपने-अपने दल के कार्यकर्ताओं और टिकट की उम्मीद लगाए नेताओं को शांत करने के लिए सीट बंटवारे पर असहमति जता रहे हैं.
मांझी-कुशवाहा-राजभर नाराज
उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि मैं आप सभी से माफी मांगता हूं. सीटों की संख्या आपकी अपेक्षाओं के अनुसार नहीं हो सकी. मैं समझता हूं कि यह फैसला पार्टी कार्यकर्ताओं सहित हजारों लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा, जो उम्मीदवार बनने की इच्छा रखते थे. शायद आज कई घरों में खाना नहीं बना होगा. हालांकि, मुझे उम्मीद है कि आप मेरी और पार्टी की सीमाओं को समझेंगे. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से अपील करते हुए कहा कि आप अपना गुस्सा शांत रखें, वक्त बताएगा कि फैसला सही था या गलत.
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के संस्थापक जीतन राम मांझी ने 15 सीटों की मांग रखी थी, लेकिन उनके हिस्से में छह सीटें आई हैं. 2020 में 7 सीटों पर चुनाव लड़े थे और इस बार एक सीट कम हो गई है. मांझी ने कहा कि मैं आलाकमान के फैसले को स्वीकार करता हूं, लेकिन हमें कम सीटें देने के कदम से एनडीए को नुकसान पहुँच सकता है। इस तरह उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर की है.
यूपी में बीजेपी के सहयोगी सुभासपा के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर भी बिहार में एनडीए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सीट बंटवारे में उन्हें सीट नहीं मिल सकी। सुभासपा ने 29 सीटों से अपनी डिमांड शुरू की थी और बाद में पांच सीटों तक पर आ गए थे.
पार्टी के महासचिव अरुण राजभर ने कहा कि हम बीजेपी शीर्ष नेतृत्व से मिले थे और वे हमें सीट देने पर सहमत थे. इसी मद्देनजर चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन हमें कोई सीट नहीं दी गई. अगर किसी को चुनाव जीतने का अहंकार और अति आत्मविश्वास है, तो उन्हें दिखाना चाहिए कि वे कैसे जीतेंगे.
महागठबंधन में सीट पर खींचतान
विपक्षी महागठबंधन सत्ता में वापसी के लिए हरसंभव कोशिश में जुटा है, जिसके तहत आरजेडी ने कांग्रेस, लेफ्ट और मुकेश सहनी की पार्टी से गठबंधन कर रखा है. पिछले दो महीने से महागठबंधन की बैठकों का दौर चल रहा है, लेकिन सीट शेयरिंग पर अभी तक बात नहीं बन सकी है. आरजेडी और कांग्रेस में खींचतान बढ़ गई है. तेजस्वी यादव कांग्रेस को दिए अपने ऑफर पर अड़े हुए हैं तो कांग्रेस भी मनमुताबिक सीटें चाहती है.
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेताओं से तेजस्वी यादव ने स्पष्ट कह दिया कि मौजूदा हालात में गठबंधन आगे नहीं बढ़ सकता. तेजस्वी यादव ने इसके बाद 'देखेंगे और जवाब देंगे' कहकर बैठक से निकल गए. तेजस्वी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात किए बिना ही पटना लौट गए.
कांग्रेस की 61 सीटों की डिमांड आरजेडी पूरी करने को तैयार है, लेकिन उसकी कुछ ऐसी सीटों की मांग है जिन्हें देने के लिए लालू तैयार नहीं हैं.
सहनी और लेफ्ट से भी नहीं बन रही बात
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और मुकेश सहनी की गतिविधियों को लेकर भी सतर्क नजर आ रहे हैं. आरजेडी सूत्रों की मानें तो तेजस्वी को लगता है कि मुकेश सहनी विश्वसनीय नहीं हैं और अधिक की डिमांड कर रहे हैं.
तेजस्वी वीआईपी प्रमुख से नाराज बताए जा रहे हैं. इसके पीछे उनका आरजेडी की 10 मजबूत सीटों पर पहले ही पार्टी सिंबल दे देना वजह बताया जा रहा है, जिससे भ्रम की स्थिति बन रही है। ऐसी चर्चा भी थी कि सहनी बीजेपी के साथ लॉबिंग कर रहे हैं.
महागठबंधन में शामिल वामपंथी दल भी कशमकश में हैं. लेफ्ट और माले इस बार सीटों की डिमांड पिछले चुनाव से ज्यादा कर रहे हैं, जिसके चलते ही सीट शेयरिंग का मामला उलझा हुआ है. पहले चरण के नामांकन पूरे होने में चार दिन बचे हैं, लेकिन सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बन रही. इस तरह से कैसे बिहार चुनाव में महागठबंधन की दाल गलेगी?