सुबह-सुबह व्हाट्सएप पर एक मैसेज आता है, 'CBSE 10वीं-12वीं का रिजल्ट आउट'. कोई बच्चा बिस्तर पर पड़ा फोन उठाता है, कोई क्लास में बैठा है, कोई मार्केट में मां के साथ सामान ले रहा होता है… और यकायक जिंदगी जैसे रुक जाती है. आज रिजल्ट तो आ गया लेकिन सवाल उठता है, बिना किसी पूर्व सूचना के ऐसा क्यों किया जाता है? क्या इसके पीछे कोई सोच है या बस सिस्टम का फॉर्मेट?
CBSE बोर्ड के परीक्षा नियंत्रक संयम भारद्वाज का जवाब सीधा है, वो कहते हैं कि हमारा रिजल्ट जैसे ही तैयार होता है, हम उसे जारी कर देते हैं. पर क्या ये इतना आसान है? क्या इसके पीछे कोई संवेदनशील सोच नहीं होनी चाहिए? इसके जवाब में वो कहते हैं कि 42 लाख स्टूडेंट्स, 30 हजार स्कूल और 204 सब्जेक्ट, CBSE की चुनौती बड़ी है. CBSE सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है. ये 26 देशों में 30 हजार से ज्यादा स्कूलों के 42 लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स का बोर्ड है.
चेक होने के लिए खच्चर से आती हैं कॉपियां
संयम भारद्वाज आगे कहते हैं कि हमारे यहां 204 में से 203 सब्जेक्ट ऑफर होते हैं. कॉपियां चेक होने के लिए देशभर में जाती हैं, गुवाहाटी में तो कभी खच्चर से कॉपियां आती थीं. वहां अब हमने सब रिजनल ऑफिस बनाए हैं ताकि प्रोसेस फास्ट और सुरक्षित हो सके. CBSE के मुताबिक उनकी कॉपियां सिर्फ जांची नहीं जातीं, बल्कि क्रॉस चेक और स्क्रूटनी से होकर गुजरती हैं. रिजल्ट सिक्योरिटी के 125 लेवल्स से पास होता है. तभी, जैसे ही रिजल्ट तैयार होता है, वो CD में लॉक होकर अपलोडिंग के लिए भेज दिया जाता है, ताकि सुरक्षा में किसी भी तरह की सेंध न लग सके.
लेकिन फिर भी सवाल वही है कि अगर उस वक्त बच्चा घर पर अकेला हो, तो क्या होगा? इस पर संयम भारद्वाज ने कहा कि बोर्ड इसलिए रिजल्ट सुबह जारी करता है. इस तरह के हालात से बचने के लिए कोशिश की जाती है कि रिजल्ट सुबह के समय जारी किया जाए ताकि बच्चे के साथ पैरेंट्स मौजूद रहें. स्कूलों का भी देखना पड़ता है जैसे कल हम रिजल्ट जारी कर सकते थे, लेकिन हमने रिजल्ट तैयार करने की प्रोसेस धीमी कर दी क्योंकि स्कूलों में बुद्ध पूर्णिमा की छुट्टी थी. हमारा सीधा सा रूल है कि जैसे ही रिजल्ट बनकर तैयार होता है, हम उसे अपने पास रोकते नहीं हैं.
रिजल्ट का फॉर्मेट बदल गया है, अब टॉपर की रेस नहीं- प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा
माउंट आबू स्कूल दिल्ली की प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा मानती हैं कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के बाद से CBSE ने रिजल्ट का पैटर्न बदला है. अब टॉपर्स घोषित नहीं किए जाते जिससे पब्लिक प्रेशर कम हुआ है. वो कहती हैं कि मीडिया को भी चाहिए कि अब बच्चों की रैंकिंग या टॉपर्स की प्रोफाइल पर उतना जोर न डाले ताकि रिजल्ट को लेकर हौव्वा न बने.
रिजल्ट एक दिन पहले बता दो तो एंजाइटी ज्यादा बढ़ेगी– प्रिंसिपल प्रियंका गुलाटी
एवरग्रीन पब्लिक स्कूल वसुंधरा की प्रिंसिपल प्रियंका गुलाटी कहती हैं कि अगर रिजल्ट की तारीख एक दिन पहले ही बता दी जाए तो बच्चे ज्यादा तनाव में आ सकते हैं. इसलिए अचानक आना ही बेहतर विकल्प है.
अचानक रिजल्ट खतरनाक हो सकता है: पेरेंट्स एसोसिएशन
हालांकि सीबीएसई के इस तर्क से हर कोई सहमत नहीं है. पेरेंट्स एसोसिएशन की अपराजिता गौतम ने कहा कि हर बच्चा रिजल्ट को हैंडल नहीं कर सकता. जिनके नंबर कम आते हैं या जिनके पेरेंट्स ज्यादा उम्मीदें रखते हैं, उनके लिए ये बड़ा स्ट्रेस बन सकता है इसलिए पहले से माइंड मेकअप होना जरूरी है. उन्होंने ये भी बताया कि उनके बेटे का रिजल्ट भी तब आया जब वे घर पर नहीं थीं. लेकिन हमने पहले से मेंटली उसे तैयार कर रखा था कि रिजल्ट कैसा भी हो, तुमसे ज्यादा जरूरी कुछ नहीं. रिजल्ट आते ही मगर उसने हमें फोन करके घर आने को कहा.
वहीं पेरेंट्स का एक दूसरा तर्क भी सामने आ रहा है. एक पेरेंट का तर्क था कि CBSE हर साल ऐसे ही रिजल्ट जारी करता है, ये अचानक नहीं है बल्कि कुछ पेरेंट्स ही अपने बच्चों को मेंटली तैयार नहीं रखते. वहीं एक मां ने बताया कि उनकी बेटी मार्केट गई हुई थी, रिजल्ट की खबर सुनते ही घबराकर दौड़ती हुई घर आई. हमें डर लगा कि कहीं रास्ते में कोई हादसा न हो जाए क्योंकि बच्चा जब स्ट्रेस में होता है तो उसकी judgment भी गड़बड़ हो सकती है.
रिजल्ट से पहले अफवाहें न फैलें, ये सबसे बड़ी चुनौती
शिक्षाविद अमित निरंजन मानते हैं कि डिजिटल युग में CBSE बोर्ड के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती पारदर्शिता के साथ सुरक्षित माध्यम से डिजिटली रिजल्ट रिलीज करना है. अगर रिजल्ट पहले लीक हो गया तो बच्चों और पेरेंट्स का बोर्ड से भरोसा टूट सकता है. शायद यही वजह है कि CBSE अब गुपचुप और तेज़ी से रिजल्ट रिलीज करता है. वैसे सीबीएसई बोर्ड जिस लेवल पर काम करता है, उसे साइबर सुरक्षा पर काम करते हुए रिजल्ट की निश्चित तारीख साझा करनी चाहिए. इससे लोग मेंटली तैयार रहते हैं.
क्या है समाधान
बच्चों को रिजल्ट के लिए मेंटली तैयार करना चाहिए, न कि सिर्फ स्कोर के लिए.
स्कूल और पेरेंट्स दोनों को चाहिए कि बोर्ड एग्जाम खत्म होते ही बच्चों से रिजल्ट पर बातचीत शुरू करें.
रिजल्ट को ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट नहीं, एक पड़ाव समझाया जाए.
मीडिया और समाज दोनों को चाहिए कि टॉपर्स की रेस या शर्मिंदगी का दबाव न बनाएं.