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JEE Mains 2025: बीमार मां, मजदूर पिता... कोटा से मिली मदद के बाद अब इंजीनियर बनेगा बिहार का लाल!

JEE Mains 2025 Sujit Madhav success story: बिहार के शेखपुरा निवासी सुजीत ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है. परिवार को रोज खाने के लिए रोज कमाना पड़ता है. पिता चुनचुन कुमार खेती करते हैं और मां किरण देवी गृहिणी हैं. खेती से घर का अनाज जितना हो पाता है, बाकि समय मजदूरी या छोटे-मोटे काम कर परिवार का खर्च चलाना पड़ता है. घर भी आधा कच्चा आधा पक्का बना हुआ है.

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जेईई मेन्स क्रैक करने वाले सुजीत माधव की कहानी
जेईई मेन्स क्रैक करने वाले सुजीत माधव की कहानी

JEE Mains Success Story: मजबूरी हो या बदकिस्मती यदि मजबूत हौसला है तो हर जंग जीती जा सकती है. कोचिंग नगरी कोटा की केयरिंग और मजबूत हौसले का एक और बड़ा उदाहरण सामने आया है. कहानी बिहार के शेखपुरा निवासी छात्र सुजीत माधव की है. कच्चा-पक्का मकान, गरीब परिवार और बीमार मां... कई कठिनाईयों के बावजूद सुजीत ने कभी हार नहीं मानी और अपने इंजीनियर बनने के सपने की ओर बढ़ता गया.

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बिहार का रहने वाला सुजीत माधव कोटा में रहकर इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम (JEE Mains) की तैयारी कर रहे हैं. सुजीत ने 2025 में दोनों जेईई मेन्स सेशन के लिए आवेदन किया था. जनवरी सेशन के जेईई मेन्स रिजल्ट में सुजीत ने 98.555 पर्सेंटाइल स्कोर किया था, लेकिन दूसरे सेशन का एग्जाम नहीं दे पाए. 

कुछ मिनट की देरी से नहीं दे पाया जेईई मेन्स सेशन-2
जेईई मेन्स सेशन-2 की परीक्षा के दिन सुजीत साइकिल चलाकर एग्जाम सेंटर पहुंचा था. साइकिल लॉक कर जा रहा था कि सामने ही गेट बंद हो गए और सुजीत बाहर ही रह गए. अब जेईई मेन्स सेशन-1 के रिजल्ट 98.555 पर्सेंटाइल स्कोर के आधार पर जेईई एडवांस्ड के लिए क्वालीफाई किया है. 

कोचिंग ने 70% फीस माफ की
सुजीत अपनी मां की बीमारी को लेकर भी पिछले दो साल से परेशान है, लेकिन हार नहीं मानी. सुजीत को एलन कोटा ने दोनों वर्ष शुल्क में विशेष रियायत भी दी और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. सुजीत ने कहा, 'मेरे पास कोचिंग फीस भरने के पैसे नहीं थे तो एलन ने 70% तक फीस में रियायत दे दी. दो तीन साल से इसी तरह फीस दे रहा हूं.' 

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मां को पहले ब्रेन हेमेरेज फिर कैंसर
बिहार के शेखपुरा निवासी सुजीत ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है. परिवार को रोज खाने के लिए रोज कमाना पड़ता है. पिता चुनचुन कुमार खेती करते हैं और मां किरण देवी गृहिणी हैं. खेती से घर का अनाज जितना हो पाता है, बाकि समय मजदूरी या छोटे-मोटे काम कर परिवार का खर्च चलाना पड़ता है. घर भी आधा कच्चा आधा पक्का बना हुआ है. सुजीत पढ़ाई में होशियार था, इसलिए वर्ष 2023 में कोटा आया और कोटा के एलन कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया. 

पिता ने ब्याज लेकर बेटे को भेजा था कोटा
पिता ने गांव में साहूकारों से ब्याज पर पैसा उधार लेकर सुजीत को पढ़ने भेजा था. सुजीत यहां अच्छा प्रदर्शन कर रहा था लेकिन 8 नवंबर 2023 को मां को ब्रेन हेमरेज हो गया. मां से लगाव होने के कारण सुजीत काफी परेशान हुआ. कुछ दिनों के लिए घर गया लेकिन 12वीं की परीक्षा देनी थी इसलिए भाई के समझाने पर वापिस कोटा आ गया. यहां फैकल्टीज ने मोटिवेट किया और उसने 12वीं कक्षा 81 प्रतिशत अंकों से पास की. सुजीत ने 10वीं कक्षा 85 प्रतिशत अंक हासिल किए थे. पिछले साल मां को कैंसर ने घेर लिया, मां का इलाज एम्स पटना में चल रहा है. 

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कोटा केयर्स: पीजी संचालिका ने दो साल से नहीं लिया किराया
सुजीत ने कहा, 'हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और कोटा में पढ़ाई करना सपने के जैसा था लेकिन हिम्मत कर के जैसे-तैसे कोटा आ गया. कोटा के लोग काफी अच्छे और सपोर्टिव हैं. मैं पिछले दो साल से तलवंडी में जिस पीजी में रह रहा हूं, उसका मुश्किल से दो या तीन बार किराया दिया है. पीजी की संचालिका ने बोला हुआ है कि आप पढ़ाई करो, किराए की टेंशन मत लो, जिस दिन इंजीनियर बन जाओ तो मुझे बता देना. मेरे लिए वही किराया है.'

घर से भागकर कोटा आया था बड़ा भाई 
मजदूर परिवार के तीन बेटों के इंजीनियर बनने की कहानी वर्ष 2016 में शुरु हुई थी. जब सबसे बड़ा बेटा रजनीश इंजीनियर बनने का सपना लेकर बिना बताए कोटा आया था. रजनीश ने बताया, 'परिवार की स्थिति कोटा भेजने की नहीं थी इसलिए पापा ने साफ मना कर दिया था. मुझे कोटा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन ये पता था कि कोटा-पटना ट्रेन कोटा जाती है. इसलिए जेब में 500 रुपये लेकर घर से भागकर कोटा आ गया. मुझे याद नहीं लेकिन, मैंने शायद ट्रेन का टिकट भी नहीं खरीदा था. बस रिस्क लेकर ट्रेन में बैठ गया. यहां आने के बाद मैंने कोचिंग इंस्टीट्यूट को स्थिति समझाई. उन्होनें एक हॉस्टल में रुकवा दिया.' 

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कोटा ने ऐसे बदली जिंदगी
सुजीत के बड़े भाई रजनीश ने आगे बताया, 'हॉस्टल संचालक ने भी किराया नहीं मांगा और कोचिंग में भी दो महीने तक ऐसे ही पढ़ाई की. इसके बाद दादाजी ने पैसों की व्यवस्था की.' इसके बाद वर्ष 2019 में रजनीश अपने सबसे छोटे भाई सुजीत को लेकर भी कोटा आ गया. उस समय सुजीत 9वीं कक्षा में था. कोटा में रहने के दौरान रजनीश ने बीच वाले भाई मृत्युंजय को गाइड किया और उसे स्टडी मैटेरियल भी भेजा, जिससे मृत्युंजय ने पढ़ाई की. 

वर्ष 2020 में रजनीश ने जेईई मेन्स दिया और एडवांस के लिए क्वालीफाई किया, लेकिन रैंक पीछे आने की वजह से कॉलेज नहीं मिला. ऐसे में जेईई मेन्स के आधार पर नालंदा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की मैकेनिकल ब्रांच में एडमिशन ले लिया. इसके बाद वर्ष 2022 में मृत्युंजय ने भी नालंदा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की इलेक्ट्रिकल ब्रांच में एडमिशन लिया. 

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मां की बीमारी के कारण बीच में छोड़ी बीटेक की पढ़ाई
सुजीत के बड़े भाई रजनीश कुमार ने बताया, 'हम तीन भाई और एक बहिन हैं. सबसे बड़ा मैं हूं और मैं पटना के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक कर रहा था. मां की बीमारी की वजह से मुझे बीटेक बीच में छोड़नी पड़ी लेकिन सुजीत और बीच वाले भाई को पढ़ा रहा हूं. सुजीत घर पर रहता था तो घास काटने जाता था, गाय चराने जाता था और घर के अन्य कामों में व्यस्त रहता था लेकिन पढ़ाई में होशियार था. जब ये 8वीं में था तो 10वीं क्लास की ट्रिग्नोमेट्री सॉल्व कर देता था. इसे देखते हुए ही मैंने पापा से बात की और बड़ी मुश्किल से सुजीत को कोटा भेजने के लिए तैयार किया.' सुजीत ने जेईई मेन्स-1 निकाल लिया है और अब जेईई एडवांस्ड की तैयारी कर रहा है.

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