MP Teacher Recruitment: मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बच्चों का भविष्य दांव पर है. एक तरफ स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, तो दूसरी तरफ योग्य और शिक्षित युवा नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं. प्रदेश में चल रही शिक्षक भर्ती प्रक्रिया ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है, जो न बच्चों की जरूरतें पूरी कर रही है, न ही युवाओं के सपनों को पंख दे रही है. आइए, इस खबर को करीब से समझते हैं.
10 हजार से अधिक पदों पर शिक्षक भर्ती
दरअसल, मध्य प्रदेश में शिक्षक पदों पर कुल 10,756 रिक्तियों के लिए भर्ती परीक्षा शुरू होने वाली है. मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल (ईएसबी) 20 अप्रैल 2025 से प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षक चयन परीक्षा शुरू करेगा. प्रदेश के 13 शहरों में होने वाली इस भर्ती परीक्षा में 1.50 लाख से अधिक अभ्यर्थियों के शामिल होने की उम्मीद है.परीक्षा दो शिफ्ट आयोजित की जाएगी.
स्कूल हैं, क्लासरूम हैं, लेकिन शिक्षक नहीं...
मध्य प्रदेश के स्कूलों की स्थिति चिंताजनक है. आगर मालवा जिले के चांचली बल्डी प्राथमिक स्कूल में सिर्फ एक बच्चा और एक शिक्षक हैं. सुनने में लगता है कि सरकार ने बच्चे के लिए शिक्षक रखा, लेकिन यह तस्वीर पूरे प्रदेश की हकीकत बयां करती है. आगर मालवा के ही मदनखेड़ा स्कूल में छठी से आठवीं तक 50 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन एक भी स्थायी शिक्षक नहीं है. पढ़ाई का जिम्मा अस्थायी शिक्षकों या अतिथि शिक्षकों के हवाले है.
'अयोग्य टीचर' स्कूलों में पढ़ा रहे
भोपाल से 15 किलोमीटर दूर रातीबड़ का सरकारी स्कूल में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के भरोसे चल रहा है. उनके पास बीएड या राज्य शिक्षक पात्रता नहीं है. शिक्षकों की कमी को ढकने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्कूलों में पढ़ाने पर मजबूर किया जा रहा है. बैतूल में पहली से पांचवीं तक की कक्षाएं एक अकेला शिक्षक संभालता है. सिवनी जिले में तो एक ही कमरे में पांच कक्षाएं चल रही हैं.
सात साल में 35,266 शिक्षक भर्ती, गेस्ट टीचर्स के कंधों पर शिक्षा व्यवस्था
आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं, प्रदेश के 47 जिलों में 6,858 स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. 46 जिलों के 1,275 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है. पूरे मध्य प्रदेश में करीब 90,000 शिक्षक पद खाली हैं. इस साल नई भर्ती के बाद भी करीब 70 हजार पद खाली रह जाएंगे. वहीं 2018 से अब तक सात साल में 35,266 पदों पर भर्ती हुई हैं. स्कूलों में 72 हजार अतिथि शिक्षक कार्यरत हैं. इन आंकड़ों से साफ है कि मध्य प्रदेश के लाखों बच्चों का शिक्षा का अधिकार छिन रहा है.
डिग्री है, नौकरी नहीं... चाय बेचकर या भैंस पालकर चला रहे घर
दूसरी तरफ, वे युवा जो शिक्षक बनने की योग्यता रखते हैं, उनकी कहानी भी कम दुखद नहीं. कैलाश विश्वकर्मा, जिनके पास एमएससी और बीएड की डिग्री है, कभी अतिथि शिक्षक थे. लेकिन अब वे गोदाम में बोरे गिनने का काम कर रहे हैं. प्रेम नारायण, जो हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, चाय बेचने को मजबूर हैं. विनोद गांव में दूध बेचकर घर चलाते हैं. इन युवाओं के पास डिग्री है, प्रतिभा है, लेकिन नौकरी नहीं.
शिक्षक भर्ती: जरूरत से बहुत कम
मध्य प्रदेश में हाल ही में 10,758 शिक्षक पदों के लिए भर्ती निकली है. यह सुनने में बड़ा आंकड़ा लगता है, लेकिन हकीकत में यह जरूरत का छोटा सा हिस्सा है. इस भर्ती के लिए 1.60 लाख से ज्यादा लोगों ने आवेदन किया है, यानी हर पद के लिए 16 उम्मीदवारों की होड़ है. जबकि प्रदेश में 90,000 शिक्षक पद खाली हैं. सवाल यह है कि सरकार इतने बड़े पैमाने पर खाली पदों को भरने के लिए तत्परता क्यों नहीं दिखाती? टुकड़े-टुकड़े में भर्ती क्यों हो रही है?
बिहार का भी कुछ यही हाल
मध्य प्रदेश की तरह बिहार में भी शिक्षा व्यवस्था बदहाल है. बेगूसराय के तेघड़ा में मॉडल इंटर कॉलेज की इमारत देखकर लगता है कि यह शानदार स्कूल होगा. लेकिन अंदर का नजारा निराश करता है. ताले टूटे हुए, धूल से भरे कमरे, टूटी बेंच और गिनी-चुनी मेजें. क्लासरूम की हालत बताती है कि न तो यहां शिक्षक नियमित आते हैं, न ही बच्चे. यह स्कूल जनता के पैसे की बर्बादी का जीता-जागता सबूत है. यह स्थिति न सिर्फ बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि उन लाखों युवाओं के सपनों का भी अपमान है, जो शिक्षक बनकर समाज को बेहतर बनाना चाहते हैं.