भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के बाद पूरी दुनिया में परमाणु युद्ध की आशंका को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी. इससे पहले रूस-यूक्रेन वॉर के दौरान भी ऐसी चर्चाएं आम रही हैं. ऐसे में कई बार एक ऐसे विनाशकारी परमाणु हथियार प्रणाली की चर्चा होती है, जो पूरी दुनिया का सफाया करने में सक्षम है, जिसे 'डेड हैंड' कहा जाता है. जानते हैं ये शब्द 'डेड हेंड' कैसे प्रचलन में आया और ये क्या होता है.
शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका और पश्चिमी देशों में सोवियत रूस की ओर से एक घातक परमाणु हथियार प्रणाली स्थापित करने की बात सामने आई थी, जिसे 'डेड हैंड' कहा गया. शीत युद्ध के दौरान बहुत सी बेहतरीन तकनीकें विकसित की गईं. इसमें नोविचोक नर्व एजेंट, दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हथियार और रूस का प्रलयकारी उपकरण डेड हैंड, कुछ ही नाम हैं.
शीत युद्ध के समय पहली बार आया था नाम सामने
शीत युद्ध के समय सोवियत संघ ने एक ऐसी घातक परमाणु हथियार प्रणाली विकसित की जो विश्व को समाप्त करने वाला था. यह किसी मानव के आदेश के बिना ही अपने सभी परमाणु हथियारों को लॉन्च कर सकता था.
रूस के पास परमाणु हथियारों का बड़ा जखीरा
रूस के पास वर्तमान में अनुमानित 1,600 तैनात सामरिक परमाणु हथियार हैं, तथा 2,400 अन्य सामरिक परमाणु हथियार अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों से जुड़े हैं. यह रूस को दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु शक्ति बनाता है.
रूस के नेस्तनाबूद होने पर भी परमाणु बम लॉन्च कर सकता है 'डेड हैंड'
बताया जाता है कि ये सभी हथियार स्वचालित परमाणु हथियार नियंत्रण प्रणाली, पेरिमीटर या परिधि से जुड़े हैं. इसी परिधि को असल में 'डेड हैंड'कहा जाता है. ऐसे संकट की स्थिति में जब संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से पहला हमला हो सकता है, उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी या सैन्य कमांडर पेरिमीटर को सक्रिय कर सकते हैं. पेरिमीटर यह गारंटी देता है कि रूस तब भी जवाब दे सकता है जब उसकी पूरी सशस्त्र सेना नष्ट हो जाए.
परमाणु हमले को रोकने के लिए विकसित की गई है प्रणाली
एक बार चालू होने के बाद, पेरिमीटर सिस्टम परमाणु हमले के जवाब में पूरे रूसी परमाणु शस्त्रागार को लॉन्च कर सकता है. यह पारस्परिक रूप से सुनिश्चित विनाश के शीत युद्ध सिद्धांत का हिस्सा था, जो परमाणु हमलों को रोकने का एक साधन था. यह सुनिश्चित करता था कि पहला हमला करने वाला पक्ष भी नष्ट हो जाएगा. इसी प्रणाली को डेड हैंड कहा गया.
कैसे काम करता है डेड हैंड
इस सिद्धांत के अनुसार, कमांड और कंट्रोल सिस्टम सैन्य आवृत्तियों, विकिरण स्तरों, वायु दाब, गर्मी और भूकंपीय गड़बड़ी की फ्रिक्वेंसी को मापता है. यदि ये गड़बड़ियां कहीं भी परमाणु हमले की ओर इशारा करता है, तो पेरिमीटर या परिधि, जिसे डेड हैंड प्रणाली कहा जाता है, एक क्रम शुरू करती है जो रूसी शस्त्रागार में मौजूद सभी आईसीबीएम की फायरिंग के बाद समाप्त होगी.
पेरिमीटर एक कमांड रॉकेट लॉन्च करेगा, जिसमें रेडियो वारहेड लगा होगा जो रेडियो जैमिंग की मौजूदगी के बावजूद रूसी परमाणु साइलो को लॉन्च ऑर्डर भेजेगा. रॉकेट पूरे देश में उड़ान भरेगा. इस तरह के कमांड रॉकेट की व्यवहार्यता साबित करने के लिए कई परीक्षण लॉन्च के बाद, पेरिमीटर सिस्टम 1985 में ऑनलाइन हो गया.
रूस ने स्पष्ट तौर पर ऐसे विनाशकारी हथियार की नहीं की पुष्टि
हालांकि, सोवियत संघ ने कभी इस बात की पुष्टि नहीं की कि ऐसी कोई प्रणाली कभी अस्तित्व में थी, लेकिन रूसी सामरिक मिसाइल बलों के जनरल सर्गेई कराकेव ने 2011 में एक रूसी अखबार से इसकी पुष्टि करते हुए कहा था कि अमेरिका को 30 मिनट में नष्ट किया जा सकता है. रूसी सरकारी मीडिया ने भी कई बार सजेस्ट किया है कि रडार प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और रूस की नई हाइपरसोनिक मिसाइलों को शामिल करने के लिए सिस्टम को अपग्रेड किया गया था.
चूंकि परिधि अभी भी सक्रिय है , इसलिए स्वचालित, कंप्यूटर-जनरेटेड परमाणु हमले का खतरा अभी भी बना हुआ है. अब जबकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस के परमाणु हथियारों को हाई अलर्ट पर रखा है , तो हो सकता है कि उन्होंने रूस के प्रलय दिवस डिवाइस को भी नोटिस में ले लिया हो.