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घर की खिड़कियों तक पहुंच गई मिट्टी... रेत में धीरे-धीरे दफन हो रहा ये शहर!

सहारा के रेगिस्तान में एक शहर धीरे-धीरे रेत में दफन हो रहा है. यहां कुछ ऐसे भी घर हैं, जिनकी खिड़कियों तक रेत पहुंच गया है. जानते हैं रेत में दफन हो रहे इस शहर की क्या है कहानी.

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धीरे-धीरे रेत में दफन हो रहा है सहारा में स्थित ये शहर (Photo - AI Generated)
धीरे-धीरे रेत में दफन हो रहा है सहारा में स्थित ये शहर (Photo - AI Generated)

हमने अब तक शहरों को समुद्र में डूबते सुना होगा, लेकिन ऐसे घटनाक्रम के बारे में काफी कम सुना है कि कोई शहर या बस्ती धीरे-धीरे रेत में डूब रही हो. ये सच है दुनिया के एक कोने में ऐसा भी एक शहर है जो रेत में दफन हो रहा है. जानते हैं कहां है ये जगह और वहां ऐसा क्यों हो रहा है? 

अफ्रीका में स्थित सहरा दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान है. इसी के दायरे में एक देश आता है मॉरिटानिया. मॉरिटानिया में चिंगुएट्टी नाम एक छोटा सा शहर है. यह  रेगिस्तानी शहर एक गंभीर प्राकृतिक समस्या का सामना कर रहा है. ये जगह धीरे-धीरे रेत में दफन होता जा रहा है. हर दिन इस शहर की सड़कों पर घरों के किनारे कई फुट रेत जमा हो जा रही है. 

'पुस्तकालयों का शहर'
रेगिस्तानी बस्ती चिंगुएट्टी को एक और नाम से जाना जाता है.  इसे 'पुस्तकालयों का शहर' भी कहा जाता है. यहां के पुस्तकालयों में सदियों पुरानी कई महत्वपूर्ण किताबें हैं.  इन किताबों ने ही इसे यह इतिहास और यह महत्व दिया है. द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां के एक पुस्तकालय में दसवीं सदी की एक कुरान संरक्षित है. जिसके पन्ने समय के साथ भूरे पड़ गए हैं.

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किताबों के बिना भूला दिया गया होता ये शहर
इन पुरानी धूल भरी किताबों के बिना, चिंगुएट्टी किसी भी अन्य परित्यक्त शहर की तरह भुला दिया गया होता.चिंगुएट्टी 13वीं शताब्दी में कसर नामक एक प्रकार की किलेबंद बस्ती के रूप में प्रसिद्ध हुआ , जो ट्रांस-सहारा व्यापार मार्गों पर चलने वाले कारवां के लिए एक पड़ाव स्थल के रूप में कार्य करता था. 

बाद में यह मक्का जाने वाले मगरेब तीर्थयात्रियों के लिए एक सभा स्थल बन गया और समय के साथ, इस्लामी और वैज्ञानिक विद्वता का केंद्र बन गया. इसे 'पुस्तकालयों का शहर', रेगिस्तान का सोरबोन और इस्लाम का सातवां पवित्र शहर भी कहा जाता है. इसके पांडुलिपि पुस्तकालयों में उत्तर मध्य युग के वैज्ञानिक और कुरानिक ग्रंथ रखे गए थे.

धीरे-धीरे रेत में दफन हो रहा ये शहर
आज दशकों से ये शहर सहारा रेगिस्तान की रेत के अतिक्रमण से जूझ रहा है. इस सदियों पुराने ज्ञान के स्रोत का रेत के अंदर दफन होने का खतरा पैदा हो गया है. यहां रहने वाले लोग पलायन कर रहे हैं. यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में गिरावट आई है. वर्तमान आबादी का अधिकांश हिस्सा मूल कसर सीमाओं के बाहर की इमारतों में रहता है.

यूनेस्को ने घोषित किया है विश्व धरोहर 
67 साल के सैफ इस्लाम, अल अहमद महमूद लाइब्रेरी फाउंडेशन के संरक्षक हैं, जो जनता के लिए अब भी खुले दो पुस्तकालयों में से एक है. वे पांडुलिपियों को बचाने और कसर में अपने देशवासियों की इसमें रुचि बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कसर उन मॉरिटानियाई बस्तियों में से एक है, जिसे 1996 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था.

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इस्लाम का कहना है कि चिंगुएटी अफ्रीका की आध्यात्मिक राजधानी है. इस्लाम इस शहर में पैदा हुए और पले-बढ़े और 2015 में मॉरिटानियाई राजधानी नौआकचोट में सिविल सेवा की नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद यहां लौटे हैं. 

अब टूरिस्ट भी नहीं आते
इस्लाम ने कहा कि यहां पर्यटन का मौसम सितंबर या कभी-कभी दिसंबर से मार्च तक होता है. पहले, रोजाना सैकड़ों पर्यटक आते थे. अब, हर सीज़न में मुश्किल से 200 पर्यटक आते हैं. कोविड के बाद, पर्यटन में भारी गिरावट आई है. माली में असुरक्षा का असर मॉरिटानिया पर भी पड़ा है.

अभी भी बचे हैं कई पुस्तकालय
शहर में कुल मिलाकर 12 परिवार-संचालित लाल ईंटों वाले पुस्तकालय अभी भी चल रहे हैं. इनमें कुल मिलाकर 2,000 से ज़्यादा खंड हैं. इनमें कुरान की पांडुलिपियां और खगोल विज्ञान, गणित, चिकित्सा, कविता और माघरेब तथा पश्चिमी अफ्रीका के कानूनी न्यायशास्त्र पर 11वीं शताब्दी से चली आ रही किताबें शामिल हैं.

यहां कई कीमती सामान पूरे क्षेत्र के व्यापारियों द्वारा लाए गए थे. अन्य सामान कथित तौर पर पास की एक बस्ती अब्वियर से आए थे. यहां के कुछ पुस्तकालयों के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना 777 ईस्वी में हुई थी और बाद में यह पूरी तरह से रेत के टीलों में डूब गई.

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रेत के टीलों से ढक गई हैं कई इमारतें  
मॉरिटानिया का 90% हिस्सा रेगिस्तान या अर्ध-रेगिस्तान माना जाता है. साहेल में, रेगिस्तानीकरण तेजी से बढ़ रहा है. चिंगुएट्टी में टीले पहले से ही शहर की कुछ इमारतों की खिड़कियों की ऊंचाई तक पहुंच चुके हैं. कई ऐसे घर हैं जो अब पूरी तरह से रेत से ढंक गए हैं. इनमें कुछ ऐसे भी घर हैं जहां पहले लाइब्रेरी थी. 

यहां के लोगों का कहना है कि उनकी याददाश्त के हिसाब से शहर में 30 से ज़्यादा परिवार पुस्तकालय संचालित करते थे, लेकिन लोगों के चले जाने के बाद, खासकर 1960 और 70 के दशक के सूखे के दौरान, इनकी संख्या कम होती गई. 

पर्यटकों की कमी से जो थोड़े-बहुत पुस्तकालय बचे हैं, उनके लिए धन की कोई कमी नहीं है. इस्लाम ने कहा कि यूनेस्को की मान्यता निरंतर वित्तीय सहायता में तब्दील नहीं हुई, और सार्वजनिक व निजी संस्थाओं द्वारा किए गए धन के वादे अधूरे रह गए हैं.

शहर के साथ प्राचीन विरासत भी रेत में हो रहे दफन
इस्लाम ने कहा कि वह भी चाहते हैं कि उनके देशवासी प्राचीन विरासतों को रेत में डूबने से बचाने की दौड़ में शामिल हों. क्योंकि, रेत में सिर्फ यह छोटा सा शहर नहीं दफन होगा. इसके साथ सदियों पुरानी विरासत और पाडुलिपियों के रूप में यहां के पुस्तकालयों में सहेज कर रखी गई कई महत्वपूर्ण कई महत्वपूर्ण धरोहर भी रेत में दफन हो जाएंगे. 

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उन्होंने कहा कि दुख की बात है कि मैं देख रहा हूं कि यूरोपीय लोग अरबों या मॉरिटानियाई अधिकारियों से भी ज़्यादा चिंगुएट्टी में रुचि रखते हैं, लेकिन चिंगुएट्टी संकट में है. उसे सबकी जरूरत है.

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