BHU PhD Admission: यह पहली बार है जब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने किसी विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया में दखल दिया है. यूजीसी ने 28 अप्रैल 2025 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया पर रोक लगा दी. यह फैसला सत्र 2024-25 के लिए 466 पीएचडी सीटों को प्रभावित करता है, जो अब जांच पूरी होने तक खाली रहेंगी.
यूजीसी ने बीएचयू पीएचडी एडमिशन पर क्यों लगाई रोक?
यूजीसी ने यह कार्रवाई पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमों के पालन को लेकर सवालों के बाद की है. हाल ही में यूजीसी ने देशभर के विश्वविद्यालयों में पीएचडी प्रोग्राम की गुणवत्ता की जांच शुरू की थी. इस दौरान बीएचयू में अनियमितताओं की शिकायतें सामने आईं. यूजीसी को शिकायत मिली कि बीएचयू ने पीएचडी प्रवेश के लिए निर्धारित नियमों का पूरी तरह पालन नहीं किया.
दरअसल, पहले बीएचयू रिसर्च एंट्रेंस टेस्ट (RET) के जरिए पीएचडी में दाखिला देता था, लेकिन 2024-25 सत्र से यूजीसी के नए नियमों के तहत UGC NET/CSIR NET स्कोर के आधार पर प्रवेश शुरू किए गए. हालांकि, इस प्रक्रिया में भी पारदर्शिता की कमी की शिकायतें मिलीं. इसके अलावा, कुछ छात्र संगठनों और सोशल मीडिया पोस्ट्स के अनुसार, बीएचयू प्रशासन पर भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप भी लगे हैं.
यूजीसी की कार्रवाई
बीएचयू एडमिशन से संबंधित गड़बड़ियों और पक्षपात के आरोपों के बाद, यूजीसी ने प्रवेश प्रक्रिया पर रोक लगाने के साथ एक जांच समिति गठित करने का फैसला लिया है. यह कमेटी बीएचयू के पीएचडी प्रोग्राम की जांच करेगी. यूजीसी ने यह भी चेतावनी दी है कि नियमों का उल्लंघन करने वाले अन्य विश्वविद्यालयों पर भी कार्रवाई की जाएगी. बीएचयू को निर्देश दिया गया है कि पीएचडी प्रवेश पर तब तक कोई कार्रवाई न करें जब तक कमेटी की रिपोर्ट सामने नहीं आ जाती और इस संबंध में उपयुक्त अधिकारी द्वारा फैसला नहीं लिया जाता.
यूजीसी के अनुसार विश्वविद्यालयों को यूजीसी विनियम 2022 के अनुसार पीएचडी में एडमिशन देने और डिग्री प्रदान करने के लिए न्यूनतम मानक प्रक्रिया का पालन करना होगा. इन विनियमों का पालन और अमल में लाने के लिए सुनिश्चित करने के लिए यूजीसी ने कमेटी बनाने का फैसला लिया है.
प्रभाव और प्रतिक्रिया
इस रोक से बीएचयू में पीएचडी करने की इच्छा रखने वाले छात्रों को झटका लगा है. कई छात्रों ने सोशल मीडिया पर निराशा जताई है, लेकिन कुछ ने इस कदम का स्वागत किया, क्योंकि उनका मानना है कि इससे पक्षपात और भ्रष्टाचार रुकेगा और प्रक्रिया पारदर्शी होगी. हालांकि, कुछ का कहना है कि जांच में देरी से छात्रों का भविष्य प्रभावित हो सकता है.