राजस्थान की राजधानी में इन दिनों आदमखोर कुत्तों का आतंक बना हुआ है. पिछले 8 दिनों में इन आदमखोर कुत्तों ने दो दर्जन लोगों को अपना शिकार बनाया है. इनमें बच्चे भी शामिल हैं. एक बच्चे को तो कुत्ते घसीटकर झाड़ियों में ले गए थे, जिसे वहां मौजूद लोगों ने बामुश्किल बचाया.
राजधानी में कुत्तों के आतंक की एक और बानगी सामने आई, जब एक बच्चे पर उन आदमखोर कुत्तों ने हमला कर दिया. वो बच्चा किस्मत से बच गया, लेकिन उसके जिस्म पर 70 से ज्यादा घाव हैं. वो मासूम अब कपड़े भी नहीं पहन पा रहा है.
इस पूरे मामले में हैरानी की बात ये है कि इन कुत्तों को पकड़ने और काबू करने के लिए जिम्मेदार जयपुर नगर निगम और उसके ठेकेदारों के बीच भुगतान को लेकर विवाद चल रहा है. इसी वजह से ठेकेदारों ने बीती 10 मई से कुत्ते पकड़ने का काम बंद कर दिया था.
हालांकि राजधानी के पशु नियंत्रण अधिकारी दावा कर रहे हैं कि उनकी गाड़ियां शहर में घूम-घूम कर कुत्तों को पकड़ रही हैं. वो आंकड़े गिनाते हुए दावा कर रहे हैं कि शनिवार को 18 कुत्ते पकड़े गए जबकि रविवार को 25 कुत्तों को पकड़ा गया. इसी तरह बीते सोमवार को भी 12 कुत्ते पकड़ में आए.
जबकि सच ये है कि कुत्ते पकड़ने वाली गाड़ियां शहर में निकली ही नहीं और ना ही उन्होंने कुत्ते पकड़े. कुत्ते पकड़ने का काम करने वाली गैरसरकारी संस्था ह्यूमन वेलफेयर सोसायटी से जुड़े डॉक्टर सुनील चावला के अनुसार बीते 11 माह में 8170 कुत्ते पकड़े गए और उनका बधियाकरण भी किया गया.
चावला के मुताबिक इस काम के लिए 60 लाख रुपये तय हुए थे. जिसमें से उन्हें केवल 5 लाख रुपये का भुगतान किया गया है. इसी वजह से वे लोग 3 माह से कुत्ते पकड़ने वाले कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पाए हैं. इस पूरे मामले के लिए जयपुर नगर निगम प्रशासन जिम्मेदार है.
इन घटनाओं के सुर्खियों में आ जाने के बाद नगर निगम के अधिकारियों में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में कमिश्नर ने शहर का दौरा किया और इस मामले में लापरवाही बरतने के लिए पशु नियंत्रण शाखा के उपायुक्त भोमाराम सैनी को उनके पद से हटा दिया.
कुत्तों को पकड़ने के दावों के बीच इन घटनाओं ने नगर निगम के अधिकारियों और ठेकेदारों को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. हालांकि कमिश्नर समेत आला अधिकारी शहर का दौरा कर रहे हैं. लावारिस कुत्तों की निगरानी की जा रही है.
हर साल मार्च अप्रैल में इन कुत्तों को लेकर सर्वे होता है. जिसके मुताबिक शहर में 60 से 70 फीसदी कुत्तों की नसबंदी की गई है. लेकिन कुत्तों को रखने की जगह और संसाधनों की कमी की वजह से करीब एक हजार से ज्यादा कुत्तों का बधियाकरण नहीं हो पाया है.
जानकारों का मानना है कि अगर जिला प्रशासन और नगर निगम सहयोग करे तो 2 साल में 100 प्रतिशत कुत्तों की नसबंदी हो सकती है. जानकार कहते हैं कि शहर में कुत्तों को पकड़ने का एक एजेंसी को ना देकर, चार एंजेसियों को देना चाहिए. फिलहाल, कुत्तों को पकड़ने वाले सभी कर्मचारी हड़ताल पर हैं. अब शहर के लोगों को संभल संभल कर घर से निकलना पड़ा रहा है.