अयोध्या के एक मेडिकल कॉलेज में कार्यरत प्रभुनाथ मिश्रा ने जहर खाकर खुदकुशी कर ली. उन्हीं के अस्पताल में इलाज के बावजूद उनकी मौत हो गई. मौत के कारण का पता लगाने के लिए विसरा सैंपल लखनऊ फॉरेंसिक लैब भेजा गया. लैब की रिपोर्ट में जहर की पुष्टि नहीं हुई. इसके बाद परिवार के शक जताने पर विसरा सैंपल हैदराबाद भेजा गया. वहां की लैब रिपोर्ट ने खुलासा किया कि विसरा सैंपल बदल दिया गया है. ये हैरान कर देने वाला खुलासा था.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विसरा सैंपल के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है? क्या किसी शख्स की विसरा की पूरी रिपोर्ट ही बदली जा सकती है? क्या रेप के केस में भी डीएनए सैंपल के साथ फ्रॉड होता है? आजतक ने दो साल पहले फरवरी 2023 में कुछ फॉरेंसिक लैब के ऊपर एक स्टिंग ऑपरेशन किया था. इसमें ये सनसनीखेज खुलासा हुआ था कि विसरा और डीएनए रिपोर्ट को बदला जा सकता है. इसके लिए बाकयदा लाखों रुपए की घूस ली जाती है.
वो बात पुरानी थी, अब केस नया है. अयोध्या के राजर्षि दशरथ मेडिकल कॉलेज में प्रभुनाथ मिश्रा काम करते थे. 7 अगस्त 2024 को इन्होंने जहर खाकर खुदकुशी की कोशिश की थी. जब घरवालों को पता चला की प्रभुनाथ ने जहर खा लिया है तो वो फौरन उसे उसी मेडिकल कॉलेज में ले गए. लेकिन उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उनको लखनऊ रेफर किया गया था. मेडिकल कॉलेज की डिस्चार्ज स्लिप में साफ लिखा गया कि मामला अज्ञात जहर का है.
लखनऊ रेफर किए जाने के बाद प्रभुनाथ मिश्रा को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 8 अगस्त को भर्ती किया गया. लेकिन उसी रोज उनकी मौत हो गई. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ही प्रभुनाथ का पोस्टमॉर्टम हुआ. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ये लिखा गया कि मौत की वजह पता नहीं चल रही इसीलिए विसरा प्रिजर्व करके उसे फॉरेंसिक लैब भेजने की जरूरत है ताकि विसरा रिपोर्ट के जरिए ये पता किया जा सके कि प्रभुनाथ ने कौन सा जहर खाया था.
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद अब प्रभुनाथ के विसरा को लखनऊ एफएसएल यानि फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी भेज दिया जाता है. लेकिन जैसे ही लखनऊ फॉरेंसिक लैब से विसरा की रिपोर्ट आती है, प्रभुनाथ मिश्रा के पूरे परिवार के पैरों तले जमीन खिसक जाती है. क्योंकि उन्होंने जहर खाने के बाद ना सिर्फ अपने घरवालों को ये बात बताई थी बल्कि अस्पताल में उसका इलाज भी जहर को लेकर ही हो रहा था. लेकिन लखनऊ एफएसएल की रिपोर्ट में विसरा से कोई भी जहर नहीं मिला.
घरवाले हैरान थे कि बेटे ने जहर खाकर खुदकुशी की लेकिन रिपोर्ट कह रही थी कि प्रभुनाथ ने जहर खाया ही नहीं. अब घरवालों को शक होता है. लिहाजा वो पुलिस में अर्जी देते हैं ये शक जताते हुए कि विसरा की रिपोर्ट बदल दी गई है या फिर पूरा विसरा ही बदल दिया गया है. इसके बाद परिवार की मांग पर अब उसी विसरा के बचे सैंपल को हैदराबाद की सीडीएफडी यानि सेंट्रर फोर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक भेजा जाता है. प्रभुनाथ मिश्रा के मां-बाप का डीएनए सैंपल भी.
इसके बाद अब हैदराबाद की सीडीएफडी लैब की रिपोर्ट आती है. ये रिपोर्ट हरएक को पहले से भी ज्यादा हैरान कर देती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रभुनाथ मिश्रा के मां-बाप का डीएनए सैंपल प्रभुनाथ के विसरा से मैच नहीं करता. यानि रिपोर्ट के मुताबिक प्रभुनाथ को जन्म देने वाले मां-बाप डीएनए सैंपलिंग के हिसाब से उसके मां-बाप थे ही नहीं. यहां डीएनए सैंपल गलत नहीं था, ना डीएनए रिपोर्ट में कोई गलती हुई, बल्कि प्रभुनाथ मिश्रा का विसरा बदल दिया गया था.
वीवीआईपी कल्चर के विरोध ने ली प्रभुनाथ मिश्रा की जान
ऐसे में प्रभुनाथ मिश्रा के मां-बाप के डीएनए से मिलान होता भी तो कैसे? अब साफ है कि प्रभुनाथ मिश्रा के विसरा के साथ खेल किया गया. ये खेल हुआ कैसे? इसके पीछे कौन लोग शामिल हैं? उससे भी बड़ा सवाल ये कि प्रभुनाथ मिश्रा को जहर खाना ही क्यों पड़ा था? तो इस कहानी की शुरुआत होती है 29 जुलाई 2024 को. प्रभुनाथ मेडिकल कॉलेज में पेशेंट रजिस्टर सेंटर में क्लर्क थे. उनका काम मरीजों को पर्ची देना था. 29 जुलाई को दो लेडी डॉक्टर प्रभुनाथ से पर्ची कटवाने आई.
वीआईपी कल्चर के नाम पर अलग से पर्ची देने से इनकार करने पर प्रभुनाथ मिश्रा के साथ अस्पताल के डॉक्टरों और छात्रों ने पिटाई कर दी. इसके बाद 7 अगस्त को मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार प्रभुनाथ को अपने कमरे में बुलाते हैं और एक शिकायत पत्र दिखाते हैं. प्रिंसिपल कहते हैं कि वो दोनों लेडी डॉक्टर से माफी मांगे वरना उसके खिलाफ छेड़खानी का मामला पुलिस में दर्ज कर दिया जाएगा. इल्जाम, जेल का खौफ, नौकरी जाने के डर से प्रभुनाथ ने 7 अगस्त को जहर खा लिया.
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने दर्ज कराया छेड़खानी का केस
जहर खाने के बाद वो अपनी मां और पिता को ये बात बताता है. प्रभुनाथ को इसके बाद फौरन अस्पताल ले जाया जाता है. डॉक्टर जहर का ही इलाज शुरु कर देते हैं. लेकिन देर रात तक उसकी हालत बिगड़ने लगती है. इसके बाद 8 अप्रैल की सुबह उसे लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. अब तक मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और उन लेडी ड़ॉक्टर को भी ये पता चल चुका था कि प्रभुनाथ ने जहर खाकर खुदकुशी करने की कोशिश की है.
उन्हें इस बात का भी अहसास था कि शायद वो अब बचेगा नहीं. लिहाजा खुद को बचाने के लिए 8 अगस्त के तड़के करीब 3 बजे प्रिंसिपल और डॉक्टर की तरफ से पुलिस में प्रभुनाथ मिश्रा के खिलाफ छेड़खानी का केस दर्ज करा दिया जाता है. इधर प्रभुनाथ के खिलाफ केस दर्ज होता है, उधर लखनऊ पहुंचने के कुछ घंटे बाद ही उसकी मौत हो जाती है. क्योंकि मामला जहर से हुई मौत का था लिहाजा पोस्टमॉर्टम के अलावा प्रभुनाथ के विसरा के सैंपल प्रिजर्व कर दिए जाते हैं.
प्रभुनाथ ने परिजनों को खुद बताई जहर खाने की बात
विसरा के जिन अंश के सैंपल लिए जाते हैं उनमें स्टमक का टुकड़ा, आंत का टुकड़ा, लिवर का टुकड़ा, किडनी का टुकड़ा और स्प्लिन का टुकड़ा शामिल था. यानि कायदे से विसरा के सैंपल तक ढंग से नहीं लिए गए. अब इसी सैंपल को लखनऊ के इसी फॉरेंसिक लैब में भेजा जाता है. वहां केमिकल जांच के बाद अपनी रिपोर्ट देती है. रिपोर्ट ये कि विसरा की जांच में कोई रासायनिक विष नहीं पाया गया. ये रिपोर्ट हैरान करने वाली थी. प्रभुनाथ मिश्रा के परिजन मानने को तैयार नहीं थे कि रिपोर्ट सही है.
प्रभुनाथ मिश्रा ने खुद जहर खाने की बात बताई थी. अस्पताल में इलाज भी जहर का हो रहा था. बाकायदा एमएलसी में भी संदिग्ध जहर की बात लिखी थी. लेकिन लखनऊ सीएफएसएल कुछ और ही कह रहा था. लिहाजा प्रभुनाथ के परिवार ने इस विसरा की रिपोर्ट देश के नामी फॉरेंसिक लैब सीडीएफडी हैदराबाद में कराने की मांग की थी. परिवार को विसरा की रिपोर्ट से ज्यादा इस बात का शक था कि विसरा के सैंपल ही बदल दिए गए हैं. इसीलिए उन्होंने उसकी खुद के डीएनए से मिलान कराने की अर्जी दी.
आखिर किसने बदली प्रभुनाथ मिश्रा की विसरा रिपोर्ट?
इस एक रिपोर्ट के आते ही सारा खेल खुल गया. ये साफ हो गया कि प्रभुनाथ मिश्रा की विसरा रिपोर्ट नहीं विसरा को ही बदल दिया गया. अब सवाल ये है कि ये रिपोर्ट या विसरा कोई क्यों बदलेगा? और कौन बदलेगा? जाहिर है ये काम उसी का होगा जिसको ये डर होगा कि कहीं प्रभुनाथ मिश्रा की खुदकुशी के केस में वो फंस ना जाए. इस पूरे मामले में शक के घेरे में सीधे अस्पताल के डॉक्टर औऱ प्रिंसिपल हैं. प्रिंसिपल डॉक्टर ज्ञानेंद्र कुमार को घोटाले के मामले में पहली ही हटाया जा चुका है.
फिलहाल पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है. प्रभुनाथ की खुदकुशी के मामले में कोर्ट के आदेश पर सस्पेंड प्रिंसिपल डॉक्टर ज्ञानेंद्र कुमार और दोनों लेडी डॉक्टर, डॉक्टर निर्मला कुमावत और डॉक्टर ऋतु के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है. अब सवाल ये है कि विसरा बदलने का खेल हुआ कैसे. तो ये तीन ही तरह से हो सकता है. पहला पोस्टमॉर्टम करने वाले स्टाफ और लोकल पुलिस मिल जाए. दूसरा लोकल पुलिस और फॉरेंसिक लैब के स्टाफ मिल जाए. तीसरा अकेले फॉरेंसिक लैब के स्टाफ सैंपल बदल दे.