प्रॉपर्टी खरीदारों को अक्सर लाखों रुपये लगाने के बाद धोखा मिलता है. ऐसे फ्रॉड से बचाने के लिए रेरा (UP Real Estate Regulatory Authority) ने लोगों को आगाह किया है कि किसी भी प्रॉपर्टी में निवेश से पहले ये जांच जरूर करें कि प्रोजेक्ट रेरा में रजिस्टर्ड है या नहीं. बता दें कि देश भर में सैकड़ों ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जहा पैसे लगाकर लाखों खरीदार फंस चुके हैं. कहीं बिल्डर पैसे लेकर फरार हो गए तो कहीं कानूनी लफड़े में फंसकर लोग सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं.
यूपी रेरा ने खरीदारों को पारदर्शिता सुनिश्चित करने और धोखाधड़ी को रोकने के लिए निवेश करने से पहले अपने पोर्टल पर प्रोजेक्ट के विवरण और प्रमोटर की विश्वसनीयता को सत्यापित करने की सलाह दी है. यूपी रेरा ने अपने पोर्टल पर प्रमोटरों के बारे में सभी जानकारी दी है. जो खरीदारों को प्रोजेक्ट और प्रमोटर के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है.
रेरा अध्यक्ष संजय भूसरेड्डी ने कहा है कि खरीदार को RERA पोर्टल के होमपेज पर जाना चाहिए, होम पेज पर सर्च लिंक में पंजीकृत प्रोजेक्ट्स पर क्लिक करना चाहिए, उसके सामने प्रमोटरों और प्रोजेक्ट्स की एक लिस्ट खुल जाएगी. इस पेज पर, उसे प्रमोटर या प्रोजेक्ट का नाम या प्रोजेक्ट का पंजीकरण नंबर देकर सर्च करना होगा. उन्होंने कहा कि लोगों को रेरा के कामों से तभी फायदा होगा जब वो स्वयं सतर्क रहेंगे और जल्दबाजी में या अधूरी जानकारी के आधार पर किसी भी प्रॉपर्टी में निवेश नहीं करेंगे. रेरा ने यह सुनिश्चित करने का निर्णय लिया कि आवंटियों के पैसे सुरक्षित और सही तरीके से उपयोग किए जाएं.
रेरा ((UP Real Estate Regulatory Authority) ये कानून लाने का मकसद बिल्डरों की मनमानी और उनकी धोखाधड़ी को रोकना था. 2016 से पहले रियल एस्टेट का सेक्टर काफी असंगठित हुआ करता था. आम आदमी को प्रॉपर्टी खरीदने में काफी परेशानियां झेलनी पड़ती थीं. खरीदारों के हितों को देखते हुए सरकार 2016 में ये कानून लेकर आई. ये एक नियामक संस्था है, जो रियल एस्टेट क्षेत्र की निगरानी और विनियमन करती है, पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता को बढ़ावा देती है, साथ ही खरीदारों और डेवलपर्स दोनों के हितों की रक्षा करती है. किसी भी तरह के प्रॉपर्टी खरीदार को अगर धोखा मिला हो, तो उसके खिलाफ वो रेरा में शिकायत दर्ज करा सकता है.
हर राज्य सरकार की रेरा अथॉरिटी होती है, जो जितने भी रियल एस्टेट के प्रोजेक्ट हैं, उनको रेगुलेट करने का काम करती है. बिल्डरों को शुरू की गई सभी परियोजनाओं के लिए मूल दस्तावेज जमा करने होते हैं, खरीदार की सहमति के बिना बिल्डर योजना में कोई बदलाव नहीं कर सकता है. इस कानून के बनने के बाद सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि कोई भी प्रोजेक्ट बेचने से पहले बिल्डर को उसका अप्रूवल लेना जरूरी होता है. जब प्रोजेक्ट बनाने से पहले अप्रूवल लिया जाएगा तो जाहिर है कि कौन उसको बना रहा है उसके बारे में सारी बातें रिकॉर्ड पर आ जाएंगी, जिससे प्रॉपर्टी खरीदने वाले को पता चल जाता है कि वो किस तरह की प्रॉपर्टी खरीद रहा है.
कुछ फ्लैट बायर्स की ये भी शिकायत रहती है कि अगर वो रेरा में शिकायत लेकर जाते हैं, तो बिल्डर की तरफ से उन्हें बुकिंग कैंसिल करने की धमकी दी जाती है. महागुन मोटांज के एक फ्लैट खरीदार राहुल टंडन कहते हैं कि उनको जब वक्त पर फ्लैट नहीं मिला, तो उन्होंने रेरा में शिकायत की, लेकिन उसके बाद हालात और खराब हो गए. बिल्डर की तरफ से यूनिट कैंसिल करने की धमकियां मिलने लगीं.
रेरा को लागू हुए करीब 9 साल बीत गए हैं, लेकिन लोगों की यही शिकायत रहती है कि रेरा महज कागजी शेर है. दिल्ली-एनसीआर में आज भी सैकड़ों ऐसी इमारतें हैं, जो खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं, लेकिन उसका कोई समाधान नहीं निकल रहा है. ऐसे में रेरा की सख्ती से हो सकता है बायर्स को कुछ फायदा मिले.
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