मुंबई और महाराष्ट्र के कई ज़िलों में सालों से सरकारी नियंत्रण में पड़ी 11 ज़िलों में 462 Enemy Properties अब जल्द ही सार्वजनिक नीलामी के लिए तैयार हैं. इन संपत्तियों को सार्वजनिक करने और फिर उनकी बिक्री की प्रक्रिया में केंद्र और राज्य सरकारें तेज़ी ला रही हैं. यह न केवल सरकार के लिए राजस्व जुटाने का एक बड़ा अवसर है, बल्कि यह उन दशकों पुराने कानूनी विवादों को भी सुलझाने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जो इन संपत्तियों से जुड़े रहे हैं. सवाल यह है कि ये संपत्तियां क्या हैं, ये सरकार के पास कैसे आईं, और आम लोग इन्हें कैसे खरीद सकते हैं?
मुंबई में पहचानी गई 462 संपत्तियों में से ज़्यादातर शहर के प्रमुख इलाकों में हैं. इन संपत्तियों में सबसे ज़्यादा 181 मुंबई उपनगर में, 78 द्वीपीय मुंबई में, 90 ठाणे में, 77 पालघर में, और कुछ संपत्तियां छत्रपति संभाजीनगर, जलगांव और रत्नागिरी जैसे ज़िलों में स्थित हैं. इनमें कई पुराने बंगले, सिनेमा हॉल, चॉल और फ्लैट्स शामिल हैं, जैसे ताड़देव की डायना टॉकीज बिल्डिंग, बोरी चॉल हाउस, कोलाबा की दो इमारतें, मोती सिनेमा, और कांदिवली की काले खां चॉल शामिल हैं. 2017 में अधिनियम में संशोधन के बाद, इन संपत्तियों की गिनती और निगरानी में तेजी आई थी.
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मुंबई में ऐसी संपत्तियों की नीलामी की तैयारी तेज़ हो गई है. भारतीय शत्रु संपत्ति अभिरक्षक (CEPI) और राज्य सरकार मिलकर इन संपत्तियों का पूरा रिकॉर्ड तैयार कर रही हैं. इतना ही नहीं राजस्व विभाग ने हर संपत्ति से जुड़े मुकदमे, अतिक्रमण और किरायेदारी की जानकारी जुटा ली है. अधिकारियों के मुताबिक, यह काम लगभग पूरा हो चुका है और जल्द ही हर जिले के कलेक्टर अपनी वेबसाइट पर इन संपत्तियों की सूची जारी करेंगे. क्योंकि सरकार का लक्ष्य है कि अतिक्रमण हटाकर और निवासियों को स्पष्ट अधिकार देकर नीलामी की प्रक्रिया को आसान और पारदर्शी बनाया जाए.
शत्रु संपत्ति (Enemy Property) वह प्रॉपर्टी होती है जो भारत के खिलाफ युद्ध करने वाले देशों के नागरिकों या उनके परिवारों ने भारत में छोड़ी थी. दरअसल 1947 के बंटवारे, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान कई लोग पाकिस्तान या चीन चले गए. ऐसे में हुआ ये कि उनकी बची ज़मीनें, इमारतें, दुकानें या कारोबार भारतीय सरकार के नियंत्रण में आ गए. बाद में इन्हीं सभी संपत्तियों को “शत्रु संपत्ति” कहा गया.
1968 में बना शत्रु संपत्ति अधिनियम इन संपत्तियों की देखरेख के लिए “शत्रु संपत्ति संरक्षक” (Custodian) नियुक्त करता है. इस कानून के अनुसार, इन संपत्तियों का न तो कोई व्यक्ति उत्तराधिकार ले सकता है और न ही उन्हें बेचा या ट्रांसफर किया जा सकता है. इनका उपयोग और रखरखाव पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में रहता है.
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2017 में सरकार ने इस कानून में महत्वपूर्ण संशोधन किया गया. इसके तहत यह साफ़ किया गया कि अगर मूल मालिक या उसका परिवार भारतीय नागरिक भी बन जाए, तो भी वह इन संपत्तियों का हकदार नहीं होगा. इसके अलावा किसी भी अदालत को इन संपत्तियों से जुड़े विवादों पर सुनवाई करने से रोक दिया गया. इतना ही नहीं संशोधन के बाद सरकार ने तय किया कि इन संपत्तियों को बेचा जा सकता है और उनकी कमाई सरकार के खाते में जाएगी.
इसमें केंद्र सरकार अब एक और बदलाव लाने की तैयारी में है, ताकि किरायेदारों और वहां रहने वालों के अधिकार साफ़तौर पर तय किए जा सकें और नीलामी की प्रक्रिया तेज़ हो सके. हालांकि इस नए संशोधन को आने में अभी समय लग सकता है, लेकिन इससे कानूनी अड़चनें दूर हो जाएंगी.
देखा जाए तो भारत में सरकार के पास करीब 12,611 दुश्मन संपत्तियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में हैं. ऐसे में इन संपत्तियों की नीलामी से सरकार को हज़ारों करोड़ रुपये की आमदनी हो सकती है. इतना ही नहीं मुंबई जैसी महंगे रियल एस्टेट वाले शहर में यह रियल एस्टेट सेक्टर के लिए भी बड़ा अवसर बन सकता है.
हालांकि इन संपत्तियों पर अब तक कानूनी विवाद और किरायेदारों से जुड़ी समस्याएं बड़ी रुकावट रही हैं. ऐसे में अगर नीलामी सफल होती है, तो यह सरकार के लिए आर्थिक लाभ के साथ-साथ दशकों से बंद पड़ी इन ऐतिहासिक इमारतों को भी नया जीवन देगी.