scorecardresearch
 

कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट और सबवेंशन स्कीम: 'फ्री EMI' का झांसा, क्यों फंस रहे हैं खरीदार?

देश भर के लाखों लोग कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट और सबवेंशन स्कीम के जाल में ऐसे फंसे हैं कि उनके लिए अपना घर बुक कराना बुरा सपना बन गया है. लोगों को पहले ये जानना जरूरी है कि घर खरीदने से पहले किन बातों का ख्याल रखना जरूरी है.

Advertisement
X
लोगों के लिए घर खरीदना क्यों बना चुनौती? (Photo-ITG)
लोगों के लिए घर खरीदना क्यों बना चुनौती? (Photo-ITG)

भारत में एक आम आदमी के लिए घर खरीदना मतलब जिंदगी भर की कमाई लगाना होता है. लोग दशकों तक मेहनत कर अपनी बचत इकट्ठा करते हैं और फिर हाउसिंग लोन लेकर अपने सपनों का घर खरीदने का साहस करते हैं. लेकिन लाखों परिवार ऐसे हैं जिनकी यह मेहनत अधूरे और रुके हुए प्रोजेक्ट्स में फंसी हुई है. कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान और सबवेंशन स्कीम जैसी योजनाएं, जिन्हें सतह पर आकर्षक दिखाया जाता है, वास्तव में खरीदारों को गंभीर आर्थिक संकट में धकेल रही हैं. 

aajtak.in से प्रॉपर्टी एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा कहते हैं- ' देश के 42 शहरों में करीब 2 हजार हाउसिंग प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं, जिनकी कीमत 5 लाख करोड़ के करीब है. सिर्फ एनसीआर में 1636 प्रोजेक्ट्स में 4.31 लाख यूनिट्स फंसी हुई हैं. ग्रेटर नोएडा सबसे बड़ा संकटग्रस्त क्षेत्र है, जहां 74,645 यूनिट्स अधूरी हैं. इसके बाद ठाणे में 57,520 और गुरुग्राम में 52,509 यूनिट्स का निर्माण रुका हुआ है. ये केवल नंबर नहीं हैं, इनके पीछे वे परिवार हैं, जिन्होंने अपनी सारी जमा-पूंजी, ईएमआई और किराया एक साथ झेलकर भी घर का सपना पूरा नहीं किया.'

यह भी पढ़ें: पैसे दिए, लेकिन घर नहीं मिला... Mahagun Montagge प्रोजेक्ट में फ्लैट बायर्स परेशान


कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान

प्रदीप मिश्रा आगे कहते हैं-  'कंस्ट्रक्शन लिंक्ड पेमेंट प्लान (CLP) को प्रॉपर्टी बाजार में सबसे पारदर्शी और सुरक्षित योजना बताया जाता है. इसमें खरीदार से निर्माण की प्रगति के अनुसार भुगतान लिया जाता है. उदाहरण के तौर पर 10% बुकिंग पर, 10% एग्रीमेंट पर, 15% फाउंडेशन बनने पर और 15% प्लिंथ तक पहुंचने पर.  सुनने में यह खरीदार-हितैषी लगता है, लेकिन असलियत यह है कि बिल्डर इस शेड्यूल को इस तरह डिजाइन करते हैं कि शुरुआती 6-8 महीनों में खरीदार 70-80% तक भुगतान कर देता है, जबकि उस समय तक निर्माण की वास्तविक लागत केवल 40-50% ही होती है. जैसे ही टॉप फ्लोर तैयार होता है, बिल्डर खरीदार से लगभग पूरा पैसा वसूल चुका होता है, लेकिन फिनिशिंग, लिफ्ट, इलेक्ट्रिकल, वॉटर-सीवेज, और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर अभी भारी खर्च बाकी होता है. इस स्थिति में बिल्डर की रुचि प्रोजेक्ट पूरा करने में कम हो जाती है, क्योंकि पैसा पहले ही मिल चुका है. नतीजा यह होता है कि प्रोजेक्ट अधूरा छूट जाता है और खरीदार फंसा रह जाता है.'

Advertisement

यह भी पढ़ें: 15 होली, 15 दिवाली बीत गई, नहीं मिला घर... Rudra Palace Heights के बायर्स कब तक रहेंगे 'बेघर'?

क्या होता है सबवेंशन स्कीम?

कंस्ट्रक्शन लिंक्ड प्लान में जब लोगों को खामियां दिखीं तो खरीदारों को लुभाने के लिए ‘सबवेंशन स्कीम’ लाई गई, जिसमें खरीदार केवल 5-15% शुरुआती भुगतान करता है और बाकी रकम बैंक लोन के रूप में सीधे बिल्डर को देता है. कॉट्रैक्ट के मुताबिक, कब्जा मिलने तक ईएमआई भरने की जिम्मेदारी बिल्डर की होती है. 

प्रदीप बताते हैं- 'यह योजना पहली नजर में खरीदारों को बहुत आकर्षक लगती है, जब तक घर का कब्जा नहीं मिलता, तब तक ईएमआई नहीं देनी पड़ती. इससे खरीदार किराए और लोन की किस्त, दोनों से बच जाते हैं. लेकिन असली समस्या तब शुरू होती है, जब बिल्डर किसी वजह से कंस्ट्रक्शन रोक देता है और बैंक को ईएमआई देना बंद कर देता है, ऐसे में, चूंकि लोन का असली मालिक खरीदार होता है, बैंक सीधे उससे ईएमआई की मांग करने लगता है. इस दोहरी मार से खरीदार फंस जाता है, उसे एक साथ किराया और घर की ईएमआई, दोनों का बोझ उठाना पड़ता है.' 

यह भी पढ़ें: 'रिटायरमेंट के पैसे से फ्लैट बुक कराया, बच्चों ने घर से निकाला..' कहां जाएं Earth Towne के घर खरीदार

Advertisement

खरीदारों के लिए सुझाव

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर बायर्स कैसे सही बिल्डर का चुनाव करें और ऐसी धांधली से बचें.
प्रदीप कहते हैं- ' सबसे जरूरी है किसी भी प्रोजेक्ट में निवेश से पहले बिल्डर का पिछला रिकॉर्ड जांच लें और ऐसे में प्रोजेक्ट में पैसा लगाएं जो रेरा में रजिस्टर्ड हो. अगर बिल्डर की तरफ से शुरुआती चरण में 70-80% भुगतान मांगा जा रहा है, तो सतर्क रहें. सबवेंशन स्कीम जैसी आकर्षक योजनाओं में बिना वकील की सलाह के पैसे न लगाएं.'

 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement