केन्द्र सरकार यदि जीएसटी का सबसे बड़े फायदा कंज्यूमर को पहुंचाना चाहती हैं तो इसके लिए जरूरी है कि जीएसटी की स्टैंडर्ड दर 18 फीसदी रखने पर आम सहमति जल्द से जल्द बनाए. फिलहाल राज्यों में स्टेट वैट की स्टैंडर्ड दर 14.5 फीसदी है और सर्विस टैक्स की दर 15 फीसदी है वहीं सेंट्रल एक्साइज की दर 12 फीसदी के आसपास है. 1 जुलाई से केन्द्र सरकार 4 टैक्स स्लैब वाली जीएसटी को लागू करने जा रही है. लेकिन इससे उसका 1 नेशन 1 टैक्स का सपना तब तक पूरा नहीं होगा जबतक वह पूरे देश के लिए सभी उत्पादों पर एक टैक्स व्यवस्था को लागू करे.
मौजूदा जीएसटी प्रावधान के मुताबिक जीएसटी लागू होने के बाद उन राज्यों को अधिक फायदा होना तय है जहां औद्योगिक गतिविधियां अधिक है. वहीं जिन राज्यों में फैक्ट्री और इंडस्ट्री कम अथवा नहीं है को नुकसान का सामना करना पड़ेगा. हालांकि जीएसटी में उन राज्यों को केन्द्र से मदद दी जाएगी जिन्हें नए टैक्स व्यवस्था में कर में नुकसान होगा. वहीं चुनौती उन राज्यों के लिए अधिक होगी जहां कारोबार के अधिक संसाधन मौजूद नहीं हैं.
1 जुलाई से लागू होने वाले जीएसटी के मुताबिक करदातों पर टैक्स असेसमेंट का काम दोनों केन्द्र और राज्य करेंगे. कर दाताओं को एक दर्जन से अधिक पंजीकरण कराने होंगे और टैक्स चोरी अथवा कम टैक्स अदा करने पर सजा का प्रावधान भी किया गया है. जीएसटी के इस पहलू में सुधार नहीं किया गया तो लागू होने के बाद कारोबारियों में टैक्स का खौफ बढ़ने का खतरा है. वहीं मौजूदा टैक्स ढ़ांचे से बड़ा टैक्स नेटवर्क भी खड़ा हो सकता है जिससे संभालना केन्द्र सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी.
मौजूदा जीएसटी ढ़ांचे में पॉवर, पेट्रोलियम प्रोडक्ट और स्टांप ड्यूटी को जीएसटी से बाहर रखते हुए राज्यों के क्षेत्र में छोड़ दिया गया है. लेकिन किसी भी तरह की आर्थिक गतिविधि के लिए लैंड और पॉवर सबसे बड़ा खर्च होता है. लिहाजा, जीएसटी से होने वाले नुकसान के चलते राज्यों की कोशिश भरपाई करने के लिए इन चीजों पर अधिक टैक्स लगाने की होगी. ऐसे में देश में कारोबार की न तो लागत कम की जा सकेगी और न ही कीमतों को काबू किया जा सकेगा. लिहाजा, एक मजबूत जीएसटी के लिए अहम है कि देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए इन चीजों को जीएसटी के दायरे में लाने पर सहमति बने.