दुनिया के लिए दो अच्छी खबरें (Good News) आई हैं. एक तो भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर (Indo-PAK Ceasefire) हो गया है. तो दूसरी ओर दुनिया में ट्रंप टैरिफ को लेकर छिड़ा ट्रेड वार खत्म होने के संकेत मिले हैं, क्योंकि अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड डील (US-China Trade Deal) पर सहमति बन गई है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि एक-दूसरे के आगे झुकने को तैयार नहीं चीन और अमेरिका में Tariff पर बात बनी कैसे? क्या अमेरिका को मंदी का डर (US Recession) सताने लगा था और चीन को अमेरिका से पंगा महंगा पड़ने लगा था. आइए समझते हैं...
2 अप्रैल से जारी टैरिफ की जंग
सबसे पहले बता दें कि अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने बीते अप्रैल महीने की 2 तारीख को दुनिया के तमाम देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariff) लगाया था और उसके निशाने पर सबसे आगे चीन था. ट्रंप अपने चुनावी कैंपेन के समय से ही कहते दिखे थे कि जो देश अमेरिकी सामानों पर ज्यादा टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी उनकी चीजों पर ज्यादा टैरिफ बढ़ाएगा. इसके बाद लिब्रेशन डे बताते हुए उन्होंने दो अप्रैल को टैरिफ का ऐलान कर दिया.
US-China में छिड़ा था ट्रेड वार
खास बात ये रही कि टैरिफ के इस वार में अमेरिका के निशाने पर सबसे आगे चीन (China) रहा और ट्रंप ने सबसे ज्यादा टैरिफ ड्रैगन पर ही लगाया. चीन भी झुकने को तैयार नहीं था और पलटवार करते हुए अमेरिकी आयात पर टैरिफ में इजाफा कर दिया. दोनों देशों के बीच इसके बाद ऐसी तनातनी चली कि US Tariff On China बढ़कर 145% कर दिया गया, तो चीन ने भी बड़ा कदम उठाते हुए अमेरिकी आयात पर 125% का टैरिफ लगा दिया. इसके बाद ग्लोबल ट्रेड वार (Global Trade War) जैसे हालात बन गए. यहां टेंशन तब और बढ़ी, जब डोनाल्ड ट्रंप ने 9 अप्रैल को तमाम देशों को 90 दिन के लिए टैरिफ से छूट दे दी, लेकिन चीन को इससे दूर रखा.
टैरिफ के असर पर आईं ऐसी रिपोर्ट्स
Trump Tariff और US-China Trade War को लेकर बीते महीने कई रिपोर्ट्स आईं, जिनमें इस ट्रेड वार के चलते अमेरिका में मंदी आने की संभावना जताई गई, तो वहीं चीन की इकोनॉमी पर इसके बुरे असर के बारे में खुलासे किए गए. बात अमेरिका की करें, तो चीनी आयात पर टैरिफ से अमेरिका के रिटेल बिजनेस पर बढ़ती कीमतों का सीधा असर दिखने लगा. सप्लाई चेन रुकने और ट्रेड फ्लो में गिरावट से मंदी का खतरा बढ़ने लगा और अमेरिका को मंदी के साथ ही 1.2 ट्रिलियन डॉलर के व्यापार घाटे की चिंता सताने लगी. इस टैरिफ वार की वजह से दोनों देशों के बीच 600 बिलियन डॉलर का व्यापार ठप्प हो गया था.
चीन में फैक्ट्रियों पर लगने लगे ताले
एक ओर जहां US को मंदी का डर सताने लगा, तो दूसरी ओर अमेरिका में डिमांड घटने से चीन को तगड़ा झटका लगता हुआ नजर आया. अप्रैल के आखिर में आई सीएनबीसी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कई चीनी फैक्ट्रियों पर ताले लटकने लगे और कारोबार ठप पड़ गया. इसमें बताया गया कि US Tariff के असर के चलते चीनी निर्माता अपना प्रोडक्शन रोक रहे हैं. खिलौने (Chinese Toys), खेल से जुड़े सामान और कम कीमत वाले प्रोडक्ट्स बनाने वाली फैक्ट्रियों पर ट्रंप टैरिफ का सबसे बुरा असर दिखा. चीन में इस संकट (China Crisis) के बीच गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) ने चीन में लगभग 1 से 2 करोड़ कर्मचारियों पर संकट की आशंका जाहिर की थी.
अचानक ट्रंप का यू-टर्न, चीन भी तैयार
टैरिफ के चलते छिड़े ट्रेड वार से आर्थिक नुकसान और इसके असर से मंदी और इकोनॉमी पर संकट को देखते हुए आखिरकार अमेरिका और चीन में बात हुई और अब 90 दिनों के लिए टैरिफ वॉर थम गया है. इस सहमति का असर सीधा दुनिया के शेयर बाजार पर पड़ा और ये सोमवार को जोरदार तेजी के साथ उछले. अगर US-China में हुए समझौतों पर गौर करें, तो अमेरिका ने अगले 90 दिनों के लिए चीनी आयात पर टैरिफ में 115% की कटौती करते हुए इसे घटाकर 30 फीसदी कर दिया है. पहले 145 फीसदी टैरिफ लगाया जा रहा था. तो वहीं चीन ने भी अमेरिका से आने वाले सामानों पर टैरिफ को घटाकर 10 फीसदी कर दिया है. जो कि पहले 125 फीसदी टैरिफ लगा करता था. हालांकि, दोनों के देशों के बीच ये समझौता अस्थायी है.