आर्थिक तौर पाकिस्तान (Pakistan) आज की तारीख में जिस तरह से बेहाल है, उसे यहां तक पहुंचाने में चीन का बड़ा हाथ है. जबकि अब तक चीन ने अपने फायदे के लिए पाकिस्तान का सिर्फ इस्तेमाल किया है. वैसे तो दोनों एक-दूसरे को पक्के दोस्त कहते हैं, लेकिन इसके पीछे दोनों की अपनी मजबूरियां हैं. फिलहाल चीन और पाकिस्तान का रिश्ता केवल पड़ोसियों का नहीं, बल्कि एक रणनीतिक साझेदार होने के साथ-साथ आर्थिक, सैन्य और भू-राजनीतिक हित भी जुड़ा हुआ है.
वैसे तो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को दोनों देश दोस्ती का प्रतीक बताता है, लेकिन ये अब चीन के लिए मजबूरी का भी सौदा बन गया है. CPEC दोनों देशों को बुनियादी ढांचे, ऊर्जा और व्यापार के माध्यम से जोड़ता है. लेकिन इस रिश्ते की कीमत क्या है? पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर बढ़ता कर्ज, आयात पर निर्भरता और चीनी व्यवसायों का बढ़ता प्रभाव कई सवाल उठाते हैं.
पाकिस्तान का चीन से आयात
साल 2024 में पाकिस्तान ने चीन से 15.99 बिलियन डॉलर का सामान आयात किया था, जो उसकी कुल आयात राशि का एक बड़ा हिस्सा है. चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. पाकिस्तान अपनी औद्योगिक और तकनीकी जरूरतों के लिए चीन से मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और दूरसंचार उपकरण आयात करता है. इसमें मोबाइल फोन, कंप्यूटर और औद्योगिक उपकरण शामिल हैं. पाकिस्तान में अधिकतर चीजें चीन से आती हैं.
केमिकल प्रोडक्ट्स, जैसे उर्वरक (यूरिया), और कच्चे माल जैसे स्टील और लोहा, कृषि क्षेत्रों के उपकरणों के लिए भी अब पाकिस्तान चीन पर निर्भर है. चीन से सस्ते कपड़े, धागे और टेक्सटाइल मशीनरी का आयात भी पाकिस्तान करता है. यानी पाकिस्तान के बाजारों में फिलहाल चीन का कब्जा है, क्योंकि पाकिस्तान में इंडस्ट्रीज के नाम पर अब ज्यादा कुछ बचा नहीं है. कोयला और तेल से संबंधित उपकरण, जो CPEC के तहत बिजली संयंत्रों के लिए उपयोग किए जाते हैं, वो भी चीन से आयात किए जा रहे हैं.
हथियार के लिए भी चीन के भरोसे पाकिस्तान
चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है, जो 2019-2023 के बीच 82% हथियारों की आपूर्ति करता है. इसमें जेसी-17 थंडर लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां, टैंक और मिसाइलें शामिल हैं. आयात ज्यादा होने की वजह से दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलित है. पाकिस्तान का चीन को निर्यात केवल 2-3 बिलियन डॉलर के आसपास है.
पाकिस्तान पर चीन का भारी कर्ज
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से कर्ज के बोझ तले दबी है, और चीन इसका सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है. साल 2023 तक पाकिस्तान का कुल बाहरी कर्ज 130.85 बिलियन डॉलर था, जिसमें से 28.8 बिलियन डॉलर (22%) चीन को बकाया है. हालांकि ये और भी ज्यादा हो सकता है. यह आंकड़ा 68.91 बिलियन डॉलर तक हो सकता है, खासकर 2000-2021 के बीच चीन से लंबी अवधि के लिए जो लोन लिए गए हैं.
दरअसल, चीन का पाकिस्तान पर सबसे ज्यादा कर्ज CPEC से जुड़ा हुआ है, जिसके तहत 62 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट्स की योजना बनाई गई थी. 2023 तक 27.4 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट्स पूरे हो चुके हैं, इसके अलावा एनर्जी सेक्टर के लिए पाकिस्तान ने करीब 16 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया है. जानकार कहते हैं कि पाकिस्तान पर चीन हावी है और वो अपने तरीके से डील करवाता है. ऐसा नहीं है कि चीन ने पाकिस्तान को सस्ते में कर्ज दिया है. आंकड़ों को देखें तो पाकिस्तान ने चीन से जो कर्ज लिया है, उसपर करीब 3.7% ब्याज दरें हैं, जो कि OECD देशों (1-2%) की तुलना में तिगुना है. कुछ प्रोजेक्ट्स में तो 7-8% की दरें लागू हैं.
यही नहीं, साल 2012-2021 के बीच पाकिस्तान ने हर साल चीन से इमरजेंसी लोन लिया, जिसमें 2020 में एक लोन को फिर से शेड्यूल किया गया. यानी लोन चुकाने के लिए लोन ले लिया. वहीं साल 2023 में 700 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त ऋण लिया गया.
इस बीच साल 2024 में पाकिस्तान ने 16 बिलियन डॉलर के ऊर्जा क्षेत्र के कर्ज और 4 बिलियन डॉलर के नकद ऋण की अवधि बढ़ाने के लिए चीन से बातचीत की थी. यह कर्ज पुनर्गठन केवल अस्थायी राहत देता है, क्योंकि लंबे समय तक रोलओवर संभव नहीं है. यह कर्ज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रहा है. साल 2023 में कर्ज की सर्विसिंग कुल निर्यात का 43% और सकल राष्ट्रीय आय का 5% थी.
पाकिस्तान में चीन का बड़ा कारोबार
अगर पाकिस्तान में चीन की मौजूदगी की बात करें तो चीन ने पाकिस्तान में कई बिजली संयंत्र बनाए हैं, खासकर कोयला और जलविद्युत आधारित. ये संयंत्र स्वतंत्र बिजली उत्पादकों (IPPs) के रूप में काम करते हैं, जिसके कारण पाकिस्तान को उपयोग न होने वाली बिजली के लिए भी भुगतान करना पड़ता है. साहिवाल और पोर्ट कासिम जैसे कोयला संयंत्र इसके उदाहरण हैं.
इसके अलावा ग्वादर बंदरगाह, जो 2006 में बनकर तैयार हुआ और 40 साल की लीज पर चीन को सौंपा गया है, ये CPEC का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह बंदरगाह चीन को मध्य पूर्व से तेल और गैस के लिए छोटा रास्ता प्रदान करता है. इसके अलावा, कराची से पेशावर तक मुख्य रेलवे लाइन (ML-1) को अपग्रेड करने की 9.8 बिलियन डॉलर की योजना है.
चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य आपूर्तिकर्ता है. जेसी-17 थंडर विमान और अन्य हथियारों के संयुक्त विकास के साथ, चीन ने 2019-2023 में 82% हथियार आपूर्ति की. CPEC के दूसरे चरण में सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि, औद्योगिक सहयोग, शिक्षा, स्वास्थ्य, जल संसाधन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में 26.8 बिलियन डॉलर के 26 प्रोजेक्ट्स और 41 प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स शामिल हैं.
कैसे चीने से पीछा छुड़ाएगा पाकिस्तान?
हालांकि, चीनी कंपनियां स्थानीय व्यवसायों के साथ साझेदारी नहीं करतीं, बल्कि मैनपॉवर और टेक्नोलॉजी भी चीन से लाती हैं, जिससे पाकिस्तानियों को कोई रोजगार नहीं मिलता है. इसके अलावा, चीनी कंपनियों को पाकिस्तान में टैक्स छूट मिलती है, जिससे स्थानीय व्यवसायों को नुकसान होता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि CPEC ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के बजाय कर्ज का बोझ बढ़ाया है. ग्वादर बंदरगाह, जिसे आर्थिक इंजन के रूप में देखा गया, ने अपेक्षित परिणाम नहीं दिए. यही नहीं, चीनी कर्ज की शर्तें गोपनीय हैं, और विशेषज्ञ इसे 'ऋण जाल' कहते हैं, जैसा कि श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह के साथ हुआ.
हर देश से भीख मांग रहा है पाकिस्तान
गौरतलब है कि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति काफी खराब है, और वह IMF से 7 बिलियन डॉलर के बेलआउट और चीन, सऊदी अरब और UAE से कर्ज रोलओवर पर निर्भर है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्भरता पाकिस्तान को चीन के प्रति और अधिक जवाबदेह बनाएगी, जिसमें ग्वादर बंदरगाह जैसे रणनीतिक स्थानों पर सैन्य पहुंच शामिल हो सकती है.
चीन और पाकिस्तान की साझेदारी ने पाकिस्तान को बुनियादी ढांचा और सैन्य शक्ति दी है, लेकिन इसके साथ भारी कर्ज और निर्भरता भी आई है. भविष्य में, पाकिस्तान को अपनी आर्थिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे, नहीं तो ये दोस्ती 'ऋण जाल' में तब्दील हो जाएगा.