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तेजस्वी को क्यों नहीं बनाया RJD अध्यक्ष? 2025 में भी लालू ही क्यों संभाल रहे पार्टी की कमान, जानिए वजह

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आरजेडी में संगठनात्मक चुनाव जारी हैं और एक बार फिर लालू प्रसाद यादव ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन किया है. तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के बावजूद लालू ने उन्हें पार्टी की बागडोर नहीं सौंपी है. क्या पारिवारिक विवाद, तेज प्रताप प्रकरण और राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए लालू यादव ने खुद नेतृत्व अपने हाथ में रखा है?

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तेजस्वी यादव और लालू यादव (फाइल फोटो)
तेजस्वी यादव और लालू यादव (फाइल फोटो)

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पिछले 28 सालों से अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हुए हैं और एक बार फिर से सोमवार को उन्होंने अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए नामांकन किया है.

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आरजेडी में इस वक्त संगठन चुनाव चल रहे हैं और इसी कार्य में लालू ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए एक बार फिर से पर्चा भरा है.

लालू प्रसाद के विरोध में किसी ने भी पर्चा नहीं भरा है जिससे एक बार फिर से साफ हो गया है कि अगले तीन सालों के लिए पार्टी का नेतृत्व और पार्टी की बागडोर लालू प्रसाद के हाथों में ही रहेगी और बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी का नेतृत्व लालू प्रसाद ही करेंगे.

ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर जब लालू प्रसाद अपने बेटे को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुके हैं तो आखिर पार्टी की बागडोर अपने बेटे को वह क्यों नहीं सौंप रहे हैं ?

सवाल उठता है कि जब लालू प्रसाद की तबीयत ठीक नहीं है और वह कई तरह की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं उसके बावजूद भी लालू आखिर क्यों नहीं पार्टी तेजस्वी के हाथ में दे रहे हैं ?

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गौरतलब है कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड ने लालू प्रसाद के ऊपर भ्रष्टाचार और चारा घोटाले में दोषी करार दिए जाने और जेल जाने को मुद्दे को खूब उछाला था जिसके बाद तेजस्वी यादव ने चुनावी रणनीति में परिवर्तन करते हुए पूरे चुनाव में लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के पोस्टर के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया था.

2020 में हटवायी थी लालू और राबड़ी की तस्वीर

2020 में चुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियां लगातार लालू प्रसाद के ऊपर भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठा रही थी.

उस वक्त तेजस्वी लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की तस्वीर को प्रमुखता से पार्टी के पोस्टर और बैनर  में लगाया करते थे मगर जब तक तेजस्वी को इस बात का एहसास हुआ कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की तस्वीर लगाने से पार्टी को नुकसान हो रहा है और उनकी साफ सुथरी छवि को धक्का पहुंच रहा है तो फिर उन्होंने रणनीति में बदलाव किया.

इसके बाद पूरे चुनाव में अपने पिता और माता की तस्वीर के इस्तेमाल पर पूरी तरीके से पाबंदी लगा दी थी. तेजस्वी यादव को उम्मीद रही होगी की चुनावी रणनीति में बदलाव करने से इसका उन्हें कुछ फायदा होगा लेकिन इसका बहुत ज्यादा कुछ फायदा नजर नहीं आया और उनकी पार्टी सत्ता से दूर रही.

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पांच साल के बाद एक बार फिर से बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो जाहिर सी बात है तेजस्वी यादव पहले से ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं. लालू प्रसाद ने पार्टी के अंदर कोई भी बड़ा निर्णय लेने के लिए अपने बाद केवल तेजस्वी को ही अधिकृत किया हुआ है लेकिन उन्होंने तेजस्वी को अभी तक पार्टी की बागडोर पूरे तरीके से नहीं सौंपी है और उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनाया है.

लालू को साइडलाइन करने से चुनावी नुकसान का खतरा  

ऐसे में, चुनाव से पहले पार्टी के टॉप लीडरशिप में कोई बड़ा परिवर्तन राजद के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है और शायद इसी वजह से लालू प्रसाद एक बार फिर से पार्टी का नेतृत्व करते हुए चुनाव में नजर आएंगे.

तेजस्वी यादव भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा हो और अगर महागठबंधन चुनाव जीतता है तो वो मुख्यमंत्री बन जाएं लेकिन लालू परिवार को एहसास है कि अगर चुनाव से पहले लालू प्रसाद को ही पार्टी में साइड लाइन कर दिया गया और नेतृत्व परिवर्तन किया गया तो इसका बहुत गलत संदेश राजद के वोट बैंक में खासकर मुस्लिम और यादव समाज में जाएगा.

ऐसा भी हो सकता है कि पार्टी को इससे नुकसान भी पहुंचे. यही वजह है कि लालू एक बार फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए उन्होंने सोमवार को नामांकन किया है.

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तेज प्रताप वीडियो स्कैंडल   

दूसरी वजह यह भी है कि इस वक्त लालू प्रसाद परिवार में तेज प्रताप को लेकर भी तूफान मचा हुआ है और तेज प्रताप- अनुष्का यादव प्रकरण सामने आने के बाद लालू प्रसाद ने तेज प्रताप को न केवल पार्टी से निकाल दिया है बल्कि परिवार से भी बेदखल कर दिया है.

ऐसे में लालू परिवार के अंदर तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच सत्ता संघर्ष की खबरें रह-रह कर आती रहती हैं मगर तेज प्रताप के विवाद ने शायद एक बार फिर लालू को मजबूर कर दिया कि वही पार्टी का नेतृत्व करते रहे और राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बने रहे ताकि पार्टी का नियंत्रण पूरा उनके पास रहे और किसी प्रकार की टूट ना हो.

 

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