
बिहार में स्थित प्राचीन गया शहर का नाम बदलकर 'गया जी' कर दिया गया है. बिहार के नीतीश सरकार ने शुक्रवार को गया का नाम बदलकर 'गया जी' करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नेतृत्व में राज्य की कैबिनेट बैठक का आयोजन हुआ. इस बैठक में नाम के प्रस्ताव को मंजूरी मिली है. बैठक में कुल 69 अहम फैसले लिए गए हैं.
गया का नाम अब 'गया जी'
'गया जी' बिहार का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. यह राजधानी पटना से 116 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. प्रदेश की सरकार ने शहर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को देखते हुए यह फैसला लिया है.
कैबिनेट सचिवालय के अपर मुख्य सचिव सिद्धार्थ ने बताया है कि सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को सम्मान देने के उद्देश्य से गया का नाम बदलकर 'गया जी' किया गया है.
गया शहर क्यों प्रसिद्ध है?
'गया जी' का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. यह शहर पिंडदान के लिए जाना जाता है. देश-दुनियाभर से लोग यहां फल्गु नदी के किनारे पितृ पक्ष में पिंडदान करने के लिए आते हैं. ऐसा माना जाता है कि पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
'गया जी' में कई धार्मिक स्थल मौजूद हैं. यहां विष्णुपद मंदिर है, जहां भगवान विष्णु के चरणों के निशान हैं.
गया शहर में ही बोधगया स्थित है. जहां गौतम बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीते ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. बोधगया में विश्व प्रसिद्ध महाबोधि मंदिर स्थित है. यह एक विश्व धरोहर है. हर साल लाखों सैलानी यहां आते हैं.
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झूठ बोलने के कारण फल्गु नदी को मिला था श्राप
फल्गु नदी 'गया जी' में स्थित है. जो साल के अधिकतर समय सूखी ही रहती हैं. इसके किनारे ही पिंडदान किया जाता है.
ऐसी मान्यताएं हैं कि सीता माता और भगवान राम दशरथ जी के आत्मा के शांति के लिए गया पिंडदान करने गए थे. भगवान राम सीता मां को फल्गु नदी के किनारे छोड़कर जंगल पिंडदान के लिए सामग्री लाने जंगल चले गए.
भगवान राम के आने से पहले दशरथ जी की आत्मा वहां प्रकट हुई और सीता माता से पिंडदान का इच्छा व्यक्त की. जिसके बाद सीता मां ने उनका पिंडदान किया.
सीता माता ने रेत से पिंड बनाए और फल्गु नदी, तुलसी, गाय और पीपल के वृक्ष को साक्षी मानकर पिंडदान किया.
भगवान राम जब लौटकर वापस फल्गु नदी के पास आए तो पूछा कि क्या पिंडदान हो गया? जब तक सीता माता वहां से चली गईं थीं. जवाब में फल्गु नदी सहित सभी पक्षियों ने झूठ बोल दिया कि पिंडदान नहीं हुआ.
सिर्फ पीपल वृक्ष ने ही सच बोला कि पिंडदान हो गया. जब सीता माता को सच्चाई का पता लगा तो उन्होंने सभी झूठ बोलने वालों को श्राप दिया.
सीता माता ने फल्गु नदी को श्राप दिया कि तू हमेशा के लिए ऊपर से सूखी रहेगी, तुझमें जल नहीं बहेगा.
सीता माता ने गाय को श्राप दिया कि तुम्हारा मुंह पवित्र नहीं होगा. केवल गोबर को ही पवित्र माना जाएगा.
सीता माता ने तुलसी को श्राप दिया कि तुम्हें पिंडदान के दौरान इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.
सीता माता ने अग्नि को श्राप दिया कि तेरी सच्चाई पर विश्वास नहीं किया जाएगा.
सच बोलने के लिए सीता माता ने पीपल वृक्ष को आशीर्वाद दिया. सीता माता ने कहा कि तुम्हें हमेशा सच का प्रतीक और पवित्र माना जाएगा.
मोक्षदायिनी फल्गु नदी के किनारे है विष्णुपद मंदिर
ये बात दिलचस्प है कि गया का नाम एक राक्षस 'गयासुर' के नाम पर पड़ा है. इसका इतिहास विष्णुपद मंदिर से जुड़ा है.
विष्णुपद मंदिर मोक्षदायिनी फल्गु नदी के किनारे स्थित है. इस मंदिर की प्राचीन नागर वास्तुशैली है. यह पिंडदान और श्राद्ध के कामों के लिए प्रमुख स्थल है. मंदिर लगभग 100 फीट ऊंचा और 44 स्तंभ हैं. इस मंदिर का निर्माण मराठा साम्राज्य की महारानी अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा 1787 में कराया गया था. मंदिर के निर्माण में लगभग 20 साल का समय लगा.
क्या है पौराणिक कथा और मान्यता
कहा जाता है कि गयासुर नाम का एक राक्षस था. उसने सालों तक घोर तपस्या की, जिसके बाद उसे मिल गया कि वह जिसे छूएगा उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी. जिसके बाद वह इसका गलत इस्तेमाल करने लगा. वरदान मिलने के बाद देवता और साधु-संत लोग विचलित होने लगे, क्योंकि धर्म की व्यवस्था धीरे-धीरे बिगड़ने लगी. जिसके बाद भगवान से प्रार्थना की गई कि इसका हल निकाला जाए.
फिर भगवान विष्णु ने गयासुर का वध कर दिया. उसे पांव से दबाकर पृथ्वी में समा दिया. जहां भगवान विष्णु का पैर का दबाव पड़ा वहां उनके पैर के चिन्ह बन गए. वही आज मंदिर के गृभगृह में सुरक्षित है. मंदिर में भगवान विष्णु का लगभग 40 सेंटीमीटर का पदचिन्ह है. इसमें विभिन्न तरह के प्रतीक हैं - चक्र, शंख और गदा.
ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में गया जी में निवास करते हैं.