वाराणसी का नटोनिया मोहल्ला हमेशा उनके जेहन में जिंदा रहा. इसलिए उनके गले से निकले सुर में चौका घाट की मस्ती भरी हवा भी शामिल रही तो दशाश्वमेध घाट की आदर्श और सांस्कृतिक परंपरा के साथ भक्ति भाव वाले प्रार्थना के स्वर भी जगह पाते रहे. बिटिया की विदाई हो, मायके की बिछुड़न हो या बरसों बाद खेत-खलिहान, घर-दुआर से मिलना-जुलना. अप्पा जी की ठुमरी, चैती, कजरी में ये सारे भाव मौजूद रहते थे.
अप्पा जी यानी ठुमरी की रानी गिरिजा देवी... जिनके गले से निकला स्वर सीधे दिल में उतरता था. वह शब्द के मर्म को पकड़कर सुर में ढाल देतीं और उनकी आवाज से शब्दों में अर्थ भर जाता. संगीतकार अमजद अली खान ने सही ही कहा था, "गिरिजा जी का गाना सुनकर रूह कांप जाती है."
अप्पाजी को सुरमयी श्रद्धांजलि
गिरिजा देवी को, जो अपने शिष्यों के बीच 'अप्पा जी' नाम से ही पहचानी जाती हैं, उन्हें याद किया उनकी शिष्या सुनंदा शर्मा ने और बीते दिनों जब उनकी जयंती की 96वीं वर्षगांठ मनाई गईं तो उन्हें सुरों से सजी, भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित की. ये श्रद्धांजलि उन्हें दी गई गिरिजा दर्शन ट्रस्ट द्वारा आयोजित मंगलोत्सव में, जिसे विदुषी सुनंदा शर्मा ने उन्हीं की स्मृति में बनाया और जिसके जरिए वह एक तरफ तो नवोदित कलाकारों को मंच देकर पहचान दिलाने के लिए अग्रसर हैं, तो दूसरी तरफ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की परंपरा को भी जीवंत बनाए रखने और संजोने के लिए अथक श्रम कर रही हैं.
मंगलोत्सव की छांव में संगीतमयी शाम
बीते गुरुवार (8 मई 2025) की शाम इंडिया हैबिटेट सेंटर, नई दिल्ली के स्टीन ऑडिटोरियम में इसी 'मंगलोत्सव' की छांव में सुरीली रही. यह विशेष संध्या पद्म विभूषण डॉ. विदुषी गिरिजा देवी की 96वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित की गई, जिसमें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान को श्रद्धांजलि दी गई. इस मौके पर देश के बेहतरीन शास्त्रीय संगीतकारों ने एक मंच पर अपनी कला प्रस्तुत की, जो गिरिजा देवी जी के संगीतमय विरासत को जीवंत करने का एक हृदयस्पर्शी प्रयास था.
मंगलोत्सव ने गिरिजा देवी जी की असाधारण संगीतमय यात्रा को सम्मानित करने के साथ-साथ उनके योगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य किया. अपने शिष्यों और प्रशंसकों के बीच 'अप्पा जी' के नाम से प्रसिद्ध, गिरिजा देवी जी बनारस घराने की संरक्षक थीं और उन्होंने ठुमरी, दादरा और अन्य अर्ध-शास्त्रीय विधाओं को वैश्विक पहचान दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाई. इस संध्या की प्रस्तुतियां उनकी संगीतमय गहराई और भावना को दर्शाने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार की गई थीं, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो उन्हें प्रत्यक्ष रूप से सुनने या उनसे सीखने के अवसर से वंचित रहे.
कार्यक्रम में विदुषी सुनंदा शर्मा (गायन) और पं. रूपक कुलकर्णी (बांसुरी) द्वारा एक मनमोहक जुगलबंदी पेश की गई, साथ ही पद्म भूषण पं. साजन मिश्रा और उनके पुत्र स्वरांश मिश्रा ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन से समां बांधा. इन कलाकारों का साथ निभाया पं. मिथिलेश कुमार झा (तबला), पं. सुमित मिश्रा (हारमोनियम), पं. विनोद लेले (तबला), और पं. विनय मिश्रा (हारमोनियम) ने.
अप्पा जी की प्रसिद्ध कजरी की प्रस्तुति
अपनी प्रस्तुतियों के बीच जब विदुषी सुनंदा शर्मा ने 'अप्पा जी' की प्रसिद्ध कजरी 'कहनवा मानो ओ राधारानी' प्रस्तुत किया, तो जिन लोगों ने पहले अप्पा जी को सुन रखा है, उनके लिए यह खदान से निकले 'कोहिनूर' की तरह रहा. ये कजरी कम से कम 150 साल पुरानी है और आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी ये अपने उस दौर में रही थी, जब इसे पहले-पहल लिखा और गाया गया था.
इस कजरी के पीछे एक कहानी भी छिपी है जो अप्पा जी के संगीत में पवित्रता बनाए रखने की उनकी प्रतिबद्धता को जाहिर करती है. बात ऐसी है कि ये कजरी हिंदी के अमर साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखी थी और इसका मूल स्वरूप कुछ ऐसा था... 'कहनवा मानो ओर दिलजानी...'
क्या है इस कजरी की कहानी
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इसे बड़े ही रोमांटिक मूड में लिखा था. अप्पा जी ने इस रचना को स्वर बद्ध करने के लिए उठा लिया, लेकिन वह इसके दिलजानी शब्द से संतुष्ट नहीं थीं, और फिर उन्होंने इसमें बड़ा बदलाव किया. गिरिजा देवी पर किताब लिखने वाले लेखक यतींद्र मिश्र बताते हैं कि अप्पा जी ने इस कजरी में से दिलजानी शब्द को हटाकर उसकी जगह 'राधारानी' लिख दिया. इस तरह यह कजरी रोमांस के दायरे से निकलकर भक्ति भजन में शामिल हो गई और इसका विस्तार जन सामान्य तक हो गया. अप्पा जी की आवाज में इस कजरी को Youtube पर सुना जा सकता है.
विदुषी सुनंदा शर्मा ने इस कजरी की प्रस्तुति देते हुए अपनी गुरु को भीगी पलकों से याद किया और सुरों का वही संयोजन बरकरार रखने की पूरी कोशिश की, जो अप्पा जी की गायकी में शामिल होता रहा है. इस कजरी की प्रस्तुति देते हुए भावुक भी दिखीं और फिर कहा कि, इस कार्यक्रम और इस प्रस्तुति की सफलता गुरु का ही आशीष है.
गिरिजा देवी की संगीतमय परंपरा की ध्वजवाहक, विदुषी सुनंदा शर्मा ने कहा, "अप्पा जी केवल मेरी गुरु ही नहीं, बल्कि मेरी संगीतमय और आध्यात्मिक प्रेरणा भी रही हैं. मंगलोत्सव केवल एक संगीत समारोह नहीं है; यह उन्हें मेरी निजी श्रद्धांजलि और उनकी विरासत को सत्यनिष्ठा और प्रेम के साथ आगे ले जाने का मेरा वचन है." उन्होंने इस दौरान यह भी बताया कि 'गिरिजा दर्शन ट्रस्ट' मेरे जीवन के दो गुरुओं को समर्पित है. एक तो अप्पा जी, जो गिरिजा देवी हैं, और दूसरे मेरे प्रथम गुरु मेरे पिताजी यानी सुदर्शन जी रहे. गिरिजा दर्शन इन्हीं दो विभूतियों का साक्षात आशीर्वाद है.
पं. साजन मिश्रा की गायकी के साक्षी बने संगीत प्रेमी
सुनंदा बताती हैं कि गिरिजा दर्शन ट्रस्ट के आयोजनों के लिए अभी तक दो मंच तो तय हैं, पहला पठानकोट और दूसरा राजधानी दिल्ली. आगे गुरु इच्छा और आशीर्वाद रहा तो इसके अन्य संस्करण भी प्रस्तुत होंगे. इस मौके पर संगीत प्रेमियों के लिए विशेष उपहार रहा, मौजूदा दौर के लिविंग लीजेंड और बनारस घराने के दिग्गज, पं. साजन मिश्रा की गायकी का साक्षी बनना.
पंडित राजन मिश्रा और पंडित साजन मिश्रा की यह युगल जोड़ी राजन-साजन के नाम से पहचानी जाती रही है, लेकिन अब पंडित राजन मिश्रा स्मृतियों में ही शेष हैं, ऐसे में पंडित साजन मिश्रा को सामने सुनना, सुरदेवी के आशीष पाने जैसा ही है. उन्होंने अपने बड़े भाई द्वारा गाई बंदिश की प्रस्तुति दी और इस दौरान उनके साथ मंच शेयर करते दिए उनके पुत्र स्वरांश मिश्रा.
पंडित साजन मिश्रा ने अप्पा जी को याद करते हुए कहा कि, "गिरिजा देवी बनारस संगीत की आत्मा थीं. उन्होंने अर्ध-शास्त्रीय विधाओं की सुंदरता को विश्व मंच पर स्थापित किया और अनेक पीढ़ियों को प्रेरित किया. यह समारोह उनकी उस प्रतिभा को सलाम करने का हमारा प्रयास है." उभरते गायक और पं. साजन मिश्रा के पुत्र, स्वरांश मिश्रा ने कहा, "अप्पा जी के संगीत ने मेरे लिए भावनात्मक प्रदर्शन की समझ को आकार दिया. इस श्रद्धांजलि के जरिए हम उनकी संगीतमय आत्मा को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं."
पंडित रूपक कुलकर्णी ने की जुगलबंदी
इस मौके पर प्रख्यात बांसुरी वादक, पं. रूपक कुलकर्णी ने पहली बार विदुषी सुनंदा शर्मा के साथ बांसुरी की जुगलबंदी की. उन्होंने अपने विचार साझा करते हुए कहा, "गिरिजा देवी जैसी महान हस्ती को श्रद्धांजलि देना एक दुर्लभ सम्मान है. उनके संगीत में एक भावनात्मक गहराई थी जो तकनीक से परे थी. मैं आशा करता हूं कि मेरी बांसुरी उनकी जादुई कला का एक अंश इस प्रस्तुति में प्रतिबिंबित कर सकेगी." मंगलोत्सव प्रेम, कृतज्ञता और स्मृति का एक सामूहिक अभिव्यक्ति है, यह ऐसा प्रयास है जो 'ठुमरी की रानी' गिरिजा देवी की कालातीत आवाज और संगीतमय भावना को रसिकों और शिष्यों के दिलों में जीवित रखने के लिए समर्पित है.
पद्म विभूषण सरोद वादक अमजद अली खान ने प्रस्तुतियों को सराहा
प्रख्यात सरोद वादक, पद्म विभूषण से सम्मानित अमजद अली खान भी इस समारोह में मौजूद रहे. उन्होंने सुरों से सजी इस शाम की सराहना में कहा कि यह भारत की गुरु-शिष्य परंपरा के अस्तित्व को बनाए रखने का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां शिष्य गुरु के आशीर्वाद को जीवन भर अपने लिए कृपा मानता है और उनके ज्ञान से औरों को भी प्रकाशित करता है.