सुप्रीम कोर्ट ने बीते हफ्ते अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कोटे में कोटा दिए जाने को मंजूरी दी थी. कोर्ट ने कहा था कि SC-ST कैटेगरी के भीतर नई सब कैटेगरी बनाकर अति पिछड़े तबकों को अलग से रिजर्वेशन दे सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले पर बीएसपी, कांग्रेस समेत अनेक राजनीतिक दल असहमति दिखा रहे हैं. वहीं अब इसको लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया भी सामने आई है.
अखिलेश यादव ने कहा कि आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा की विश्वसनीयता शून्य हो चुकी है. उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार हर बार अपने गोलमोल बयानों और मुकदमों के माध्यम से आरक्षण की लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश करती है, फिर जब पीडीए के विभिन्न घटकों का दबाव पड़ता है तो दिखावटी सहानुभूति दिखाकर पीछे हटने का नाटक करती है. भाजपा की अंदरूनी सोच सदैव आरक्षण विरोधी रही है. इसीलिए भाजपा पर से 90 फीसदी पीडीए समाज का भरोसा लगातार गिरता जा रहा है.
सपा मुखिया ने कहा, "किसी भी प्रकार के आरक्षण का मूल उद्देश्य उपेक्षित समाज का सशक्तीकरण होना चाहिए न कि उस समाज का विभाजन या विघटन, इससे आरक्षण के मूल सिद्धांत की ही अवहेलना होती है. अनगिनत पीढ़ियों से चले आ रहे भेदभाव और मौकों की गैर-बराबरी की खाई चंद पीढ़ियों में आए परिवर्तनों से पाटी नहीं जा सकती. ‘आरक्षण’ शोषित, वंचित समाज को सशक्त और सबल करने का सांविधानिक मार्ग है, इसी से बदलाव आएगा, इसके प्रावधानों को बदलने की आवश्यकता नहीं है. पीडीए के लिए ‘संविधान’ संजीवनी है, तो ‘आरक्षण’ प्रायवायु!"
मायावती ने भी कोर्ट के फैसले का किया विरोध
इससे पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी इसको लेकर कोर्ट के फैसले का विरोध किया था. मायावती ने कहा था कि एससी और एसटी को दिए गए आरक्षण को खुद खत्म करने के बजाय, वे इसे कोर्ट के जरिए से खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं और वे इसमें ज्यादातर सफल भी रहे हैं. एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार ने भी कोर्ट में इसका विरोध नहीं किया. उनके वकील ऐसी दलीलें देते रहे जिससे सुप्रीम कोर्ट को इस तरह के फैसले देने में मदद मिली. कांग्रेस की तरफ से हो या सरकार की तरफ से दलीलें पेश करने वकील हों, दोनों ने सुप्रीम कोर्ट की मदद की, जिससे उनकी मंशा पता चलती है" मायावती ने आरोप लगाया कि इसके जरिए आरक्षण को खत्म करने की कोशिश है.
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