मंदिर के लिए अब हुआ 1992 जैसा आंदोलन तो खतरनाक होंगे नतीजे: AIMPLB

रहमानी ने बताया कि वर्ष 1992 में हिन्‍दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत इतनी ज्‍यादा नहीं थी. हाल के वर्षों में दोनों के बीच खाई बहुत गहरी हो गई है.

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मौलाना वली रहमानी (फाइल फोटो- PTI) मौलाना वली रहमानी (फाइल फोटो- PTI)

अनुग्रह मिश्र

  • नई दिल्ली,
  • 04 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:37 PM IST

ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने अयोध्‍या में राम मंदिर के निर्माण के लिये वर्ष 1992 जैसा ही आंदोलन शुरू करने के RSS के इरादे को मुल्‍क के लिये बेहद खतरनाक बताया. बोर्ड ने रविवार को कहा कि मंदिर को लेकर अचानक तेज हुई गतिविधियां पूरी तरह राजनीतिक हैं.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने एजेंसी से बातचीत में राम मंदिर निर्माण की मांग को लेकर हिन्‍दूवादी संगठनों की ओर से अचानक तेज की गई गतिविधियों के बारे में कहा कि जहां तक मंदिर निर्माण को लेकर तथाकथित हिन्‍दूवादी संगठनों में बेचैनी का सवाल है, तो साफ जाहिर है कि यह सियासी है. आगामी लोकसभा चुनाव को सामने रखकर यह दबाव बनाया जा रहा है. लेकिन वे संगठन दरअसल क्‍या करेंगे, अभी तक इसका सही अंदाजा नहीं है.

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दोनों के बीच बढ़ी नफरत की खाई

मंदिर निर्माण के लिये वर्ष 1992 जैसा व्‍यापक आंदोलन छेड़ने के संघ के इशारे के बारे में रहमानी ने कहा कि संघ अगर आंदोलन शुरू करता है तो यह बहुत खतरनाक होगा. इससे मुल्‍क में अफरातफरी का माहौल पैदा हो जाएगा. इस आशंका का कारण पूछे जाने पर उन्‍होंने बताया कि वर्ष 1992 में हिन्‍दुओं और मुसलमानों के बीच नफरत इतनी ज्‍यादा नहीं थी. हाल के वर्षों में दोनों के बीच खाई बहुत गहरी हो गई है.

विश्‍व हिन्‍दू परिषद, अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दू परिषद समेत तमाम हिन्‍दूवादी संगठनों और साधु-संतों द्वारा मंदिर निर्माण के लिये अध्‍यादेश लाने या कानून बनाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाये जाने के बारे में पूछे गये सवाल पर मौलाना रहमानी ने कहा कि कुछ कानूनविदों के मुताबिक इस मसले पर अभी कोई अध्‍यादेश या संसद का कानून नहीं आ सकता. अब सरकार क्‍या करेगी और उसके क्‍या नतीजे होंगे, यह नहीं कहा जा सकता.

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उन्‍होंने यह भी कहा कि हाल में सेवानिवृत्‍त हुए न्‍यायमूर्ति जे. चेलमेश्‍वर ने चंद दिन पहले मुम्‍बई में एक कार्यक्रम में कहा था कि मंदिर निर्माण को लेकर अध्‍यादेश लाना या संसद से कानून पारित कराया जाना नामुमकिन नहीं है. बोर्ड का शुरू से ही साफ नजरिया है कि आपसी सहमति से मसला हल करने की तमाम कोशिशें नाकाम होने के बाद वह अयोध्‍या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही मानेगा.

कोर्ट के फैसले का करें इंतजार

इस बीच, देश में मुसलमानों के सबसे बड़े सामाजिक संगठन माने जाने वाले जमीयत उलमा-ए-हिन्‍द की उत्‍तर प्रदेश इकाई के अध्‍यक्ष मौलाना अशहद रशीदी ने कहा कि अयोध्‍या मामले को लेकर तेज हुई गतिविधियों पर उनका एक ही जवाब है कि मामला अदालत में है इसलिये सभी को सब्र से काम लेते हुए अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिये. उसका जो भी निर्णय हो, उसे कुबूल करना चाहिये. मुल्‍क में अमन और सलामती इसी तरह रहेगी.

उन्‍होंने कहा कि हठधर्मिता से देश को नुकसान होगा. हमारी अपील है कि इस मामले में जज्‍बात से काम न लेकर हालात की नजाकत को समझते हुए काम किया जाए.

संघ ने दिया ये बयान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शुक्रवार को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से हिंदू अपमानित महसूस कर रहे हैं कि अयोध्या का मुद्दा प्राथमिकता वाला नहीं है. संघ ने जोर देते हुए कहा कि राम मंदिर के मुद्दे पर कोई विकल्प नहीं रहा तो अध्यादेश लाना जरूरी होगा. संघ के सर कार्यवाह भैयाजी जोशी ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो RSS राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू करने में भी नहीं हिचकेगा, लेकिन मामला कोर्ट में विचाराधीन होने की वजह से कुछ सीमाएं हैं.

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संघ पदाधिकारी जोशी ने कहा कि इतने लंबे समय से लंबित मुद्दे पर अदालत के फैसले का इंतजार भी लंबा हो गया है. उन्होंने कहा कि यह दुख और पीड़ा का विषय है कि जिसे हिंदू अपनी आस्था मानते हैं और जिससे उनकी भावनाएं जुड़ी हैं वह अदालत की प्राथमिकता सूची में नहीं है.

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