कर्नाटक का किला गंवाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में सियासी जमीन बनाने की कोशिश में जुटी है. बीजेपी के मिशन साउथ के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक हो रही है. संघ की ये बैठक तमिलनाडु के नीलगिरी जिले के ऊटी में हो रही है जिसमें शामिल होने के लिए संघ के तमाम बड़े नेता तमिलनाडु पहुंचे हैं.
संघ की ओर से बैठक को लेकर कहा गया है कि इसमें संगठन से जुड़े विषयों पर चर्चा होगी. इस साल आयोजित हुए संघ शिक्षा वर्ग, शताब्दी वर्ष में संगठन के कार्यों के विस्तार की योजना और अभी तक की प्रगति की समीक्षा होगी. संघ की ये बैठक हर साल होती है लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले तमिलनाडु में आयोजन की वजह से इसके सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं.
संघ के सहारे तैयार होगी सियासी जमीन?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि तमिलनाडु में संघ की ये बैठक उनके अपने संगठन, संगठन से जुड़े कार्यों को लेकर है. हां, संघ जब अपने स्तर पर भी कुछ करता है तो उसका लाभ उसके साथ-साथ उससे जुड़े संगठनों को भी होता है. बीजेपी तमिलनाडु में एआईएडीएमके के सहारे मजबूत पैठ बनाने की कोशिश में है. मुख्य विपक्षी पार्टी एआईएडीएमके है और उसका बीजेपी से गठबंधन है. फिर भी पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो स्टालिन सरकार पर कोई विपक्षी पार्टी सबसे ज्यादा हमलावर रही है तो वह है चार विधायकों वाली बीजेपी.
बीजेपी ने 1996 में पहली बार तमिलनाडु में कोई विधानसभा सीट जीती थी. अगले चुनाव में पार्टी डीएमके के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी और चार सीटें जीतने में सफल रही लेकिन इसके बाद 2006, 2011 और 2016 के चुनाव में पार्टी का खाता भी नहीं खुला. 2016 के बाद संघ ने तमिलनाडु में अपनी सक्रियता बढ़ाई.
साल 2017 में पहली बार संघ की प्रांत प्रचारक बैठक तमिलनाडु में हुई. इसका प्रभाव 2021 के चुनाव नतीजों पर भी नजर आया. बीजेपी तीन चुनाव का सूखा खत्म कर चार सीटें जीतने में सफल रही थी. संघ की इस बैठक के एजेंडे में शाखा विस्तार की योजना भी है. तमिलनाडु में संघ की शाखाओं का विस्तार होता है तो निश्चित रूप से बीजेपी को लाभ होगा. इससे दक्षिण के इस सूबे में बीजेपी को सियासी जमीन तैयार करने में मदद मिल सकती है.
दूसरी वजह सूबे में शिथिल विपक्ष का होना भी है. बीजेपी को लगता है कि तमिलनाडु में विपक्ष उस तरह से सक्रिय नहीं है, जिस तरह उसे होना चाहिए था. पार्टी विपक्ष में नजर आ रहे इस शून्य को भरने और खुद को विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश में है.
बीजेपी के लिए तमिलनाडु और दक्षिण क्यों अहम
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी की नजर ऐसे राज्यों पर है जहां पिछली बार पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा था. तमिलनाडु में लोकसभा की 36 सीटें हैं. 36 सीटों वाले सूबे से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का केवल एक सांसद है. बीजेपी की कोशिश इसबार सूबे की ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की है और इसी रणनीति के तहत तमाम बड़े नेता लगातार तमिलनाडु और तेलंगाना के दौरे कर रहे हैं.
दक्षिण भारत के पांच राज्यों में लोकसभा की कुल 128 सीटें हैं. तमिलनाडु लोकसभा सीटों के लिहाज से दक्षिण भारत का सबसे बड़ा राज्य है. अकेले तमिलनाडु में ही 38 सीटें हैं. इसके बाद कर्नाटक में 28, आंध्र प्रदेश में 25, तेलंगाना में 17 और केरल में 20 लोकसभा सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो देश में 282 सीटें जीतने वाली बीजेपी को दक्षिण भारत के इन पांच राज्यों की कुल 128 में से महज 29 सीटों पर जीत मिली थी.
इनमें से 25 कर्नाटक से ही थीं जहां उसकी सरकार भी थी. कर्नाटक के अलावा बीजेपी को तेलंगाना में चार सीटें मिली थीं. आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में बीजेपी खाली हाथ रह गई थी. वहीं, केरल को छोड़ दें तो कांग्रेस का प्रदर्शन भी इन राज्यों में कुछ खास नहीं रहा था. कांग्रेस भी 128 में से 27 सीटें ही जीत सकी थी. पार्टी ने इसबार दक्षिण के राज्यों में 50 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है.
संघ की बैठक का एजेंडा क्या है?
संघ की इस बैठक के एजेंडे में संगठन से जुड़े विषयों के साथ ही शाखा विस्तार, अगले छह महीने के कार्यक्रम तैयार करना भी है. इस बैठक में सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ ही सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, सह सरकार्यवाह डॉक्टर कृष्ण गोपाल, डॉक्टर मनमोहन वैद्य, सीआर मुकुंद, अरुण कुमार, रामदत्त भी शामिल हो रहे हैं. बैठक में सभी प्रांतों के प्रांत प्रचारक, सह प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक और सह क्षेत्र प्रचारक भी शामिल हो रहे हैं.
बिकेश तिवारी