स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशालय (Directorate General of Health Services) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कड़ा निर्देश जारी किया है, जिसमें फार्मास्यूटिकल उत्पादों के कड़े परीक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. यह कदम मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में 20 बच्चों की दुखद मौतों के बाद उठाया गया है, जो कोल्ड्रिफ (Coldrif) कफ सिरप से जुड़ी पाई गई हैं.
इन मौतों का कारण तामिलनाडु स्थित कंपनी द्वारा निर्मित ‘कोल्ड्रिफ’ कफ सिरप में डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की अत्यधिक मात्रा पाई जाना बताया गया है. जांच में यह पाया गया कि DEG का स्तर नियमित सीमा से लगभग 500 गुना अधिक था.
DGHS ने निर्देश में कहा कि निर्माताओं को ड्रग्स नियमों का पालन करना अनिवार्य है, हर बैच के कच्चे माल और तैयार उत्पाद की टेस्टिंग करना और केवल मंजूरशुदा विक्रेताओं से ही सामग्री खरीदना चाहिए. उन्होंने विशेष रूप से नियम 74 (c) और 78 (c) (ii) का पालन सुनिश्चित करने पर जोर दिया, जो बैच परीक्षण और रिकॉर्ड रखरखाव को अनिवार्य करते हैं.
निर्देश में राज्यों के ड्रग कंट्रोलरों से कहा गया कि वे निर्माण इकाइयों का निरीक्षण, उत्पाद परीक्षण की निगरानी और निर्माताओं को सर्कुलर के माध्यम से संवेदनशील बनाने के उपाय करें. इसके अलावा, विक्रेता योग्यता प्रणाली की मजबूती और केवल विश्वसनीय विक्रेताओं से कच्चे माल का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
बच्चों की मौत मामले में SIT गठित
बता दें कि इस घटना की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया है. छिंदवाड़ा के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी को कथित लापरवाही के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. वहीं, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों ने कोल्ड्रिफ़ पर प्रतिबंध लगाया और अपनी जांच शुरू कर दी है.
इस त्रासदी को लेकर जनता में गहरी नाराजगी है और राजनीतिक नेताओं ने तेज़ और पारदर्शी कार्रवाई की मांग की है. भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) ने डॉ. सोनी का समर्थन करते हुए कहा कि यह हादसा फार्मा कंपनी और नियामक प्राधिकरण की लापरवाही के कारण हुआ.
मिलन शर्मा