'वंदे मातरम् को वफादारी का टेस्ट न बनाया जाए...', संसद में बोले असदुद्दीन ओवैसी

वंदे मातरम् पर संसद में AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने अपने संबोधन में कहा कि संविधान सभी नागरिकों के लिए बराबरी का अधिकार देता है और इस अधिकार को किसी भी तरह की धार्मिक पहचान या प्रतीक के साथ नहीं जोड़ा जा सकता. वतन से मोहब्बत का मतलब है देश के लोगों के लिए काम करना.

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 धार्मिक आज़ादी और राष्ट्रवाद पर ओवैसी का कड़ा रुख (Photo: Youtube/@SansadTV) धार्मिक आज़ादी और राष्ट्रवाद पर ओवैसी का कड़ा रुख (Photo: Youtube/@SansadTV)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:22 PM IST

लोकसभा में वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर हुई विशेष चर्चा के दौरान AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने अपने संबोधन में संवैधानिक मूल्यों, धार्मिक आज़ादी और राष्ट्रवाद के स्वरूप को लेकर कड़ा रुख अपनाया. उन्होंने चेताया कि किसी भी तरह से देशभक्ति को किसी एक धर्म या पहचान से जोड़ना संवैधान्य सिद्धांतों के खिलाफ है और इससे सामाजिक विभाजन बढ़ेगा.

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ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान की शुरुआत “वी द पीपल” से होती है, न कि किसी देवी-देवता के नाम से पहले प्रिंबल में लिखे गए लिबर्टी ऑफ थॉट, एक्सप्रेशन, बिलीफ, फेथ एंड वर्शिप को उन्होंने डेमोक्रेसी का मूल बताया और कहा कि राज्य किसी एक धर्म की संपत्ति नहीं हो सकता. उन्होंने संविधान सभा में हुई बहसों का जिक्र करते हुए कहा कि वंदे मातरम् को लेकर भी संशोधनों पर विचार हुआ था, लेकिन किसी देवी के नाम से प्रीएम्बल आरंभ कराने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया.

ओवैसी ने क़ानूनी मिसालें पेश करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के नज़दीकी फ़ैसलों और दिशानिर्देशों को देखना चाहिए. जैसे कुछ मामलों में राष्ट्रगान/राष्ट्रगीत को लेकर दिए गए रुख और यह तर्क दिया कि वंदे मातरम को जबरन किसी की वफ़ादारी का मापदंड नहीं बनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वतन से मोहब्बत होना अलग बात है, मगर देशभक्ति को धार्मिक अनुष्ठान या पाठ से बांध देना संविधान के ख़िलाफ़ है.

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उन्होंने कहा, संविधान का पहला पन्ना ही खयाल, इज़हार, अक़ीदा, दीन और इबादत की पूरी आज़ादी देता है, तो किसी नागरिक को किसी ख़ुदा, देवी-देवता की इबादत या सज्दा करने के लिए कैसे मजबूर किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है और किसी को अपनी मान्यता थोपने का अधिकार नहीं है.

ओवैसी ने आज़ादी के आंदोलन में मुसलमान, सिख, हिन्दू और अन्य समुदायों के योगदान का हवाला देते हुए उस पर ज़ोर दिया कि देश के लिए कुछ लोगों की कुर्बानी और उनकी वतन भक्ति को भुलाया नहीं जाना चाहिए. उन्होंने अनेक नामों का उल्लेख कर यह कहा कि जिन्होंने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ संघर्ष किया, वे भी वतन के सच्चे प्रेमी थे और इसलिए वतन की मोहब्बत को किसी एक सामूहिक पहचान का नाम नहीं दिया जा सकता.

यह भी पढ़ें: क्या मुसलमानों को खुश करने के लिए बदल दिया गया था 'वंदे मातरम्'? जानिए पूरा सच

आइडियोलॉजी के आधार पर टेस्ट और विभाजन की चेतावनी

ओवैसी ने कहा कि अगर वंदे मातरम् या किसी और प्रतीक को वफ़ादारी के टेस्ट के रूप में अपनाया गया, तो वह राष्ट्र की सार्वभौमिकता और समावेशिता को चोट पहुंचाएगा. उन्होंने उदाहरण दिया कि इतिहास में कई नेताओं और क्रांतिकारियों - जिनकी देशभक्ति पर आज कोइ प्रश्न नहीं उठाता ने भिन्न-भिन्न तरीकों से आज़ादी की लड़ाई लड़ी. उन्हें याद दिलाते हुए ओवैसी ने कहा कि वतन भक्ति का माप केवल एक गीत या एक पाठ से नहीं किया जा सकता.

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धर्म, आस्था और व्यक्तिगत आज़ादी पर दृढ़ समर्थन

ओवैसी ने अपनी धार्मिक पहचान और आस्था का ज़िक्र करते हुए कहा कि उनका ईमान उन्हें यही सिखाता है कि अल्लाह की इबादत और नागरिक कर्तव्यों के बीच कोई टकराव नहीं है; और संविधान उन्हें आर्टिकल 25 के माध्यम से धार्मिक आज़ादी देता है. 

उन्होंने स्पष्ट किया कि देश के प्रति मोहब्बत उनके भीतर गहरी है, फिर भी वह किसी भी तरह की ज़बरदस्ती या पहचान-आधारित वफ़ादारी की परिभाषा का समर्थन नहीं करते.

टैगोर और अन्य विचारकों के हवाले और समावेशी संदेश

ओवैसी ने रवींद्रनाथ टैगोर के पत्रों और विचारों का हवाला देते हुए कहा कि संसद और सार्वजनिक जगहें सभी धार्मिक समूहों के लिए समान रूप से खुली होनी चाहिए. उन्होंने चेताया कि अगर राष्ट्रवाद को किसी खास धार्मिक पहचान से जोड़ दिया गया तो यह आज़ादी की उन बुनियादी कसौटियों के ख़िलाफ़ जाएगा जिनके लिए अनेक समुदायों ने संघर्ष किया.

वफ़ादारी का प्रमाणपत्र नहीं, समावेशी समाज चाहिए

अंत में ओवैसी कहा कि वतन भक्ति का सर्टिफिकेट किसी से छीनने का प्रयास न किया जाए. उनका कहना था कि सच्ची देशभक्ति गरीबी, अन्याय और उत्पीड़न को मिटाने में नज़र आती है, न कि किसी एक गीत या अनुष्ठान पर जबरन टिकाने से.

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