राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से क्रमश: 2006 और 2007 के स्नातक दंपती रसिका अगाशे (36 वर्ष) और मोहम्मद जीशान अय्यूब (36 वर्ष) का जीवन भी एक किस्से की तरह है. बल्कि कहें कि छोटी-छोटी उपलब्धियों से परे जाकर मंच के लिए किस्सों की तलाश का थोड़ा अलग जीवन. डिप्लोमा लेकर जीशान एक ऐक्टिंग स्कूल में नौकरी के लिए दुबई चले गए लेकिन वहां तमाम तरह की शर्तें देख ढाई महीने में ही दिल्ली लौट आए.
यही थिएटर करते हुए चर्चित फिल्म नो वन किल्ड जेसिका (2011) के लिए उन्हें मौका मिला. उसके बाद दोनों मुंबई आ गए. सामाजिक-राजनैतिक मुद्दों पर उनका चौकन्नापन मंच के लिए उन्हें लगातार कुछ नया तलाशने को प्रेरित कर रहा था. सिर्फ मनोरंजन के लिए सिनेमा और नाटक करना वैसे भी उनका कभी मकसद नहीं रहा था. और तभी दिसंबर 2012 में दिल्ली के चर्चित निर्भया कांड ने उनको पहल का बड़ा मौका दे दिया. उन्होंने 2013 में बीइंग एसोसिएशन नाम से थिएटर ग्रुप बनाकर इस दिशा में एक पहल की.
जीशान कहते भी हैं, ''हम मुंबई ऐक्टर बनने नहीं बल्कि अपनी पसंद का काम करने के लिए आए थे और वही कर रहे हैं.'' उनकी बीसेक फिल्मों में जीरो, मेरे ब्रदर की दुल्हन, तनु वेड्स मनु और हाल की आर्टिकल 15 भी शामिल हैं, जिसमें उन्होंने दलित एक्टिविस्ट चंद्रशेखर रावण से प्रेरित किरदार को जिया है.
दोनों की मूल फिक्र चूंकि थिएटर के आसपास थी, सो जीशान ने सिनेमा से कुछ पैसे कमाए और रसिका ने उसी बूते पर नाटकों पर ध्यान जमाया. समकालीन मुद्दों और चिंताओं पर केंद्रित ताजा बिंबों वाले नाटक न मिलने पर उन्होंने नए नाट्यालेख के लिए प्रतियोगिता की शक्ल में एक और पहल की: संहिता मंच. वे कहती हैं, ''एक नया नाटक करने के लिए हमें पसंदीदा स्क्रिप्ट नहीं मिल रही थी. यह सोचकर हमने प्रतियोगिता रखी कि 4-5 स्क्रिप्ट तो मिल जाएं. और देखिए! 80 स्क्रिप्ट मिलीं. इससे समझ में आया कि लोग लिख रहे हैं.'' गैर-सरकारी स्तर पर नए नाटक लिखवाने और फिर चुनिंदा स्क्रिप्ट का मंचन करवाने की यह दुर्लभ पहल है.
प्रतियोगिता का यह तीसरा साल था और इसके तहत अब तक करीब 300 स्क्रिप्ट आ चुकी हैं. रसिका बेबाकी से बताती हैं कि नाटकों को पढऩा और उनमें से छांटना इतना धैर्य का और चुनौतीपूर्ण होता है, इसका उन्हें बिल्कुल भी अंदाजा न था. इस साल चुने गए चार नाटकों में से एक, कर्ण के जीवन पर आधारित राधेय (नाट्यलेखक: अमित शर्मा) का निर्देशन खुद रसिका ने किया. जीशान इसके प्रोड्यूसर बने. मुंबई और दिल्ली समेत 4 शहरों में इनके शो हुए. पिछले छह साल में उनके ग्रुप के किए बीसेक नाटकों में से 11 की स्क्रिप्ट इसी तरह निकलकर आई.
थिएटर वे अपने सुकून के लिए करते हैं लेकिन उन्हें पता है कि इसके बूते किसी का घर नहीं चल सकता. जीशान मानते हैं कि ''थिएटर में इतने पैसे मिलते तो मैं सिनेमा में जाता ही नहीं.'' रसिका आगे की लाइन बोलती हैं, ''किसी नाटक के मंचन की लागत बढऩे पर मुझे पसीना छूटने लगता है. तब जीशान का यह कहना बड़ी ताकत देता है कि 'तू फिकर मत कर, बस नाटक संभाल.'' और जब लोगों को नाटक पसंद आ जाता है तो दोनों यह सोचकर सुकून की सांस लेते हैं कि ''सही जगह पर पैसे लगे.''
बीइंग एसोसिएशन अब नए-पुराने हिंदी नाटकों की ई-लाइब्रेरी बना रहा है, जिससे कि वे नाट्य संस्थाओं को मंचन के लिए निशुल्क या कुछ रॉयल्टी के साथ उपलब्ध हों. असगर वजाहत जैसे कुछ नाटककारों ने अपनी कृतियां निशुल्क दे दी हैं. दिग्गज नाट्यकर्मी हबीब तनवीर के कुछ अप्रकाशित नाटक भी मिले हैं. 30 नाटक तो अपलोड भी हो गए हैं.
दोनों के लिए यह अपने काम को 'एन्जॉय' करने का दौर है. रसिका स्पष्ट करती हैं, ''भविष्य के बारे में ज्यादा सोचने से हम अभी के अपने काम को एन्जॉय करना बंद कर देंगे.'' इसी सोच के तहत जीशान हंसल मेहता की एक फिल्म की शूटिंग में व्यस्त हो गए हैं और रसिका गांधी पर एक नाटक की तैयारी में. दोनों की व्यस्त राह के बीच जो एक नन्हा सेतु जज्बाती तौर पर उन्हें जोड़ता और सबसे ज्यादा ताकत देता है, उसका नाम है, पांच साल की बेटी राही.
संघर्ष
इस शब्द पर विश्वास नहीं
टर्निंग पॉइंट
दिल्ली में निर्भया कांड के रूप में गैंग रेप की घटना, जिसके बाद म्युजियम ऑफ स्पेसीज इन डेंजर नाटक के मंचन के साथ दोनों ने बीइंग एसोसिएशन नाम से थिएटर ग्रुप बनाया
उपलब्धि
रसिका और जीशान पांच साल की अपनी बेटी राही को एक सुंदर उपलब्धि मानते हैं
सफलता के सूत्र
दोनों का बेफिक्र होकर अपने काम में लगना: जीशान का फिल्मों में अभिनय में और रसिका का नाटकों की तलाश और उनका मंचन करने में
लोकप्रियता के कारक
अपने-अपने काम के बारे में बेबाक नजरिया
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