मुझे फिल्म इंडस्ट्री मुखौटा सी लगती है, जितना दूर रहो सही : मधुर भंडारकर

मधुर भंडारकर कहते हैं, कोरोना के बाद से ही बॉलीवुड बहुत बुरे दौर से गुजर रहा था. यह चिंता का विषय है भी. हम सभी को सोचना चाहिए. मुझे नहीं लगता कि पोस्ट कोरोना भी फिल्में चली हैं. एक दो को अगर छोड़ दिया जाए. इस साल कश्मीर फाइल्स, भूल भूलैया 2 ने ही तोड़फोड़ बिजनेस किया है.

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मधुर भंडारकर मधुर भंडारकर

नेहा वर्मा

  • मुंबई ,
  • 02 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:16 AM IST

मधुर भंडारकर अपनी नई डिजिटल फिल्म 'इंडिया लॉकडाउन' को लेकर चर्चा में हैं. फिल्म लॉकडाउन के वक्त हुए हालात को बयां करती है. इस फिल्म में मधुर ने अलग वर्ग और उससे जूझते लोगों की कहानी को दिखाने की कोशिश की है. अपने इस प्रोजेक्ट और फिल्मी करियर पर मधुर हमसे खुलकर बातचीत करते हैं. 

-जब लॉकडाउन लगा था, तो यह मेरे जहन में भी आया कि चलो मधुर भंडारकर को अपनी नई फिल्म की स्क्रिप्ट मिल गई?
ये तो हर कोई सोचता है. देश में अगर कुछ भी होता है, तो ट्विटर पर मैं ही ट्रेंड करने लगता हूं कि मधुर भंडारकर को नई स्क्रिप्ट मिली है. मैं पहले भी कह चुका हूं कि यह बात सच है. मुझे स्क्रिप्ट अखबार, चैनल्स, न्यूज के जरिए ही मिलती है. यह दर्शकों का प्यार ही तो है, जिन्हें यह विश्वास होता है कि मधुर उनके हक में सच्चाई जरूर कहेंगे. जो बाकी फिल्ममेकर्स नहीं कर पाते हैं. 

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-आपने कब डिसाइड किया कि लॉकडाउन की कहानी को स्क्रिप्ट का रूप देना है?
2020 में मेरे अंदर दो कहानियां चल रही थी. बबली बाउंसर और दूसरा लॉकडाउन पर ही कुछ सोच रहा था. मेरी टीम को मैंने कॉन्टैक्ट किया और कहा कि टीवी, सोशल मीडिया, पेपर पर जो कुछ भी आ रहा है, उसे डॉक्यूमेंट कर रख लो. जूम कॉल हम बैठकर राइटिंग पर चर्चा किया करते थे. इसकी ड्राफ्टिंग बहुत हुई है. मेरे पास 12 स्टोरी ट्रैक्स थे.

पहले तो सोचा कि इसे वेब सीरीज के लेवल पर बनाते हैं. देखो, ये टॉपिक जैसा था, मुझे लगा था कि भेड़चाल जैसी हालात होगी. हर कोई इसे बना रहा होगा. इसलिए हम 12 से 10 और फिर चार ट्रैक पर पहुंचे. हमने चार किरदार को अलग-अलग फील्ड से चुना और उसकी कहानी बुनी. हालांकि, मैंने अपने इस फिल्म में केवल लॉकडाउन के चार पांच महीने ही दिखाए हैं. मैं बता दूं ये फिल्म एंथोलॉजी नहीं है. 

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-आपका लॉकडाउन का वक्त कैसे गुजरा था?
मैं सच कहूं, तो इस लॉकडाउन के दौरान मैं परेशान जरूर होता था, लेकिन जब मैं बाहर बैठे लोगों का स्ट्रगल देखता, तो मुझे अपना गम बहुत कम लगने लगता था. मैं रोजाना देखता था कि फैमिली को बॉडी नहीं मिल रही, लोग ऑक्सीजन के लिए जूझ रहे थे. ये सबके सामने मेरा डिप्रेशन और एंजायटी बहुत छोटा लगता था. मैं तो बल्कि सोचता था कि हम वाकई में बहुत प्रीविलेज्ड लोग हैं. मैं इसका हमेशा ऊपरवाले का शुक्रगुजार रहूंगा.

मैं मानता हूं कि मैंने जो फिल्म बनाई है, उसका डॉक्यूमेंटेशन होना बहुत जरूरी है. आज फिर लोग भूल चुके हैं कि वो किस दौर से गुजरे हैं. जब ट्रेलर आया, तो मुझे कॉल्स आने शुरू हुए कि अरे ये तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो भूल गया था. मेरी फिल्म आने वाली पीढ़ी के लिए एक इंफोर्मेशन की तरह होगी. उन्हें पता रहेगा कि पूरा विश्व इस तरह के हालात से गुजरा था. 

-आपकी नेशनल अक्लेम्ड फिल्में चांदनी बार, फैशन, पेज3 आदि के पार्ट को लेकर चर्चा होती रहती है. आपका क्या प्लान है?
मुझे अक्सर लोग आकर कहते हैं कि चांदनी बार, पेज3 का पार्ट 2 बनाओ. हालांकि, मैंने कभी ऐसा सोचा नहीं है. मैं मानता हूं कि कुछ फिल्म जिस मोड़ पर खत्म होती है, उसका वही हाई लेवल होता है. वही उसकी खूबसूरती होती है. जब मुझे लगेगा कि मैं इसमें और कुछ बता सकता हूं, तब सीक्वल की सोचूंगा, फिलहाल मुझे अपनी फिल्मों की एंडिंग पसंद है. 

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-उम्मीद थी कि बायकॉट बॉलीवुड या फिर इंडस्ट्री की निगेटिविटी पर फिल्म बनाएंगे. इस माहौल पर आपका क्या कहना था?
कोरोना के बाद से ही बॉलीवुड बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा था. यह चिंता का विषय है भी. हम सभी को सोचना चाहिए. मुझे नहीं लगता कि पोस्ट कोरोना भी फिल्में चली हैं. एक दो को अगर छोड़ दिया जाए. इस साल भी कश्मीर फाइल्स, भूल भूलैया 2 ने ही तोड़फोड़ बिजनेस किया है. बाकि की साउथ की फिल्में चली हैं. रही बात बॉलीवुड बायकॉट की, यह एक वर्ग है. जो आपका प्रोडक्ट आने से पहले ही उसके प्रति निगेटिविटी फैला देते हैं, जिसका खामियाजा भुगतना भी पड़ता है.

मैं हमेशा कहता हूं कि जनता हमारी स्टार है और हम उनके नुमाइंदे हैं. जनता ही स्टार बनाती हैं. ये मैं तीस साल से कहता आ रहा हूं. हम उन्हें टेकन फॉर ग्रांटेड नहीं ले सकते हैं. उनकी रिस्पेक्ट हमें होनी चाहिए. ये एक फेज है, जो गुजर जाएगा लेकिन लोगों को अक्ल आ गई है कि उन्होंने जनता की महत्व को समझना शुरू कर दिया है. आपको उनसे तारीफ मिलती है, तो उनकी निगेटिविटी भी कबूलनी होगी. 

-इतने सालों इंडस्ट्री का हिस्सा रहे हैं. फिल्मों के बदलते तरीकेकार पर क्या राय है?
लोग कहते हैं कि मैं फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा हूं, तो मैं बता दूं, मैं नहीं खुद को इस इंडस्ट्री का मानता हूं. मैं तो खुद बहुत कटा-कटा सा रहता हूं. न मैं कोई कैंप में हूं और न ही किसी लॉबी में शामिल हूं और न ही कोई एक्टर मेरा दोस्त है. मैं बस फिल्म बनाता हूं और अपनी जिंदगी में वापस चला जाता हूं. मैं एक वीडियो कैसेट की दुकान में काम करने वाला मजदूर कैसे उस दुनिया में अडजस्ट हो सकता है.

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मुझे लगता है कि मुझे किसी को प्रोजेक्ट के लिए अप्रोच करना है, तो मैं जाकर मिलता हूं और कहानी सुनाता हूं. मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर भी सफल होती हैं. नेशनल अवॉर्ड्स मिलता है. मेरी फिल्म में काम करने वाले एक्टर्स को भी नैशनल अवॉर्ड्स और प्यार मिलता है. बस यहीं तक मेरी खुशी होती है. मैं कास्टिंग भी अपने हिसाब से ही करता हूं. मैंने कितनों को रोड से उठाकर एक्टिंग करवाई है. मैं तो डंके की चोट पर कह चुका हूं कि मैं छठवीं फेल डायरेक्टर हूं. मुझसे लोग कहते हैं कि तुम झूठ बता क्यों नहीं देते कि ग्रैजुएट हो. कहने का मतलब यह है कि फिल्म लाइन में रहकर भी मैं बहुत अलग रहता हूं. मुझे तो यह इंडस्ट्री मुखौटा लगती है. यह एक सतही दुनिया है, जिससे आपको दूर रहने की जरूरत है.

 

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