पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से एक सीट रोपड़ विधानसभा सीट, जिसका क्रम संख्या 50 है. रोपड़ सीट को अब रुपनगर विधानसभा सीट के नाम से जाना जाता है. यह क्षेत्र की पहचान ज्ञानी जैल सिंह की धरती के रूप में भी है जो पंजाब के मुख्यमंत्री होने के अलावा देश के गृह मंत्री और राष्ट्रपति जैसे शीर्ष पदों पर भी रहे.
सामाजिक तानाबाना
रोपड़ विधानसभा सीट आनंदपुर साहब लोकसभा सीट के तहत आती है. इसी क्षेत्र में महाराजा रणजीत सिंह और लॉर्ड विलियम बेंटिक के बीच हुई संधि सतलुज नदी के किनारे हुई. यहां पर महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब की सीमा और अंग्रेजों की सीमा निर्धारित की थी.
यहां के वेटलैंड में हजारों मीलों से पक्षी यहां पर आते हैं. रोपड को पुराने समय मे रोपड़ी ताले के नाम से जाना जाता था. ज्ञानी जैल सिंह यहीं से पंजाब के मुख्यमंत्री बने फिर देश के गृह मंत्री और बाद में राष्ट्रपति बने थे और अंतिम समय में उनकी मौत भी इसी क्षेत्र में एक्सीडेंट होने के कारण हुई थी.
इसे भी क्लिक करें --- Gidderbaha Assembly Seat: अकाली दल की परंपरागत सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रख पाएंगे राजा वडिंग?
जिला मुख्यालय होने के कारण रोपड का नाम प्रसिद्ध है. मोहाली जिला भी इसमें से काटकर बनाया गया. अब रोपड़ विधानसभा क्षेत्र का अधिकतर भाग हिमाचल के सोलन जिला बिलासपुर जिला के साथ संलग्न है. उद्योग के नाम पर यहां पर कुछ नहीं है. लोगों का अधिकतर पेशा कृषि ही है. कुछ क्षेत्र यहां पर अवैध माइनिंग के नाम पर भी जाने जाते हैं.
अंबुजा सीमेंट फैक्ट्री होने की वजह से सीमेंट की ढलाई के लिए रोपड थर्मल प्लांट होने के कारण पहले ट्रकों का कार्य बहुत था परंतु अब वह भी कम हो गया है.
रोपड़ क्षेत्र को गुरुओं की धरती कहा जाता है. यहीं पर कई सिख गुरुओं के पदचिन्ह पड़े. इसके साथ ही गुरुद्वारा भट्टा साहब जहां पर दशम पिता गुरु गोविंद सिंह के घोड़े ने जब ईट भट्टे से गुजरना चाहा तो यहां पर भट्ठा गर्म और आग जल रही थी जो तुरंत ही घोड़े के खुरो से ठंडा हो गया. जिस कारण यह गुरुद्वारा भट्टा साहिब के नाम से जाना जाता है.
यहां की सतलुज दरिया जो पहले खुला बहता था उसी को अंग्रेजों और पंजाब की सीमा निर्धारित किया गया जिसके लिए महाराजा रणजीत सिंह खुद सतलुज के किनारे अंग्रेजों के गवर्नर लॉर्ड विलियम बेंटिक से मिलने आए और उनसे संधि की रोपड़ का अधिक भाग हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र से जोड़ता है. इस क्षेत्र में भी अर्ध पहाड़ी एरिया नूरपुर बेदी ब्लॉक जैसे शामिल हैं. इसी क्षेत्र में पांडवों द्वारा बनाया गया जटेश्वर महादेव का मंदिर है. रोपड़ का नाम भी कई बार बदला गया. अब फिर से कागजों ओर सरकारी तौर पर इसका नाम रूपनगर है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
रोपड़ शहर ही नहीं जिला भी पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बनने के पश्चात सुर्खियों में रहा है. पहले चंडीगढ़ के इर्द-गिर्द रोपड़ जिला था, जिस कारण रोपड़ का नाम जब भी कोई राज्यों में सीमा विवाद होता था तो सुर्खियों में रहता था लेकिन अब मोहाली जिला बनने के कारण थोड़ा कम हो गया है.
रोपड़ सीट शुरू से ही चाहे नाम कोई भी हो, सुर्खियों में रही. यहां से देश के पहले सिख राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का सफर शुरू हुआ. आज भी यहां पर उनके नाम से कई कॉलोनी और नाम पर चीजें हैं.
शुरू से ही इसे कांग्रेस की सीट माना जाता रहा है परंतु दो दशक पहले इसमें अकाली दल का कब्ज़ा कायम हो गया. इसी विधानसभा में 2012 के चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के दलजीत सिंह चीमा ने यहां पर 5 वर्ष बाहर से आकर मंत्री पद का नाम होने पर रोपड़ सुर्खियों में ही रहा.
2017 का जनादेश
2017 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के अमरजीत सिंह संधोया ने जीत हासिल की थी. हालांकि वे रोपड़ के नूरपुर बेदी क्षेत्र के थे हैं पर वह दिल्ली में टैक्सियों के कारोबार में थे और वहीं रहते थे. उन्होंने पंजाब के पूर्व शिक्षा मंत्री दलजीत सिंह चीमा को 23 हजार मतों पर हरा दिया था और आम आदमी पार्टी के संधोया ने कांग्रेस को दूसरे, अकाली दल के डॉक्टर दलजीत सिंह चीमा को तीसरे नंबर पर ला खड़ा किया.
चुनाव में अमरजीत सिंह संधोया को 58,994 वोट मिले तो कांग्रेस के बरिंदर सिंह ढिल्लों को 35287 वोट मिले थे.
रिपोर्ट कार्ड
रोपड़ विधानसभा जिसे रुपनगर विधानसभा भी कहते हैं, में अमरजीत सिंह की एंट्री फिल्मी स्टाइल जैसी रही थी. बहुत से दावेदारों को पीछे धकेलते हुए दिल्ली से ही रहने वाले और टैक्सी का कारोबार करने वाले अमरजीत सिंह को आम आदमी पार्टी ने टिकट देकर यहां से खड़ा कर दिया.
कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में आने वाले अमरजीत सिंह फिर से इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. हालांकि इस बार कई और लोग टिकट पर दावेदारी जता रहे हैं.
(इनपुट- विजय कपूर)
aajtak.in