देश में महिला मतदाताओं का वोटिंग पैटर्न बदल रहा है. महिलाएं अब सिर्फ पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर ही नहीं चल रही हैं, बल्कि वोटिंग करने में भी आगे नजर आती हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में कुल मतदान 66.91 फीसदी हुआ है, जिसमें 71.06 फीसदी वोट महिलाओं ने किए हैं तो और 62.8 फीसदी वोट पुरुषों ने दिए हैं। इस तरह पुरुषों से 8.26 फीसदी ज्यादा महिलाओं ने वोट किए हैं.
सियासत में जाति, धर्म, उम्र और पेशे के आधार पर मतदाता कई तरह के वोट बैंक में बंटे हुए हैं. सियासी दल महिलाओं को भी ऐसे ही वोट बैंक के तौर पर देखते हैं, क्योंकि उनके वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है.
देश में महिलाओं का बदलता वोटिंग पैटर्न
बिहार चुनाव ही नहीं, बल्कि लोकसभा चुनाव और दूसरे राज्यों में भी महिलाओं का वोटिंग पैटर्न बदला हुआ नजर आता है. महिलाएं केवल पुरुषों की तुलना में ज्यादा वोटिंग ही नहीं कर रही हैं, बल्कि अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट कर रही हैं. इस तरह से महिलाएं अब सियासी तौर पर सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखती हैं.
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महिला वोटर सत्ता की धुरी बनती जा रही हैं. पिछले दो लोकसभा चुनाव से पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है तो बिहार में महिलाएँ लगातार पुरुषों से ज्यादा मतदान कर रही हैं. पीएम मोदी ने 2020 के चुनाव में महिला वोटरों को साइलेंट वोटर बताया था और एनडीए के जीत का श्रेय उन्हें दिया था. ऐसे में देखना है कि इस बार महिलाओं का सियासी मिजाज किस तरफ रहता है?
बिहार में पुरुषों से ज्यादा महिला वोटिंग रही
बिहार में इस बार दो चरण में चुनाव हुए हैंय पहले चरण में कुल 65.08 फीसदी वोटिंग हुई थी, जिसमें पुरुष 61.56 फीसदी तो महिला 69.04 फीसदी मतदान रहा इसके बाद दूसरे चरण की 68.74 फीसदी वोटिंग हुई है, जिसमें पुरुषों ने 64.1 फीसदी तो महिलाओं ने 74 फीसदी मत दिए हैं.
इस तरह दोनों चरणों की कुल वोटिंग 66.91 फीसदी रही, जिसमें 62.8 फीसदी पुरुष तो 71.06 फीसदी महिलाओं ने वोट किए. इस तरह से पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने 8.26 फीसदी ज्यादा मतदान किए हैं. हालांकि, अभी ये आँकड़े अंतिम नहीं हैं और इसमें पोस्टल बैलेट को भी शामिल करने पर बढ़ सकता है.
बिहार में समझें कैसा है महिला वोटिंग पैटर्न
बिहार में पहली बार महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट नहीं किए, बल्कि चौथी बार यह पैटर्न दिखा है, जब महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग करके दिखाया. 2020 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की थी. पुरुषों ने 54.6 फीसदी वोट डाले थे, जबकि 59.7 प्रतिशत महिलाओं ने इस चुनाव में मतदान किया था.
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2015 के विधानसभा चुनाव में 51.1 फीसदी पुरुषों ने और 60.4 फीसदी महिलाओं का वोटिंग टर्नआउट था. 2010 के चुनाव में 53 फीसदी पुरुषों ने मतदान किया था, तो महिलाओं ने 54.5 फीसदी वोटिंग टर्नआउट रहा था. इस तरह देखा गया है कि महिला वोटर बिहार की सरकार बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखती हैं.
नीतीश की सियासी ताकत बनी महिला वोटर
2020 के चुनाव में महिला वोटर्स के दम पर ही एनडीए सरकार वापसी कर सकी थी. महिलाओं की वोटिंग ज्यादा होने का सियासी लाभ नीतीश कुमार के अगुवाई वाले गठबंधन को मिलता रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2020 में बिहार जीत का श्रेय बीजेपी के साइलेंट वोटरों को दिया था और खुद बताया था कि ये साइलेंट वोटर कोई और नहीं, बल्कि महिलाएं हैं. महिला वोटों के दम पर नीतीश कुमार लगातार बिहार की सत्ता में बने हुए हैं.
बिहार की सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने 10 लाख से ज्यादा महिला स्वयं सहायता समूहों की स्थापना की, जिनकी संयुक्त सदस्य संख्या एक करोड़ 32 लाख के करीब है. इतना ही नहीं, 2006 में पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण देने की नीतीश की पहल ने बिहार के पितृसत्तात्मक पिछड़े इलाकों में धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से हलचल पैदा कर दी थी.
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नीतीश कुमार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए मुफ्त यूनिफॉर्म, किताबें और साइकिल देने का काम किया. बिहार की सरकारी नौकरियों में महिलाओं की भर्ती बढ़ी है. महिलाओं के कहने पर ही नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी लागू की थी. इस तरह से नीतीश ने महिलाओं को साधने के लिए बड़े सियासी दांव चले हैं. सीएम नीतीश कुमार ने इस बार के चुनाव में महिला संवाद यात्रा कर उन्हें साधे रखने का दांव चला तो पीएम मोदी ने कई वादे किए.
बिहार में महिला वोटर पर रहा खास फोकस
बिहार में महिलाओं की आबादी लगभग आधी है और सरकार बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. नीतीश कुमार के लगातार सत्ता में बने रहने में महिला वोटर्स अहम रोल प्ले करती रही हैं. एनडीए और महागठबंधन दोनों की ओर से महिला वोटों पर खास फोकस किया गया था, महिला वोट साधने के लिए कई योजनाओं का वादा किया गया है.
एनडीए की नीतीश सरकार ने तो चुनाव से पहले ही महिला रोजगार योजना के तहत 1.21 करोड़ महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए की पहली किस्त डाली थी. वहीं, महागठबंधन ने महिलाओं को हर साल 30 हजार रुपए देने का वादा किया है.
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राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस बार जिस तरह से महिलाओं की वोटिंग बढ़ी है, उसके पीछे एनडीए और महागठबंधन के द्वारा किए वादों का अहम रोल था. इस बार चुनाव में महिलाओं की वोटिंग में एसआईआर और छठ पर आए प्रवासी मतदाताओं का भी अहम रोल था, जिसमें महिलाएँ भी शामिल हैं.
लोकसभा चुनाव में महिला वोटिंग पैटर्न
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद सबसे ज्यादा फोकस महिला वोटरों पर रहा है. उज्ज्वला योजना, शौचालयों का निर्माण, पक्का घर, मुफ्त राशन, महिलाओं को आर्थिक मदद जैसी कई ऐसी योजनाएं हैं, जिनका सीधा लाभ महिलाओं को होता है. महिला वोटों का पीएम मोदी और उनकी कई योजनाओं पर विश्वास पिछले तीन लोकसभा चुनाव में भी दिखा है.
साइलेंट वोटर की सियासी ताकत के दम पर बीजेपी केंद्र से लेकर देश के आधे से ज्यादा राज्यों में काबिज है. पिछले दो लोकसभा चुनाव से पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है. चुनाव आयोग के डेटासेट के मुताबिक कुल मतदाताओं में महिलाओं का प्रतिशत 2019 के 48.09 फीसदी से बढ़कर 2024 में 48.62 फीसदी हो गया.
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2019 के चुनाव में हुई वोटिंग के पैटर्न को देखें तो 67.18 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया था, जबकि पुरुषों ने 67.01 फीसदी वोटिंग की थी. इस तरह महिलाओं ने पुरुषों से एक फीसदी ज्यादा वोटिंग की थी. 2024 के लोकसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न देखें तो महिला मतदाताओं का प्रतिशत 65.78 प्रतिशत रहा, जबकि पुरुष मतदाताओं ने 65.55 फीसदी मतदान किया है.
आजादी के बाद यह दूसरा मौका रहा जब महिला मतदाताओं ने वोटिंग में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया. पहली बार महिला मतदाताओं ने 2019 में पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की थी और उसके बाद 2024 का चुनाव दूसरा मौका बना. ऐसे में साफ है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा वोटिंग ही नहीं कर रही हैं, बल्कि अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट कर रही हैं। साइलेंट माने जाने वाली महिलाएँ सत्ता डिसाइंडिग वोटर बन चुकी हैं.
महिला वोटों से तय हुई कई राज्य की सत्ता
महिला वोट कितना अहम है, इसे इस बात से समझिए कि मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना की छह किस्त चुनाव से पहले खाते में पहुंचा दी गई थी, तो बीजेपी की बंपर जीत महिला वोट से हुईय इसी तरह हरियाणा चुनाव में बीजेपी ने महिलाओं से यही वादा किया और सफल रहा. उससे पहले छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी बीजेपी का महिलाओं को साधने के लिए कैश दांव चलना मुफीद रहा.
महिला वोटों की सियासी अहमियत को देखते हुए झारखंड में हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार ने राज्य में तीन किस्तें मइयां योजना की महिलाओं के बैंक अकाउंट में पहुंचा दीं, तो जीत हेमंत सरकार की हुई. दिल्ली में यही काम अरविंद केजरीवाल 2013 से लगातार करते रहे, जिसके दम पर कई बार सरकार बनाई थी. 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी से लेकर केजरीवाल तक ने वादा किया, लेकिन फायदा बीजेपी को मिला.
कर्नाटक में कांग्रेस ने महिला वोटों के दम पर सरकार बनाई तो हिमाचल में भी जीत हासिल की. ऐसे ही ममता बनर्जी महिला वोटों के दम पर पश्चिम बंगाल की सत्ता अपने नाम कर रखी है. अब देखना है कि बिहार में महिला वोटर क्या नीतीश कुमार के लिए सियासी ढाल बनेगी और उनकी सरकार को बचाने का काम करेंगी?
कुबूल अहमद