साल 2016 में हुई नोटबंदी का देश को फायदा हुआ या नुकसान, इसको लेकर पक्ष-विपक्ष द्वारा तमाम तरह के दावे-प्रतिदावे किए जाते रहे हैं. विपक्ष लगातार यह कहता रहा है कि नोटबंदी से देश को नुकसान ही हुआ और इसका कोई फायदा अब तक देखने को नहीं मिला है. अब हार्वर्ड और आईएमएफ के रिसर्चर्स द्वारा की गई एक स्टडी में यह दावा किया गया है कि नोटबंदी वाली तिमाही में ही भारत की आर्थिक गतिविधियों में कम से कम 2.2 फीसदी और नौकरियों में 2 से 3 फीसदी की गिरावट आई जिससे जीडीपी को 2 फीसदी तक का झटका लगा.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को ऐलान किया था कि उसी दिन आधी रात से 500 और 1000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे, यानी उनका चलन बंद हो जाएगा. इसकी वजह से रातोरात पूरे सिस्टम से 75 फीसदी नकदी अवैध हो गई थी. इसके बाद देश में नकदी की भारी तंगी हो गई थी. हालांकि इसको लेकर विवाद रहा है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ या नहीं. अब अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के रिसर्चर्स ने यह दावा किया है कि नोटबंदी वाले पखवाड़े में ही भारत की आर्थिक तरक्की की रफ्तार कम हुई थी और इससे नौकरियों में 2 से 3 फीसदी की गिरावट आई थी.
स्टडी में कहा गया है कि नोटबंदी से सबसे ज्यादा झटका खाने वाले भारतीय जिलों में एटीएम निकासी में काफी ज्यादा कमी देखी गई और इससे यह साफ होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का किस तरह का असर हुआ था.
किसने की स्टडी
हालांकि स्टडी में यह भी स्वीकार किया गया है कि नोटबंदी के बाद मोबाइल वॉलेट जैसे भुगतान के डिजिटल या वैकल्पिक साधनों का इस्तेमाल बढ़ा है. 'कैश ऐंड द इकोनॉमी: एविडेंस फ्रॉम इंडियाज डीमॉनेटाइजेशन' शीर्षक से प्रकाशित इस अध्ययन में यह बातें सामने आई हैं. इस पेपर को लिखने में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर गैब्रिएल छोदोरो-रीच,आईएमएफ की रिसर्च डिपार्टमेंट की डायरेक्टर और इकोनॉमिक काउंसलर गीता गोपीनाथ, गोल्डमैन सैक्स की प्राची मिश्रा और रिजर्व बैंक के अभिनव नारायण शामिल रहे हैं. इस अध्ययन में भारतीय जिलों में सभी वर्गों तक नोटबंदी के असर का आकलन किया गया है.
अध्ययन में कहा गया है कि नोटबंदी के दौरान नवंबर और दिसंबर 2016 में आर्थिक गतिविधियों में 2.2 फीसदी की गिरावट आई थी. इन सबके असर से तिमाही ग्रोथ में कम से कम 2 फीसदी तक की गिरावट आई थी.
कर्ज प्रवाह में भी आई गिरावट
अध्ययन के मुताबिक नोटबंदी से साल 2016 की चौथी तिमाही में कर्ज प्रवाह में करीब 2 फीसदी की गिरावट आई थी. नोटबंदी को खराब तरीके से लागू करने की बात करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, 'रिजर्व बैंक और सरकार, दोनों ने इस नीतिगत घोषणा से पहले काफी गोपनीयता बरती और रिजर्व बैंक ने घोषणा से पहले बडे़ पैमाने पर नए नोटों को छापने और वितरित करने का काम नहीं किया. इसकी वजह से तत्काल नकदी की भारी कमी हो गई. प्रिंटिग प्रेस की अपनी सीमा होने के कारण सरकार हटाए जाने वाले नोट की जगह नए नोट नहीं दे पाई जिससे रातोरात करीब 75 फीसदी करेंसी गायब हो गई और इसको सुधरने में आगे कई महीने लग गए.'
(www.businesstoday.in से साभार )